डॉ. मोहन यादव का सोनिया गांधी के शिक्षा नीति पर उठाए सवाल पर पलटवार, कहा-देश से माफी मांगें

भोपाल। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी के नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर उठाए गए सवालों पर पलटवार किया है। उन्होंने सोनिया गांधी के विचारों को उनके सीमीति ज्ञान का परिणाम बताया। उन्होंने कहा है कि सोनिया गांधी के दुर्भाग्यजनक विचार न ही उनके लिए और न ही उनकी पार्टी के लिए ठीक हैं, उन्हें इसके लिए तुरंत माफी मांगनी चाहिए।मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सोमवार देररात सोशल मीडिया पर कहा कि देश की शिक्षा व्यवस्था पर सोनिया गांधी के विचार उनके सीमित ज्ञान का परिणाम हैं। कांग्रेस की सरकार में जो शिक्षा नीतियां आईं, वे देश की जड़ों से काटने वाली लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का ही दूसरा रूप थीं, जिसने हमारे महापुरुषों को अपमानित कर, विदेशी आक्रांताओं को महिमामंडित किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 2020 में जो नई शिक्षा नीति आई, उसे मध्य प्रदेश ने सबसे पहले लागू किया। मैंने मुख्यमंत्री बनने के बाद सभी 55 जिलों में पीएम एक्सीलेंस कॉलेज खोले, खेलों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाते हुए, संस्कृति और विरासत को शिक्षा से जोड़ा है। दरअसल, सोनिया गांधी ने एक अखबार में लेख के माध्यम से नई शिक्षा नीति पर सवाल उठाते हुए केन्द्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा है कि केंद्र सरकार शिक्षा के क्षेत्र में अपने सिर्फ तीन कोर एजेंडे को लागू करने पर जुटी है। ये एजेंडे हैं केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकरण। शिक्षा के क्षेत्र में इसके घातक परिणाम होंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने इसी लेख पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सोनिया गांधी पर पलटवार किया है। डॉ. यादव ने सोनिया गांधी के इस लेख की कड़े शब्दों में निंदा की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि संभवतः उन्होंने इस नीति को ठीक से पढ़ा ही नहीं। हमें अपने अतीत पर गर्व होना चाहिए। अगर कोई अतिशयोक्ति और सांप्रदायिक बातें करता है, तो वही असल में सांप्रदायिक है। अगर हम शिवाजी महाराज की तुलना अकबर या औरंगजेब से करते हैं, तो हमारी जड़ें शिवाजी से जुड़ी होनी चाहिए। हमें अपने देश के नागरिकों के प्रति भावना रखनी चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम देश में रहीम और रसखान जैसे कवियों का सम्मान करते हैं, क्योंकि वे भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित थे। लेकिन कुछ शासकों, विशेष रूप से अंग्रेजों को भारत से कोई लगाव नहीं था। उन्होंने शिक्षा प्रणाली पर जोर देते हुए कहा कि आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक मूल्यों को शिक्षा के माध्यम से बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए और भविष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए। हमें उन सभी चीजों से दूर जाना चाहिए, जिन्होंने अतीत में हमारे देश को गुलाम बनाया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन्हीं प्रयासों को शामिल किया गया है।

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