मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में दलितों व अल्पसंख्यकों के हित में दो बड़े फैसले लिए हैं। दलित व अल्पसंख्यक युवा वर्ग, खासकर छात्रों व बेरोजगारों के हित में लिए गए इन फैसलों ने विपक्ष की बोलती बंद कर दी है। नीतीश कुमार के ये फैसले दलितों-अल्पसंख्यकों में उनकी स्वीकार्यता बढ़ाएगा। साथ ही आगामी चुनाव में वोट साधने में भी मदद मिलेगी।
फैसले, जिनके होंगे दूरगामी परिणाम
इन फैसलों के अनुसार एससी-एसटी (अनुसूचित जाति व जनजाति) सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना के तहत केंद्रीय व राज्य सिविल सेवाओं की प्रारंभिक परीक्षा पास करनेवाले अभ्यर्थियों को 50 हजार व एक लाख रुपये की एकमुश्त सहायता दी जाएगी। ऐसा इसलिए कि ये मेधावी छात्र आगे की तैयारी कर सकें। दूसरे फैसला अत्यंत पिछड़ा वर्ग सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना का है। इसके तहत अत्यंत पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा। साथ ही अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के कल्याण हॉस्टलों में रहनेवाले छात्रों को हर माह एक-एक हजार रुपये मिलेंगे। सरकार दलित और आदिवासी छात्रों को 15 किलो गेहूं और चावल भी हर महीने देगी।
विपक्ष की बोलती बंद
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाल के इन फैसलों ने विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। ये फैसले ऐसे समय में लिए गए हैं, जब केंद्र व राज्य की राजग सरकारों को दलित-अल्पसंख्यक विरोधी कहकर आलोचना की जा रही है। इन फैसलों के माध्यम से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एससी-एसटी जातियों के विकास के लिए पहल की है।
दलित वोट बैंक पर नजर
पृष्ठभूमि में जाएं तो पिछले दिनों एससी-एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय आया था। इसके बाद देशभर में बवाल हुआ। बीते दो अप्रैल को देश भर में दलितों का बड़ा आंदोलन हुआ था। इसके बाद सभी राजनीतिक दल दलितों को अपने पक्ष में करने की जुगत में लग गए हैं। लक्ष्य 2019 का लोकसभा चुनाव है। राजनीतिक दल अागामी लोकसभा चुनाव में दलित वोटों की अनदेखी नहीं कर सकते। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उक्त फैसलों को इसी नजरिये से देखा जा रहा है।
डैमेज कंट्रोल की कवायद
गत लोकसभा चुनाव में राजग को बड़ी संख्या में एससी-एसटी वोट मिले थे। इस अभूतपूर्व समर्थन के कारण ही उत्तर प्रदेश में मायावती के बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का खाता तक नहीं खुल सका था। विधानसभा चुनाव में भी बसपा को केवल 19 सीटें मिलीं थीं। बिहार में भी तब जीतनराम मांझी व रामविलास पासवान दो बड़े दलित चेहरे रहे। लेकिन, मांझी ने राजग छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया। उधर, एससी-एसटी अधिनियम के विषय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित संगठनों की सरकार से नाराजगी स्पष्ट दिखी।
विपक्ष ने इस आग में घी डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके बाद देशभर में सरकार की तरफ से डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू हुई। इसी दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ये फैसले आए।
शिक्षित दलितों-अल्पसंख्यकों के बड़े तबके को लाभ
राज्य सरकार के इन फैसलों से शिक्षित दलितों के साथ अल्पसंख्यकों का भी बड़ा तबका लाभान्वित हुआ है। उनके बीच यह संदेश गया है कि नीतीश कुमार उनकी बेहतरी के लिए कोशिश कर रहे हैं। शिक्षित तबका दलितों व अल्पसंख्यकों को विचारधारा के स्तर पर नेतृत्व देकर वोट बैंक के निर्माण में भी सक्षम है।
यह देश का पहला उदाहरण है, जब एससी-एसटी व अत्यंत पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को सिविल सेवाओं की प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद आगे की तैयारी के लिए आर्थिक सहायता दी जाएगी।
जदयू के दलित जनाधार में इजाफा
राज्य सरकार के इन फैसलों से एससी-एसटी, पिछड़े वर्ग व अल्पसंख्यक छात्रों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्वीकार्यता बढ़ी है। राजग में जदयू के दलित जनाधार में इजाफा हुआ है। दिल्ली के मुखर्जी नगर में केंद्रीय सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहे दलित वर्ग के छात्र सुनील रजक व नीरज पासवान कहते हैं कि नीतीश कुमार ने अच्छा फैसला किया है। इससे योग्य दलित छात्र आर्थिक कारणों से नहीं पिछड़ेंगे।
…और इस साइड इफेक्ट का भी डर
हालांकि, दिल्ली के ही मुखर्जी नगर में सिविल सेवाओं की तैयारी कर रहे समान्य वर्ग के छात्र अंशुमान सिंह, स्नेहा सिन्हा व आलोक राज सरकार के इस फैसले को राजनीतिक स्टंट मानते हैं। उनके अनुसार गरीब मेधावी सामान्य वर्ग के छात्रों को भी आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। उनके अनुसार दलित वोट बैंक को साधने की ऐसी कोशिशों से सामान्य वर्ग के शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी बढ़ जाएगी, जिससे आक्रोश पैदा होगा