
माता-पिता नहीं चाहते कि उसकी संतानों के बीच ज़रा भी मनमुटाव हो, तो परमात्मा को कितना बुरा लगता होगा जब उसके बंदे धर्म,जाति, त्योहार,मंदिर या मस्जिद को लेकर आपस में लड़ते हैं। मानवता का तकाजा है सामाजिक सौहार्द, और यही परमात्मा की सबसे बड़ी इबादत है। ऐसी इबादत के कुछ रंग लखनऊ की होली में झलकेंगे, और दुनिया को एक बार फिर संदेश देंगे कि भाईचारे, साम्प्रदायिक सौहार्द और मोहब्बत का शहर गंगा-जमुना तहजीब का केंद्र है। यहां मुस्लिम भाई होली के रंगो के समान में रमजान में नमाज ए जुमा का वक्त बढ़ा देते है और नमाज के एहतराम में हिन्दू भाई होली के पारंपरिक जुलूस का समय परिवर्तित कर देते हैं। रमज़ान, होली और नवरात्र के मौसम में कुछ ऊपर वाले ने और कुछ नीचे वालों ने सौहार्द की इबादत की छटाएं बिखेरी हैं। होली के दिन होली के रंग खेलने के सम्मान में माह-ए-रमज़ान की नमाज-ए- जुमा का समय बढ़ा कर मुस्लिम समाज ने सौहार्द की इबादत का काबिले तारीफ काम किया है। इत्तेफाक कि कुदरत ने भी रमजान के रोजों और नवरात्र के वर्त को एक दूसरे के दामन से जोड़ा है। पवित्र तीस रोजों का सिलसिला जिस दिन खत्म हो रहा है उसी दिन से नवरात्र के नौ व्रत पवित्रता का वातावरण जारी रखेंगे। रमज़ान इबादत का महीना है
। जिसमें हर पुण्य कार्य का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। खासकर त्याग,संयम,धैर्य और समर्पण रमजान की इबादतों का केंद्र है। मानवता और सौहार्द में योगदान सबसे पवित्र इबादत है। लखनऊ के रोजेदारों ने माह-ए-रमजान में त्याग और समर्पण पेश कर सौहार्द कायम रखने की बड़ी इबादत के प्रमाण दिए है। रमजान में नमाज़ का महत्व बढ़ जाता है। खासकर नमाज-ए-जुमा का विशेष महत्व होता है। इसका समय भी निश्चित होता है। जिस तरह सनातन धर्म में ब्रह्म मूहर्त यानी परमात्मा का समय निश्चित होता है वैसे ही इस्लाम में भी इबादत के वक्त तय हैं। लेकिन इस्लामी शर्तों, बंदिशों, नियमों और समय विशेष की हिदायतों से भी ऊपर एक ताकत को रुतबा दिया गया है। ये ताकत सर्वश्रेष्ठ है, सर्वोपरि है। इस ताकत या इस भावना को अधिकार दिया गया है कि वो किसी भी इस्लामी नियम,बंदिश, हिदायत को शिथिल कर दे, उसकी अनिवार्यता को रद्द कर दे। इस्लाम की सबसे बड़ी इस ताकत का नाम है- इंसानियत, जिसका सबसे निकट रिश्ता भाईचारा, सौहार्द और प्रेम से होता है। इस इंसानियत को कायम रखने के लिए इस्लाम अपना ब्रह्म मूहर्त में बदलाव कर सकता है। रमजान की खास नमाज ए जुमा की जमात का एक समय निश्चित है। जो तकरीबन साढ़े बारह से एक के दरम्यान होता है। नमाज-ए-जुमा की जमात का मकसद अल्लाह की इबादत के साथ अपने लोगों से मिलना उनकी खैरियत जानना, हालचाल लेना भी होता है। इसीलिए एक निश्चित समय और स्थान पर जुमे की नमाज ए जमात होती है।
नमाज के बाद खुतबा ( मौजूदा हालात और इस्लामी नुक्ते नजर पर लेक्चर) होता है। माह ए रमज़ान का दूसरा जुमा होली के दिन पड़ रहा है। नमाज का समय साढ़े बारह से एक के बीच होता है और होली के रंग का भी यही समय है। सुबह से शुरू होकर दोपहर दो बजे तक सड़कों पर खूब रंग खेला जाता है। इस बात के मद्देनजर गंगा जमुनी तहजीब के शहर लखनऊ की इस्लामी संस्थाओं और उलमा (धर्म गुरुओं) ने नमाज -ए-जुमा के तकनीकी इस्लामी निश्चित समय को होली के रंगों के सम्मान में बढ़ा दिया है। 14 मार्च यानी होली के दिन पड़ने वाले रमजान के दूसरे जुमे की नमाज दो बजे होगी। ताकि दो धर्मों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण में होली के रंग और जुमे की नमाज सकुशल सम्पन्न हो। आपस में प्रेम बढ़े, भाईचारा कायम हो। गंगा जमुनी तहजीब जिन्दा रहे और कोई अराजक तत्व किसी तरह की शरारत की साज़िश रच कर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साज़िश ना रच सकें। इस पहल का हिन्दू समाज ने कुछ इस तरह स्वागत और सम्मान किया कि लखनऊ के एक पारंपरिक होली के जुलूस का नमाज के मद्देनजर समय परिवर्तन कर दिया गया। आपसी भाईचारे और सौहार्द की तालियां दोनों हाथों से कुछ ऐसे बजीं कि लगा कि रमजान और नवरात्र के मौसम की इबादतें गले मिल रही हों।