सिंधु जल समझौते पर रोक से तबाह हो सकती है पाक अर्थव्यवस्था, 90 फीसदी खेती पर बर्बादी का बादल मंडराया

 पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता रोक दिया. इस समझौते को रोकने से पाकिस्तान पर क्या असर पड़ने वाला है और इसे लेकर अब पाकिस्तान के पास क्या विकल्प बचे हैं. इस आर्टिकल के जरिए समझने की कोशिश करते हैं.

: पहलगाम में हुआ आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं. दिल्ली में बुधवार को हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट बैठक में भारत ने सिंधु जल समझौते को रोकने समेत कई अहम फैसले लिए. जिसमें सिंध जल समझौता पाकिस्तान के लिए काफी जरूरी है. ये पहली बार है जब भारत ने 65 सालों में पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल समझौते पर रोक लगाई है. जबकि इससे पहले भी दोनों देशों के बीच तीन बार युद्ध हो चुका है लेकिन भारत ने कभी पाकिस्तान का पानी नहीं रोका, लेकिन इस बार भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठान ली है. क्योंकि कि पाकिस्तान में कृषि, पीने के लिए पानी और बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा सिंधु जल समझौते पर ही निर्भर है. ऐसे में इस समझौते पर रोक लगाकर भारत ने पाकिस्तान को आर्थिक मोर्चे पर चोट पहुंचाने की कोशिश की है.

क्यों पाकिस्तान के लिए जरूरी है सिंधु जल समझौता?

सिंधु जल समझौता पाकिस्तान के लिए काफी अहम है. ये समझौता 19 सितंबर 1960 को पाकिस्तान के शहर कराची में हुआ था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत पाकिस्तान को खेती की 90 प्रतिशत जमीन के लिए पानी मिलता है. जो 4 करोड़ 70 लाख एकड़ के बराबर है. पाकिस्तान की 23 प्रतिशत अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है. जिससे 68 प्रतिशत पाकिस्तानियों का जीवन चल रहा है. ऐसे में सिंधु जल समझौता रोकने से पाकिस्तान आर्थिक मोर्चे पर बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है. यही नहीं इस समझौते को रोकने से पाकिस्तान में ब्लैकआउट का खतरा भी बढ़ गया है. क्योंकि पाकिस्तान के मंगल और तारबेला हाइड्रोपावर डैम सिंधु नदी के पानी पर ही निर्भर हैं. जिससे पाकिस्तान के बिजली उत्पान में 30 से 50 फीसदी तक की कटौती हो सकती है. जिससे पाकिस्तान के औद्योगिक उत्पादन और रोजगार पर भारी असर पड़ेगा.

जानें क्या है भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता?

दरअसल, सिंधु नदी प्रणाली में सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज नदियां शामिल हैं. इन नदियों के किनारे का इलाका करीब 11 लाख 20 हजार किमी में फैला हुआ है. जिसमें 47 प्रतिशत जमीन पाकिस्तान जबकि 39 फीसदी जमीन भारत में आती है, वहीं 8 प्रतिशत भूमि चीन और 6 फीसदी जमीन अफगानिस्तान में है. इन इलाकों में करीब 30 करोड़ लोग रहते हैं. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले पंजाब और सिंध के बीच इन नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर झगड़ा शुरू हो गया था. 1947 में दोनों देशों के इंजीनियर्स के बीच स्टैंडस्टिल समझौता हुआ. जिसके तहत दो मुख्य नदियों से पाकिस्तान को पानी मिला, लेकिन ये समझौता 1948 में टूट गया. उसके बाद 1951 से 1960 तक विश्व बैंक की मध्यस्थता के तहत पानी के बंटवारे की बात हुई. आखिर में 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल समझौता अमल में आया. जिसके तहत सिंधु नदी का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को दिया गया.

क्या पाकिस्तान के पास अभी भी बचा है कोई विकल्प?

भारत ने सिंधु समझौते को रोक दिया है. जिससे पाकिस्तान को आर्थिक मोर्चे पर भारी नुकसान होगा. हालांकि सिंधु जल समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ है ऐसे में पाकिस्तान एक बार फिर से विश्व बैंक के पास इसे लेकर जा सकता है. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि पाकिस्तान भले ही इस मुद्दे को किसी भी मंच पर उठाए लेकिन सभी को पता है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले में कहीं न कहीं पाकिस्तान का ही हाथ है. ऐसे में कोई भी वैश्विक संस्थान पाकिस्तान का साथ नहीं देगा. लेकिन पाकिस्तान के पास चीन से मदद मांगना भी एक विकल्प है. हालांकि यहां भी पाकिस्तान को राहत नहीं मिल सकती, क्योंकि चीन ने भी पहलगाम में हुए हमले की निंदा की है और वह जानता है कि आतंकवाद को पनाह देने वाला सिर्फ पाकिस्तान ही है. ऐसे में चीन इस मुद्दे पर पाकिस्तान का शायद ही समर्थन करेगा.

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