जेपी इंफ्राटेक प्रोजेक्ट्स में देरी से नाराज होमबायर्स का प्रदर्शन, एनसीएलटी में याचिका दायर कर जताई चिंता

नोएडा। जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जिल) के हजारों होमबायर्स अब निर्माण कार्य की देरी से त्रस्त होकर आवाज बुलंद कर रहे हैं। राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) द्वारा 7 मार्च 2023 को सुरक्षा रियल्टी की समाधान योजना को मंजूरी मिले एक साल से अधिक का समय बीत चुका है, फिर भी 22,000 से ज्यादा होमबायर्स आज भी अपने फ्लैट की डिलीवरी का इंतजार कर रहे हैं।

लगभग 21 महीनों के धैर्य के बाद, जेपी इंफ्राटेक रियल एस्टेट अलॉटीज वेलफेयर सोसाइटी ने आखिरकार एनसीएलटी में याचिका दायर की है, जिसकी सुनवाई 15 अप्रैल को संभावित है।

याचिका का मुख्य उद्देश्य एक निगरानी समिति का गठन करना है, जो निर्माण की प्रगति पर नजर रखे और यह सुनिश्चित करे कि हर खरीदार को समय पर उसका वादा किया गया घर मिले।

इस याचिका को भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) का समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर, समाधानकर्ता सुरक्षा रियल्टी की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। विरोध के प्रमुख कारणों में वास्तविक प्रगति का अभाव, सभी अनुमतियां मिलने के बावजूद सुरक्षा रियल्टी द्वारा निर्माण कार्य शुरू करने में कोई ठोस प्रयास नहीं करना शामिल है।

समाधान योजना के अनुसार, 12,000 श्रमिकों की आवश्यकता थी, परंतु वर्तमान में मात्र 2,000 श्रमिक कार्यरत हैं। साथ ही, भुगतान न होने के कारण ठेकेदार परियोजनाएं छोड़ रहे हैं। कंपनी ने 3,000 करोड़ की फंडिंग व्यवस्था समयसीमा में पूरी नहीं की है। योजना की प्रभावी तिथि के चार महीने बाद भी ठोस निर्माण नहीं हुआ है। समाधान योजना में नामित प्रमुख प्रबंधन कर्मी अब नहीं हैं और वर्तमान प्रबंधन की खरीदारों से कोई संवाद नहीं है।

वहीं, वादा किया गया मोबाइल ऐप अब तक लॉन्च नहीं हुआ है और साप्ताहिक अपडेट्स भी बंद कर दिए गए हैं। गार्डन आइल्स, ऑर्चर्ड्स, सनीवेल होम्स जैसी परियोजनाएं अब भी यूपी रेरा में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट के लंबित मामलों का हवाला देकर सुरक्षा रियल्टी निर्माण में हो रही देरी को उचित ठहराने की कोशिश कर रही है।

होमबायर्स ने आरोप लगाया है कि सुरक्षा रियल्टी केवल अपने आर्थिक हितों की रक्षा कर रही है, प्रशासनिक शुल्कों में मनमानी वृद्धि कर रही है, आईबीसी अवधि के लिए भी ब्याज वसूल रही है, पुनः बिक्री को बढ़ावा दे रही है जबकि निर्माण बंद है, 400 करोड़ से अधिक की राशि समूह कंपनियों की ओर डायवर्ट कर चुकी है, ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त करने में असफल रही है, संरचनात्मक ऑडिट रिपोर्ट साझा नहीं कर रही और अवास्तविक डिलीवरी टाइमलाइन देकर ग्राहकों को गुमराह कर रही है।

 

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