
राजनेताओं को भारतीय इतिहास का ज्ञान कभी भी पर्याप्त नहीं रहा। सुनी सुनाई बात को तूल देकर वे ऐतिहासिक असत्य को तर्क के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण है समाजवादी पार्टी के सांसद का कहना कि चित्तौड़ के राणा सांगा ने लोदी बादशाह इब्राहिम लोदी को हराने और हटाने के लिए उजबेकी लुटेरे मोहम्मद जहीरुद्दीन बाबर को भारत बुलाया था। इस सांसद को अपने गुरु डॉ. राममनोहर लोहिया के इतिहास पर लिखे ग्रन्थों को पढ़ लेना चाहिए था। खासकर लोहिया की किताब “इतिहास चक्र” (Wheel of History)।
भारतीय इतिहास गवाह है कि महाराणा संग्राम सिंह ने जर्जर लोधी साम्राज्य के अंतिम बादशाह इब्राहिम लोदी को कई बार हराया था। बेहतर होता लोहिया का यह अनुयायी खानजादा राजा हसन खान मेवाती का जिक्र करता। यह राजा हसन मेवाती ही थे जो राणा सांगा के साथ बाबर से लड़े थे।
खानजादा राजा हसन खान मेवाती जहीरूद्दीन बाबर से खंडवा (कंवाहा) के मैदान में लड़े थे। चित्तौड़ के राजा संग्राम सिंह के साथ थे। इसीलिए बाबर को राजपूत और सुन्नी-अफगान संयुक्त सेना से मुकाबला करना पड़ा था। राजा हसन खान का जन्म अलावल खां मेवाती के घर मे हुआ था। उनके वंशज करीब 200 साल मेवात की रियासत पर राज करते रहे। बाबर उस समय हसन खां मेवाती से ही भयभीत था। हसन खां का क्षेत्र (मेवात) दिल्ली के समीप था। इस कारण हमेशा ही वह बाबर की आंखों में चुभता रहा। अतः बाबर ने राजा हसन खां को दोनों का एक ही धर्म होनी की बात कही। उसे लालच दिया, ताकि मेवात की रियासत की गद्दी पर कब्जा किया जा सके। लेकिन राजा हसन खां बाबर के लालच में न आए। उन्होंने कहा था : “तू विदेशी हमलावर है, इसलिए मैं अपने वतन के भाई राणा सांगा का साथ दूंगा।” खंडवा के मैदान में भयंकर युद्ध शुरू हुआ था। राजा हसन खां मेवाती अपने लाव-लश्कर और 1,200 सैनिकों को साथ लेकर राणा सांगा की मदद के लिए युद्ध के मैदान में कूद पड़े। लड़ते हुए हसन खां व उनके बेटे नाहर खान 15 मार्च 1527 को मैदान में शहीद हो गए। बाबर ने राजा हसन खान मेवाती को पत्र लिखा था : “बाबर भी कलमा-गो है और हसन ख़ान मेवाती भी कलमा-गो है, इस प्रकार एक कलमा-गो दूसरे कलमा-गो का भाई है। इसलिए राजा हसन ख़ान मेवाती को चाहिए की बाबर का साथ दे।”
राजा हसन ने बाबर को खत में लिखा : “बेशक़ हसन ख़ान मेवाती कलमा-गो है और बाबर भी कलमा-गो है, मग़र मेरे लिए मेरा मुल्क(भारत) पहले है और यही मेरा ईमान है इसलिए मैं राणा सांगा के साथ मिलकर बाबर के विरुद्ध युद्ध करूगा।” भारतीय मुसलमानों को सदैव याद रखना होगा कि इब्राहिम लोदी भारतीय बादशाह था। भारत में जन्मा, पला और सुल्तान बना। उसे उज्बेकी डाकू जहीरूद्दीन बाबर ने मार डाला था। बाबर ने इब्राहिम पर जेहाद बोला था। क्या विकृति थी ?
बाबर को भारत का निर्माता मानने वाले विकृति मानसिकता की जमात पर कुछ हारे थके राजपूत भी थे। वह डरे हुए थे।
तैमूर ने अपने विरोधियों के खिलाफ, उनकी धार्मिक मान्यताओं के बावजूद, एक अभ्यास तैयार किया। खोपड़ी का टॉवर बनाने का उद्देश्य सिर्फ एक महान जीत दर्ज करना नहीं था, बल्कि विरोधियों को आतंकित करना भी था।
बाबर ने पहले भी दिल्ली पर आक्रमण किया था। अगर राणा सांगा ने उसे बुलाया होता तो उसके पहले के आक्रमण किस उद्देश्य से किए गए थे। 1505 में बाबरनामा में बाबर ये बातें क्यों लिख रहा है कि दिल्ली तैमूर का इलाका है और वो इसे प्राप्त करना चाहता है। उन्होंने कहा कि लोदी के दो रिश्तेदार दौलत खान और अलम लोदी बाबर को बुलाने जाते हैं। सांगा ने न्योता दिया था, इसका उल्लेख सिर्फ बाबर ने किया है. इसके अलावा कोई इतिहासकार इस बात का उल्लेख नहीं करता।
शेखावत कहते हैं कि इब्राहिम लोदी इतना बड़ा शासक नहीं था कि उसके लिए बाबर को बुलाया जाए। सांगा पहले भी लोदी को युद्ध में हरा चुके थे।
राहुल गांधी के कांग्रेसी सांसद जो बाबर-राणा सांगा के विवाद में मुगलों से हमदर्दी जता रहे थे जान लें कि उनके पूर्वज नेहरू की राय क्या थी ? नेहरू ने मुगल साम्राज्य के बारे में अपनी किताब “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” में लिखा है कि औरंगजेब कट्टर था और उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया और उनके मंदिरों को नष्ट किया, जिससे साम्राज्य में असंतोष बढ़ा।