नई दिल्ली : केरल में भगवान अयप्पा के सबरीमाला मंदिर परंपरा और धार्मिक रीति रिवाजों की रक्षा के लिए चलाया जा रहा आंदोलन अब केरल और दक्षिण भारत के राज्यों से बाहर निकलता हुआ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया है। राजधानी के कांस्टीट्यूशनल क्लब में ‘सबरीमाला बचाओ’ अभियान के तहत एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, प्रज्ञा परांडे और दिल्ली के विधायक कपिल मिश्रा और अधिवक्ता केबी श्रीमिथुन आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। वक्ताओं ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने संबंधी अपने फैसले में अयप्पा भक्तों की धार्मिक आस्था और विश्वास का ध्यान नहीं रखा। राजधानी में सबरीमाला बचाओ अभियान की शुरुआत भाजपा के दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने की है।
आम आदमी पार्टी (आप) के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने मंदिर में प्रवेश को लेकर सड़कों पर हंगामा करने वाली महिलाओं पर निशाना साधते हुए कहा कि भगवान अयप्पा में आस्था रखने वाली एक भी महिला ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी नहीं जताई है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सामाजिक कार्यकर्ता रेहाना फातिमा की आस्था पर सवाल खड़ा करते हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले को सनातन संस्कृति पर आघात करार दिया। उन्होंने देशभर में देवस्थानों के बाहर एक रजिस्टर रखने की मांग उठाई ताकि वहां प्रवेश करने वाला अपनी पहचान के साथ ही उसमें यह भी दर्ज करे कि उसकी इस मंदिर में विराजमान भगवान में आस्था है।
अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की पीठ के सामने सबरीमाला मंदिर, वहां की परंमपराओं और रीति रिवाजों की सही तस्वीर पेश नहीं की गई। पूरे मामले को स्त्री-पुरुष समानता और शारीरिक अपवित्रता जैसे बिन्दुओं तक सीमित रखा गया, जिसके कारण ऐसा फैसला आया। वास्तव में यह पूरा मामला मंदिर में प्रतिष्ठापित अयप्पा भगवान के नैष्ठिक ब्रहमचारी स्वरूप और सदियों से चली आ रही परंपरा से जुड़ा है। मंदिर के इन्हीं नियमों का पालन करते हुए 10 से 50 वर्ष की महिलाएं स्वेच्छा से वहां नहीं जातीं। यह किसी महिला को दर्शन पूजन करने से रोकने का मामला नहीं है।