संजय सक्सेना
मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को कानून बनाकर एक नया इतिहास लिख दिया है।इन संशोधनों को ‘उम्मीद’ का नाम दिया गया है,लेकिन इंडिया गठबंधन में शामिल तमाम राजनैतिक दलों के साथ-साथ समाजवादी पार्टी ने भी मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिये मोदी सरकार द्वारा लाये गये वक्फ संशोधन का खुलकर विरोध किया,लेकिन मुस्लिम राजनीति को करीब से जानने वाले कुछ लोगों को लग रहा है कि इससे सपा को फायदे की जगह नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। क्योंकि मुस्लिमों में कई पिछड़ी बिरादरियां इस बिल का समर्थन भी कर रही हैं। इसमें ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल, जमीयत हिमायत उल इस्लाम और पसमांदा मुस्लिम महाज जैसे मुस्लिम संगठन शामिल हैं,जिन्होंने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन किया है. इन संस्थाओं ने वक्फ बोर्डों पर इतने सालों से काबिज रहे लोगों से तीखे सवाल पूछे हैं. इन संगठनों का दावा है कि वक़्फ बिल पास होने से सिर्फ वो मुसलमान परेशान हैं जो खुद वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति पर कब्जा किए बेठे हैं.पसमांदा (पिछड़े) मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाला यह संगठन वक्फ बिल के पक्ष में है. सितंबर 2024 में जेपीसी की बैठक में इसने बिल को 85 प्रतिशत मुस्लिमों के लिए फायदेमंद बताया था। इस संगठन का कहना है कि यह बिल वक्फ बोर्ड में सुधार लाकर हाशिए पर पड़े मुस्लिमों को लाभ पहुंचाएगा,लेकिन यह बात समाजवादी पार्टी जैसे दलों के नेताओं को समझ में नही आ रही है।
यही वजह है लोकसभा में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बिल के विरोध में अपने मुस्लिम सांसदों की ‘फौज’उतार दी। आजमगढ़ के सांसद धमेन्द्र यादव,संभल के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क,कैराना की सासंद इकरा हसन चौधरी,गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी,रामपुर के सांसद मोहिबुल्ला नदवी ने बिल के विरोध में मोदी सरकार को खूब खरी खोटी सुनाई, तो राज्यसभा में प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने बिल के विरोध में मोर्चा संभाला। इनमें से एक मुस्लिम सांसद ने तो चर्चा के दौरान धमकी भरी आवाज में यहां तक कह दिया कि मुसलमान इस कानून को नहीं मानेंगे। सपा की सांसद इकरा चौधरी ने बहस के दौरान झूठा आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में ईद पर मुसलमानों को नमाज नहीं पढ़ने दी गई।
समाजवादी पार्टी ने वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ जिन सांसदों को बोलने का मौका दिया था,उसमें या तो यादव कुनबे से जुड़े सांसद थे या फिर मुस्लिम सांसद। सपा की तरफ से सात सांसदों ने अपनी बात विस्तार से रखी जिसमें चार मुसलमान सांसद थे और तीन मुलायम कुनबे के सांसद। समाजवादी पार्टी ने अपने 37 सांसदों में से जिन सांसदों को बहस के लिये चुना उसमें एक भी यादव कुनबे से इत्तर या फिर गैर मुस्लिम सांसद नहीं था। इसको लेकर अब समाजवादी पार्टी को शक की नजर से देखा जा रहा है। सपा के हिन्दू सांसदों के बारे में खबरें आ रही हैं कि उन्हें अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। पार्टी के बेइंतहा मुस्लिम प्रेम के चलते हिन्दू बाहुल्य लोकसभा सीटों से चुनाव जीतने वाले हिन्दू सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में मुंह दिखाने लायक नहीं रह गये हैं। इस बात का अहसास तब और मजबूत हो गया जब वक्फ बिल पर समाजवादी पार्टी के मुस्लिम परस्त रवैये के बीच अयोध्या लोकसभा चुनाव सीट से जीतने वाले सपा सांसद अवधेश प्रसाद अचानक रामलला के दर्शन करने पहुंच गए,जबकि अभी तक अखिलेश अपने इस सांसद को पार्टी का मुखौटा बनाये घूम रहे थे। अवधेश चुनाव जीतने के 11 महीने बाद रामलला के दर्शन करने पहुंचे थे। यह तब हुआ जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव के ‘इशारे’ पर अभी तक अवधेश प्रसाद रामलला के मंदिर जाने से बचते रहे थे,लेकिन अब उन्हें भी लगने लगा है कि यदि उनकी भी छवि मुस्लिम परस्त बन गई तो हिन्दू बाहुल्य रामलला की नगरी में आगे सियासत करना उनके लिए आसान नहीं होगी।यही स्थिति समाजवादी पार्टी के अन्य उन सांसदों की भी है जो 2024 के आम चुनाव में हिन्दू बाहुल्य क्षेत्र से चुनाव जीत कर आये थे।इसी के चलते इन सांसदों का वक्फ बिल के समर्थन में कोई बयान भी नहीं आया है।
बात इससे आगे की कि जाये तो समाजवादी पार्टी ने खासकर उन सांसदों को बिल का विरोध करने का मौका दिया जिनकी छवि पहले से ही काफी विवादित है और इन सांसदों की पहचान हिंदुओं और उनके देवी देवताओं को अपमानित करने वाली रही हैं। एक-एक कर इन सांसदों की बात की जाये तो संभल के सांसद जिया-उर-रहमान के दिवंगत सांसद पिता अक्सर हिन्दुओं के खिलाफ जहर उगला करते थे। उन्हीं की तर्ज पर जिया उर रहमान बर्क चल रहे हैं। नवंबर 2024 में संभल की शाही मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क उठी, जिसमें चार लोगों की मृत्यु हुई और कई घायल हुए। इस घटना के बाद, पुलिस ने सपा सांसद जिया उर रहमान के खिलाफ उपद्रव की साजिश रचने का मुकदमा दर्ज किया था। बर्क पर बिजली चोरी और संभल हिंसा के दौरान एक वर्ग विशेष के लोगों को भड़काने का भी आरोप है।
इसी तरह से कैराना की सपा सांसद इकरा हसन चौधरी भले ही सांसद हों,लेकिन उनकी स्वयं की पृष्ठभूमि कोई राजनैतिक नहीं है। समाजवादी पार्टी कैराना की सांसद इकरा हसन के भाई, नाहिद हसन, का विवादों से गहरा नाता रहा है। वह समाजवादी पार्टी के विधायक हैं और उनके खिलाफ लगभग डेढ़ दर्जन आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें गैंगस्टर एक्ट के तहत आरोप भी शामिल हैं. नाहिद की दबंगई के कारण कई हिन्दू परिवार कैराना से पलायन को मजबूर हो गये थे। जनवरी 2022 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले, नाहिद हसन को शामली में गिरफ्तार किया गया था। जिस कारण वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाये, इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उनकी बहन इकरा हसन को कैराना सीट से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल करा दिया। आज इकरा भाई की सोच को ही आगे बढ़ा रही हैं।
समाजवादी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी भी वक्फ बिल के दौरान मोदी सरकार पर खूब बरसे थे,अफजाल अंसारी माफिया मुख्तार अंसारी के बड़े भाई हैं। गाजीपुर के आसपास मुख्तार की तूती बोलती थी,कहा यह जाता था कि मुख्तार के पास मसल पॉवर थी तो इसके पीछे दिमाग अफजाल अंसारी का रहता था। समाजवादी पार्टी के गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी ने 12 फरवरी 2025 को शादियाबाद में संत रविदास जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में महाकुंभ स्नान पर विवादित टिप्पणी की। इससे पहले भी उन्होंने साधु-संतों और धार्मिक प्रथाओं पर टिप्पणियां की थी, जिनसे विवाद उत्पन्न हुआ था। मुख्तार अंसारी की मौत के समय अफजाल अंसारी को गाजीपुर की जिलाधिकारी से भी अभद्रता करते देखा गया था।
समाजवादी पार्टी के रामपुर से सांसद मोहिबुल्ला नदवी भी वक्फ बिल के खिलाफ खूब दहाड़े थे,नदवी को अखिलेश ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान की इच्छा के खिलाफ लोकसभा का टिकट दिया था। नदवी ने चुनाव प्रचार के दौरान एक बयान में जेल में बंद आजम का बिना नाम लिये कहा था कि जेल सुधार गृह होती है। जिससे पार्टी के भीतर तनाव बढ़ा। आजम खान की पत्नी तज़ीन फातिमा और मुरादाबाद की सांसद रुचि वीरा ने नदवी के इस बयान की आलोचना की। इन घटनाओं से समाजवादी पार्टी के भीतर आंतरिक मतभेद और रामपुर की राजनीति में तनाव स्पष्ट होता है। नदवी का पारिवारिक जीवन भी विवादों से भरा है। नदवी का अपनी एक बीवी से तलाक का मुकदमा चल रहा है,उसे वह कोर्ट के आदेश के बाद भी गुजारा भत्ता नहीं दे रहे हैं।
समाजवादी पार्टी ने वक्फ बिल पर चर्चा के लिये जिन सांसदों को आगे किया,उसके चलते ही सपा पर आरोप लग रहा है कि अब उसके आइडियल मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम,दारा शिकोह, कृष्ण भक्त रसखान,वीर अब्दुल हमीद(परमवीर चक्र विजेता), बिस्मिल्लाह खां (शहनाई वादक), डॉ. अब्दुल कलीम अजीज (इतिहासकार), अब्दुल क़य्यूम अंसारी (स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता), शाह मुबारक अली (शिक्षाविद और समाज सुधारक), ज़ोहरा सहगल (अभिनेत्री और नृत्यांगना), कैप्टन अब्बास अली (स्वतंत्रता सेनानी) जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के अधिकारी थे। आज़ादी के बाद समाजवादी पार्टी में सक्रिय रहे। पर इन हस्तियों के नाम पर समाजवादी पार्टी में कोई चर्चा नहीं होती हैै। बल्कि बाबर, औरंगजेब, बाहुबली अतीक अंसारी,मुख्तार अंसारी,यासीन मलिक,दाऊद,याकूब मैनन,अफजल गुरू जैसे विवादित लोग सपा में सिरमौर है। समाजवादी पार्टी की जब सरकार बनती है तो आतंकवादियों को जेल से छोड़ने की साजिश रची जाती है।