गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कोई भी प्रौद्योगिकी संस्थान अपनी जिम्मेदारी को परिसर तक सीमित नहीं रख सकता। समाज और राष्ट्र के प्रति भी उसकी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। आज तकनीकी से मानव जीवन में काफी आसानी हो रही है, लेकिन महंगी तकनीकी का इस्तेमाल कर पाना सबके लिए संभव नहीं है। ऐसे में प्रौद्योगिकी संस्थानों को जीवनोपयोगी तकनीकी का किफायती और टिकाऊ मॉडल विकसित करने की जिम्मेदारी उठाने के लिए आगे आना होगा।
सीएम योगी ने सोमवार को मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) में 91 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से 13 विकास कार्यों का लोकार्पण और शिलान्यास किया।
उन्होंने कहा कि जब तकनीकी महंगी होगी तो आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाएगी। आज जन सरोकार से जुड़े विषयों जैसे आवास, पर्यावरण, स्वच्छता आदि के लिए सस्ती और टिकाऊ तकनीकी समय की मांग है। ऐसी तकनीकी आनी चाहिए, जिससे आम जन सस्ता और टिकाऊ आवास बना सके। सरकार ग्रामीण क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान बनाने के लिए 1.20 लाख रुपए देती है, क्या हम ऐसी तकनीकी अपने स्तर पर विकसित कर सकते हैं कि इसी धनराशि के अंदर ही गरीब अपना मकान बना सके? यह मकान नौ माह की बजाय तीन माह में ही बन सके?
उन्होंने ईंट-भट्ठे के कारण भूमि की उर्वरता और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि ईंट का विकल्प खोजने के लिए नई तकनीकी खोजने तथा सॉलिड-लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए देसी पद्धतियों में समय के अनुरूप नवाचार करने की अपेक्षा जताई।
मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सस्ती और टिकाऊ तकनीकी की आवश्यकता इसलिए भी है कि सरकार कोई भी पैसा अपने जेब से नहीं देती है। यह पैसा समाज के लोगों से ही प्राप्त होता है। सरकार को कर (टैक्स) माध्यम से जो पैसा प्राप्त होता है, उसे बजट बनाकर अलग-अलग विभागों के माध्यम से जनता के ही उपयोग के लिए खर्च किया जाता है। ईज ऑफ लिविंग के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हर व्यक्ति तक सस्ती और टिकाऊ तकनीकी की पहुंच आवश्यक है। यह भी ध्यान रखना होगा कि तकनीकी हमसे संचालित हो, हम तकनीकी से संचालित न हों। तकनीकी ने जीवन में बहुत परिवर्तन लाया है। लोगों के जीवन को बहुत आसान बनाया है। शासन की सुविधा और शासन द्वारा अपनाई गई तकनीक एक व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन कर सकते हैं, इसके कई प्रमाण हैं। प्रदेश के 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन वितरण की पारदर्शी व्यवस्था में भी तकनीकी का ही योगदान है। इस व्यवस्था के पहले 2017 में जब एक ही दिन 80 हजार उचित मूल्य वाली दुकानों की जांच की गई तो 30 लाख फर्जी राशन कार्ड पकड़ में आए थे।
मुख्यमंत्री ने बताया कि पहले वृद्धजनों, निराश्रित महिलाओं और दिव्यांगजन को महज 300 रुपए मासिक पेंशन मिलती थी और मैनुअल व्यवस्था के कारण उसमें काफी पैसा किराए और बाबू के कट में चला जाता था। अब सरकार ने न केवल पेंशन की राशि बढ़ाकर एक हजार रुपए मासिक कर दी, बल्कि सीधे खाते में रकम ट्रांसफर कर किराए और बाबू के कट से भी मुक्ति दिला दी है। यह तकनीकी का जनहितकारी इस्तेमाल है।
सीएम योगी ने गोरखपुर में नगर निगम द्वारा दूषित जल के शोधन के लिए अपनाई गई देसी पद्धति की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि महानगर का दूषित जल राप्ती नदी में सीधे गिरने के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नगर निगम पर भारी भरकम जुर्माना लगा दिया था। तब नगर निगम के अधिकारियों ने एसटीपी लगाने के लिए 110 करोड़ रुपए का प्रस्ताव तैयार किया। जब यह प्रस्ताव उनके पास आया तो उन्होंने देसी पद्धति से वाटर ट्रीटमेंट करने का सुझाव दिया था। इस पद्धति में सिर्फ 10 करोड़ रुपए का खर्च आया। गोरखपुर के इस वाटर ट्रीटमेंट का प्रेजेंटेशन नीति आयोग के सामने भी हो चुका है। इस पद्धति की सराहना जर्मनी जैसे यूरोपीय देश ने भी की है।
उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), रोबोटिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग समय की मांग है। एआई और रोबोटिक्स से मानव जीवन की तमाम परेशानियों को दूर किया जा सकता है। इस संबंध में उन्होंने कुछ नगर निकायों की तरफ से सीवर सफाई के लिए रोबोटिक्स के हो रहे इस्तेमाल की चर्चा की। साथ ही यह आह्वान किया कि इस रोबोटिक्स के ऐसे मॉडल भी बनने चाहिए, जो कम खर्चीले हों, जिससे आमजन भी इसका इस्तेमाल कर सकें।
सीएम योगी ने कहा कि जब हम विकास की अवधारणा की बात करते हैं तो भारतीय मनीषा ने पश्चिम के सस्टेनेबल डेवलपमेंट (सतत विकास) की बजाय समग्र विकास की परिकल्पना को सामने रखा। हमारा दृष्टिकोण समग्रता को लेकर होता है। सतत विकास में ध्यान किसी एक ही पक्ष पर होता है। जबकि, समग्र विकास में अलग-अलग पक्षों से सबको साथ लेकर चलने की बात अंतर्निहित होती है। यह भारतीय दृष्टि है कि हम समग्रता में विश्वास करते हुए विकास पथ पर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने प्रसन्नता जताई कि मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भी समग्र विकास की परिकल्पना को साकार करने में जुटा हुआ है।
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया के अंदर शिक्षा और तकनीकी में दुनिया का मार्गदर्शन करता था। हम विश्व गुरु कहलाए क्योंकि हम दुनिया में लीड करते थे। सोलहवीं सदी के पहले दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से अधिक थी और यह तब था, जब भारत ने बहुत कुछ खोया था। अगर दसवीं सदी तक दुनिया की जीडीपी में आधे से अधिक हिस्सेदारी अकेले भारत की हुआ करती थी। अंग्रेजों ने अपने कालखंड में यहां के संसाधनों को लूट लिया। अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया।
सीएम ने कहा कि देश के आजाद होने के बाद भी 1947 से लेकर के 2014 तक आते-आते 65 से 70 वर्षों के दौरान भारत दुनिया की केवल ग्यारहवीं अर्थव्यवस्था बन पाया था। जबकि, पिछले 10 वर्ष के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हरेक क्षेत्र में विकास करते हुए देश दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया है। वैश्विक महामारी कोरोना के कालखंड में जब दुनिया के अनेक देश पस्त हो गए थे, तब भारत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अपने नागरिकों को मुफ्त राशन दे रहा था। मुफ्त में जांच, इलाज और वैक्सीन की सुविधा दे रहा था। एक नई पहचान के साथ आगे बढ़ता भारत अगले दो वर्ष में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है। आज भारत का विकास दर दुनिया के किसी भी देश से बेहतर दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत एक बार फिर दुनिया को लीड करने की ओर अग्रसर है।