मिसेज मूवी रिव्यू: सान्या मल्होत्रा की फिल्म कहानी हर महिला को अपनी लगेगी

  • फिल्म ‘मिसेज’ एक घरेलू महिला की अनकही कहानी दिखाती है, जो समाज की परंपराओं के बीच घुटन महसूस करती है। सान्या मल्होत्रा की शानदार एक्टिंग और दमदार निर्देशन इसे देखने लायक बनाते हैं।

लेखक हरमन बावेजा , अनु सिंह चौधरी , नेहा दुबे और जियो बेबी

डायरेक्टर-आरती कडव

प्रोड्यूसर-हरमन बावेजा , पम्मी बावेजा और ज्योति देशपांडे

बॉलीवुड एक्ट्रेस सान्या मल्होत्रा अपनी नई फिल्म ‘मिसेज’ में शानदार एक्टिंग के लिए तारीफें बटोर रही हैं। सोशल मीडिया पर इस फिल्म के चर्चे हैं। यह आम सी दिखने वाली फिल्म, जिसमें कुछ ही पॉपुलर चेहरे नजर आएंगे, अचानक से एक तरह की ऑडियंस के लिए बेहद खास बन गई है। हां, इस फिल्म के लिए दो तरह की ऑडियंस होना स्वाभाविक सा लगेगा। एक तरह की ऑडियंस वह, जो सान्या के किरदार से जुड़ जाएगी, और दूसरी ऑडियंस वह, जो फिल्म के मेल लीड एक्टर की कहानी को हर घर की कहानी समझकर आगे बढ़ जाएगी। ‘मिसेज’ मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ की हिंदी रीमेक है। तुलना करने पर यह थोड़ी फीकी जरूर लगेगी, लेकिन प्रभाव छोड़ने में कसर नहीं छोड़ेगीफिल्म एक ऐसी महिला की कहानी है, जो हर घर का एक ऐसा हिस्सा है, जिसके बारे में कोई बात नहीं करता। एक पढ़ी-लिखी लड़की कैसे इस सभ्य समाज में सिर्फ किचन और परिवार को संभालने वाली घरेलू महिला बन जाती है, यह फिल्म हर उस छोटे मुद्दे पर बात करती है, जिसे अक्सर “छोटी-सी तो बात” कहकर टाल दिया जाता है।

कहानी शुरू होती है ऋचा (सान्या मल्होत्रा) की अरेंज मैरिज से। वाई-फाई पासवर्ड कनेक्ट करने के साथ दिल भी जुड़ जाते हैं। शुरू में यह कहानी प्यार भरी और प्यारी लगेगी। दिवाकर, महिलाओं का डॉक्टर है, जिससे उम्मीद की जा सकती है कि उसे महिलाओं के दर्द की थोड़ी ज्यादा समझ होगी। ऋचा की शादी के बाद की जर्नी सास के साथ किचन से शुरू होती है और किचन पर ही खत्म होती है। फिल्म सिलबट्टे की चटनी के स्वाद से लेकर सब्जी काटने की शेप और साइज परफेक्ट होने तक की बातें करती है। ऋचा कब प्यार भरे रिश्ते में घुटने लगती है, यह बिना स्क्रीन पर दिखाए एक तरह की ऑडियंस को महसूस होने लगेगयह कहानी सिर्फ ऋचा की नहीं, उसकी सास और मां की भी है। सास, जिसने इकोनॉमिक्स की डिग्री ली हुई है, लेकिन उसके दिन की शुरुआत पति के जूते-चप्पल और कपड़े सेट करने से होती है। पति और बेटे की प्लेट में गर्म फुल्का होना चाहिए, कैसरोल में रखी रोटियां नहीं। रोटी और फुल्के के बीच का फर्क शायद आपको भी पहले नहीं पता होगा।

फिल्म में कुछ सीन हैं, जो एक तरह की ऑडियंस को अपने से लगेंगे। फिल्म में एक सीन है जब ऋचा, किचन में घंटों की मेहनत के बाद ससुर और पति से खाने की तारीफ सुनने के लिए खड़ी रहती है। एक अन्य सीन में, जब ऋचा जॉब इंटरव्यू के लिए तैयार होने के बावजूद घर से निकल नहीं पाती। एक और सीन में बुआ सास कहती है कि “तुम्हें तो किचन में चुगने की आदत है,” और एक अन्य सीन में दिवाकर कहता है कि “डांस भी कोई काम है? तुम्हें तो अपनी मां की तरह अच्छा खाना बनाना आना चाहिए।”

फिल्म बेहद खास है, जो आज की घरेलू महिलाओं के मुद्दों को करीब से दिखाती है। हां, फिल्म का अंत बेहद शांत लगता है। हालांकि, असली जीवन के अंत में भी ऐसा ही कुछ होता है। आरती कडव ने शानदार डायरेक्शन किया है। सान्या मल्होत्रा अपने चेहरे के एक्सप्रेशन से बहुत कुछ कह जाती हैं। दिवाकर का किरदार निभाने वाले एक्टर निशांत दहिया, कंवलजीत सिंह और वरुण वडोला ने अच्छा काम किया है। यह फिल्म Zee5 पर देखी जा सकती है।

 

 

 

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