अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर में कौन पड़ेगा भारी? दोनों देशों को किन चुनौतियों का करना पड़ सकता है सामना

अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर अब अपने चरम पर पहुंच चुकी है. अमेरिका ने हाल ही में चीन पर 100 प्रतिशत और टैरिफ लगा दिया. अब अमेरिकी इम्पोर्ट होने वाले चीनी सामान पर कुल टैरिफ 245 प्रतिशत हो गया.

अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर बढ़ती जा रही है. अमेरिका ने हाल ही में चीन पर 100 प्रतिशत और टैरिफ लगा दिया है. इसके साथ ही अमेरिका इम्पोर्ट होने वाले चीनी सामान पर कुल टैरिफ 245 प्रतिशत हो गया है. आपको बता दें कि चीन ने 11 अप्रैल को अमेरिकी सामान पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगाया था. इसके जवाब में ट्रंप ने नया टैरिफ लगाया है. इससे पहले चीन का बयान सामने आया था कि अब अमेरिका की ओर से लगाए किसी भी अतिरिक्त टैरिफ का वह जवाब नहीं देने वाला है. आइए जानतें हैं कि इस वॉर में किसका पलड़ा भारी है.

इस मामले को बातचीत के जरिए सुझाना चाहिए: चीन

अमेरिका की ओर से नए टैरिफ के ऐलान के बाद से चीन का कहना है कि वह अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर करने से नहीं डरते हैं. चीन का मानना है ​कि अमेरिका को इस मामले को बातचीत के जरिए सुझाना चाहिए. इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि चीन को बातचीत की शुरुआत करनी चाहिए. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान का कहना है कि अगर अमेरिका चाहता है ​कि इस मामले का हल हो तो उसे बेमतलब का दबाव नहीं बनाना चाहिए. उसे डराना और ब्लैकमेल की प्रथा को बंद करना चाहिए. चीन के साथ बराबरी, सम्मान और आपसी हित के आधार पर बात करनी चाहिए.

टैरिफ से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को क्या होगा नुकसान?

इस वॉर का असर अमेरिका पर भी होगा. इससे उसकी इकोनॉमी पर दवाब पड़ सकता है. चीनी सामानों पर ज्यादा टैरिफ लगने से अमेरिका में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और खिलौनों की कीमतें बढ़ेंगी. इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ेगा. चीन के जवाबी टैरिफ से अमेरिकी कृषि उत्पादों का निर्यात पर असर पड़ेगा. इससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है.

टैरिफ वॉर के कारण अमेरिकी शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव देखा गया है, जिससे निवेशकों का विश्वास डगमगा रहा है. इस वॉर से सप्लाई चेन में रुकावट हो रही हैं. इस तरह से अमेरिकी कंपनियों, खासकर टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में लागत में इजाफा होने वाला है. टैरिफ से बढ़ती कीमतों और आयात लागत मुद्रास्फीति को बढ़ाएगी. इससे फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीतियों पर असर पड़ेगा.

टैरिफ वॉर से अमेरिका को कितना नुकसान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारी टैरिफ के बावजूद चीन झुकने को बिल्कुल तैयार नहीं है. चीन टॉप तीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. चीन किसी भी कीमत पर यह संदेश नहीं देगा कि वह कमजोर है. ऐसे में यह संदेश देने की कोशिश में वह ट्रंप के टैरिफ का डटकर सामना करेगा. चीन टैरिफ वॉर का उपयोग अपनी आंतरिक  मांग पर फोकस करने को लेकर करेगा.

इससे स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलने वाला है. चीन अमेरिका के सामने लगातार मजबूत हो रहा है. इसकी वजह यूरोपीय संघ, आसियान और अफ्रीकी देशों में उसका व्यापार लगातार बढ़ रहा है. इस तरह से अमेरिका पर उसकी निर्भरता कम हो रही है. टैरिफ के दबाव से चीन अपनी चिप और हाईटेक उद्योगों में निवेश को बढ़ाने की कोशिश में लगा है.

अमेरिकी उत्पादों पर 125 फीसदी तक टैरिफ लगाकर चीन अमेरिका के​ निर्यात पर खासकर कृषि और ऊर्जा क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाएगा. कुछ विकासशील देशों और क्षेत्रों के साथ सहानुभूति हासिल कर चीन टैरिफ के खिलाफ समर्थन जुटाने का प्रयास करेगा. चीन की इकोनॉमी निर्यात केंद्रित यानी Export Centric है. इसमें अमेरिका उसका सबसे बड़ा बाजार माना जाता है.

चीन पर भी होगा असर

बीते वर्ष चीन ने अमेरिका में 463 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट किया. ऐसे में अमेरिका के टैरिफ से चीन को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. टैरिफ अधिक होने से मांग में कमी आने वाली है, इससे चीन की फैक्ट्रियों को काफी नुकसान हो सकता है. चीन में बेरोजगारी बढ़ सकती है.

इसके साथ निवेशकों का भी विश्वास कमजोर होगा.  इलेक्ट्रॉनिक्स और सोलर पैनल जैसे क्षेत्र में वह अमेरिकी बाजार पर निर्भर है. चीन इसके उत्पादन में कटौती करेगा. लंबे वक्त तक टैरिफ वॉर चलने से वैश्विक मंदी की आशंका बढ़ेगी. इससे चीन के विकास की रफ्तार धीमी पड़ेगी.

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