महाकुम्भ नगर। विश्व शांति के लिए भारत की मजबूती जरूरी है, भारत की मजबूती के लिए सनातन धर्म का संरक्षण जरूरी है। सेक्युलर का भारत में सिर्फ एक अर्थ है- हिंदू धर्म के विरोध में बोलना, सनातन को कठघरे में खड़ा करना। कश्मीर से कन्याकुमारी तक मंदिरों पर से सरकार का नियंत्रण हटना चाहिए। सनातन धर्म को गति देने के लिए ‘ट्रिपल पी’ यानी पंडा, पंडित और पुरोहित इन्हें मजबूत करना होगा…। यह विचार हैं, श्री कांची कामकोटि पीठ के 70वें पीठाधिपति जगद्गुरु शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती के। सुमधुर और स्पष्ट वक्ता शंकराचार्यजी राजनीतिक विषयों पर प्रायः कोई टिप्पणी नहीं करते। लेकिन विषय अगर सनातन धर्म, संस्कृति और राष्ट्रहित से जुड़ा हो तो वो प्रभावशाली तरीके से तर्कसंगत और धर्मानुकूल विचार रखते हैं। प्रयागराज महाकुम्भ में पधारे जगद्गुरु शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती से सनातन धर्म, संस्कृति, समाज और विविध विषयों पर हिन्दुस्थान समाचार के मुख्य समन्वयक एवं कुम्भ प्रभारी राजेश तिवारी ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न : सनातन धर्म का क्या अर्थ है?उत्तर : सनातन का अर्थ है जो शुरू से है वह अनंत तक रहेगा। जिसका ना आदि ज्ञात हो ना अंत, वही सनातन है। सनातन धर्म दूसरों के प्रति द्वेष नहीं सिखाता। यह करुणा की बात करता है। जो मैं हूं वही ब्रह्म है, वही संसार है, वही संसार का हर प्राणी है। और ठीक नीचे से ऊपर की ओर भी यही यात्रा है। यही तो सनातन है। जो समझ जाएगा, उसका सारा भ्रम दूर हो जाएगा। पर कोई समझना चाहे… तब तो। हर दूसरा व्यक्ति इसके विरूद्ध नकारात्मक प्रश्न खड़ा करता रहता है, चुनौती देता रहता है। ऐसे लोग अपना नुकसान तो कर ही रहे हैं, इससे दूसरों का भी कुछ भला होता नहीं दिखता। सनातन जीवन के प्रति एक अनुशासित जीवन पद्धति है। सनातन धर्म इतनी व्यापकता लिए हुए है कि जो भी इसके तट पर आकर खड़ा होगा वह इसमें समाहित हो जाएगा।
प्रश्न : सनातन संस्कृति और कुम्भ को आप किस रूप में देखते हैं?उत्तर : सनातन संस्कृति विश्व की आदर्श संस्कृति है। इस संस्कृति को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने का काम सरकार, समाज और मठ मंदिरों के द्वारा होना चाहिए। प्रत्येक ‘कुम्भ’ राष्ट्र को दिशा देता है। चाहे श्रीराम मंदिर के निर्माण का अभियान हो या देश में सनातन धर्म को शक्ति देने वाली सरकार हो, कुम्भ राष्ट्र को मार्ग दिखाता है। प्रयागराज महाकुम्भ में मंदिरों की मुक्ति की बात उठी है। इसलिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी मंदिर सरकार के नियंत्रण से मुक्त होने चाहिए। उनका प्रबंधन हिन्दुओं के हाथों में होना चाहिए। मंदिरों के द्वारा भक्ति व श्रद्धा का प्रचार घर-घर तक पहुंचाने का काम होना चाहिए।
प्रश्न : मानवता के विकास में धर्म और सरकार की भूमिका होनी चाहिए?उत्तर : प्रजा के हित के लिए धर्म का संरक्षण बहुत जरूरी है। देश की प्रगति हो रही है, और भी होनी है। जनता के भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिक उन्नति होना भी जरूरी है। धर्म के बिना जनता का कल्याण नहीं हो सकता। धर्म के लिए, विश्वास के लिए, कानून के सहयोग की जरूरत है। कानून के लिए सरकार की जरूरत है। मठ मंदिरों द्वारा जो धर्म प्रचार किया जा रहा है, सरकार उसमें सहायक बनेंगी तो इससे देश का भौतिक विकास होग, मानवता का विकास होगा। इससे सुख और शांति भी आएगी। सब लोग मैत्री और सद्भावना से रहेंगे। शांति के लिए सबसे जरूरी है धर्माचरण। धर्माचरण के लिए नीति बनाने में निधि बनाने में सरकार का योगदान अत्यंत जरूरी है।
प्रश्न : धर्म की व्यक्ति और राष्ट्र के जीवन में क्या भूमिका है?उत्तर : हमारा पूरा जीवन ही धर्म व्यापित है। इतना जरूर कहना चाहता हूं कि आप ज्यादा से ज्यादा धर्मानुसार आचरण कीजिए। इससे इस धरती का धर्म तो बचेगा ही, पारलौकिक धर्म का पुण्य भी आपको सहज रूप में प्राप्त हो जाएगा। सप्ताह में हम कम से कम दो दिन मंदिर जरूर जाएं। और नहीं तो शनिवार और रविवार ही सही। वहां बैठकर व्यक्ति से लेकर राष्ट्रहित में चिंतन करें, बातें करें। मंदिर को सनातन का सामुदायिक केंद्र बनाएं। संस्कृत को अनिवार्य विषय घोषित करें। उसे पाठ्यक्रम में शामिल करें। जितना और जो भी बन पड़े धर्म के लिए ही करें। क्यों? क्योंकि ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’। किसी चीज को लेकर ‘व्यू’ अलग चीज है और ‘रिव्यू’ अलग-इसे समझना ही होगा।
प्रश्न : धर्म समाज को कैसे मजबूत करता है?उत्तर : धर्म ही तो समाज को मजबूत करता है। धर्म को आप सिर्फ क्रिया-कलाप तक ही जोड़कर क्यों देखते हैं। धर्म तो जीवन को अनुशासित करने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाता है। जो कार्य कठिन परिश्रम से भी असंभव दिखता है, वह धर्म के अनुसरण से सहज और सुलभ रूप से प्राप्त हो जाता है। सहज सिद्धि का नाम धर्म है। नैसर्गिकता का नाम धर्म है। धर्म समाज को व्यवस्थित रखने में महत्वपूर्ण योगदान निभा सकता है।
प्रश्न : सनातन धर्म मजबूत कैसे होगा?उत्तर : वैसे तो सनातन धर्म अपने आप में ही एक मजबूत और समर्थ धर्म-व्यवस्था है। पर इसको गति देने के लिए ‘ट्रिपल पी’ पर काम करना होगा। पंडा, पंडित और पुरोहित इन्हें मजबूत करना होगा। इन्हें अधिकार देना होगा ताकि समाज को व्यवस्थित करने में ये अपना योगदान दें। सरकारी बढ़ावा दें। फिर यह तीन मिलकर पंचायत को मजबूत करेंगे। व्यक्ति में जो नैतिकता बची हुई है, उसे और कैसे सुदृढ़ करने की दिशा में काम करने की जरूरत है। पुनः, ‘ट्रिपल पी’ की आवश्यकता होगी- प्रजा, प्रभुत्व और पुजारी की। यह मिलकर पंचायत को व्यवस्थित करेंगे। एक बार फिर से ‘ट्रिपल पी’ की आवश्यकता होगी। जिसमें धर्माचार्य, जनता और सरकार शामिल होंगे। धर्म की यह यात्रा घर-पंचायत से शुरू होकर राज्य और केंद्र तक जाएगी। इस यात्रा में सनातन मजबूत होगा। ऐसा मेरा मानना है।
प्रश्न : भारत का कल्याण क्या धर्म एवं मंदिर से संभव है?उत्तर : भारत का कल्याण धर्माचरण से ही होगा। महाकुम्भ का आयोजन इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। आस्था जनता के हृदय में है। आस्था की मजबूती के लिए संस्था और व्यवस्था की जरूरत है। भारत के ना्रगरिकों में मंदिर, गाय, वेद पुराण, शास्त्र, सदाचार, सभ्यता और संस्कृति के लिए अगाध आस्था है। इस आस्था को संरक्षण और सुरक्षा की जरूरत है। धर्म प्रचार के लिए मंदिर केन्द्र है, इसलिए मंदिर का विकास होना चाहिए। पंडा, पुरोहित, पुजारी कल्याण योजना शुरू करने की जरूरत है। हर पंचायत में मंदिर हो और हर मंदिर तिरूपति जैसा हो।
प्रश्न : मंदिर की आवश्यकता क्यों है? ‘आत्मनिर्भरता’ के लिए मंदिर के स्थान पर कोई और कार्य बेहतर नहीं होगा?उत्तर : कौन रोक रहा है (प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हुए…)। …स्कूल खोलिए….अस्पताल खोलिए और उद्घाटन में मुझे भी बुलाइए। शंकराचार्य परंपरा में तो समाज सेवा को परमार्थ का कार्य माना जाता है। हम तो स्कूल-कॉलेज खोलने के विरोधी नहीं है। लेकिन स्कूल-कॉलेज को खोलने से पहले मंदिर बनना चाहिए। मंदिर बन जाएं तब वहां जो चढ़ावा-दान आए उससे स्कूल-कॉलेज, अस्पताल बनवाए जाएं। उनकी समुचित देखरेख की जाए। … और मैं कह रहा हूं कि फिर आप देखेंगे कि इन संस्थाओं का कैसे सफलतापूर्वक संचालन होगा। तिरुपति, वैष्णो देवी, पंचकूला मंदिर, कामाख्या, बद्री-केदार जी आदि… आदि जो देवस्थानम हैं उनके चढ़ावों से कई अस्पताल, विश्वविद्यालय चलाए जा सकते हैं। …लेकिन इसके लिए साफ नीयत और स्पष्ट नीति की जरूरत है। … मंदिरों के चढ़ावों पर लगे टैक्स का दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है।
प्रश्न : देश के प्रमुख मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण है, इसे आप कैसे देखते हैं?उत्तर : कश्मीर से कन्याकुमारी तक मंदिरों पर से सरकार का नियंत्रण हटना चाहिए। मंदिरों में जो चढ़ावा चढ़ता है उसका उपयोग धर्म के प्रचार-प्रसार, वेद पाठशाला, संस्कृत पाठशाला, गोशाला, शास्त्रीय संगीत और समाज सेवा के कार्य में होना चाहिए।
प्रश्न : सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) शब्द का आपकी दृष्टि में क्या अर्थ हैं?उत्तर : सेक्युलर शब्द अपने आप में विरोधाभास लिए हुए है। प्राणी मात्र में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो यह दावा करे कि वह सेक्युलर है। अगर कोई है, तो वह भ्रम में है। सेक्युलर कोई हो ही नहीं सकता। सबका अपना-अपना धर्म है। कोई स्वयं को नास्तिक घोषित करे तो वह भी कहीं ना कहीं किसी धर्म को मान रहा है। यह अलग बात है कि वह स्थापित धर्म के विरुद्ध अपने तर्क दे रहा है। सेक्युलर का भारत में सिर्फ एक अर्थ है- हिंदू धर्म के विरोध में बोलना, सनातन को कठघरे में खड़ा करना। आप मंदिर पर प्रश्न खड़ा करें हमारी परंपराओं, संस्कृति, पूजा-पाठ, भक्ति पर अंगुली उठाएं तो एक विशेष वर्ग के लोग आपको सेक्युलर कहना शुरू कर देंगे। शिखा-तिलक, दंड, कमंडल को फालतू बताएं तो सेक्युलर कहलाएंगे। अन्य धर्म के बारे में ऐसी बातें करे तो आप धर्म विरोधी कहलाएंगे। यही तो सेक्युलर है, और यही सेकुलरिज्म है।
प्रश्न : वर्तमान में संयुक्त परिवारों में विखंडन दिख रहा है। आप इसकी क्या कारण मानते हैं?उत्तर : स्वार्थ। … व्यक्ति ने जिसे गति से भौतिक प्रगति की है, उसी अनुपात में उसका नैतिक पतन भी हुआ है। …. इसे नहीं रोका गया तो व्यक्ति परिवार में रहना ही नहीं चाहेगा। परिवारों में जो यह परिवर्तन दिख रहा है उसके पीछे का कारण है- त्याग का अभाव! जिस घर में भजन और भोजन साथ में चल रहा है, सब लोग इकट्ठे होकर यह कार्य कर रहे हैं, वह परिवार कभी नहीं टूटेगा। आप अपने जड़ से कटकर कब तक फलते-फूलते रहेंगे? संयुक्त परिवार का विखंडन रोकने के लिए एकल परिवार को बढ़ावा देना बंद करना होगा।
प्रश्न : युवाओं का धर्म के प्रति ज्यादा झुकाव दिखाई नहीं देता, क्यों?उत्तर : … नहीं। ऐसी बात बिल्कुल भी नहीं है। यह असत्य है। हम इस महाकुम्भ को कसौटी माने तो देखेंगे कि सबसे ज्यादा यहां कौन आया। निःसंदेह युवा आए हैं। मुझे अपने युवाओं पर गर्व है। मैं तो पाता हूं कि आज का युवा इतनी भागदौड़ भरी जिंदगी में भी धर्म को अपने प्राण से ज्यादा प्यार करता है। जब भी सनातन धर्म पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जाता है, तो सबसे पहले युवा ही उसका विरोध करते हैं। आज के भटके युवा भी देर-सवेर धर्म की ओर मुड़े चले आ रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि उन्हें तिरस्कार के भाव से देखने की बजाय, गले लगाया जाए।
प्रश्न : आजादी के 75 साल हो चुके हैं। अब आगे की राह क्या है?उत्तर : 75 साल पूरे होने के अवसर पर सबको बधाई दे रहा हूं। यह यात्रा गुलामी के विरुद्ध में शुरू की गई थी…. तो आजादी मिल गई। अब प्रजा को मजबूत करने में अपनी सारी ताकत लगानी होगी। परिवार के मूल्यों को मजबूत करना होगा। धर्म पर आधारित जीवन जीना शुरू करना होगा। आजादी शासन के स्तर पर तो 75 साल पहले मिल चुकी है, अब जरूरत है कि वही आजादी जीवन के हर स्तर पर भी देखने को मिले। जिसमें प्रजा का हित निहित हो, उस दिशा में काम किया जाए।
प्रश्नः प्रयागराज के महाकुम्भ को आप किस रूप में देखते हैं, सुझाव क्या है?उत्तर : इस महाकुम्भ में भगवान के विश्वरूप का दर्शन हो रहा है। आदि शंकराचार्य ने पदयात्रा के माध्यम से भारत में मैत्री एकता के लिए पीठों की स्थापना और धर्म प्रचार किया था, वह उद्देश्य महाकुम्भ के द्वारा पूरा हुआ है। सरकार व नागरिकों के सहयोग से संपन्न महाकुम्भ से चैतन्य व स्फूर्ति मिली है। महाकुम्भ एकता का कुम्भ है, यह अद्वैत कुम्भ है। भारत सनातनियों का देश है, हमें किसी के प्रति द्वेष नहीं है। यहां पर पहले से ही आदि शंकर विमानन मण्डप है, इस बार का महाकुम्भ विमानों का महामण्डप बन गया। इस महाकुम्भ से जुड़े जो अनुभव हैं, जो व्यवस्थाएं हैं उनका उपयोग अगले कुम्भ के भव्य और दिव्य आयोजन के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। इस दिव्य-भव्य ओर नव्य महाकुम्भ में देश और दुनिया से सनातनी श्रद्धा और आस्था के भाव से शामिल हुए। इस महाकुम्भ को सनातन धर्म विकास और उत्कर्ष का श्रेष्ठ उदाहरण कह सकते हैं।
प्रश्न : महाकुम्भ से देश व विश्व को क्या संदेश देना चाहेंगे?उत्तर : भारत हिन्दुओं व सनातनियों का देश है। दूसरों के प्रति हमारे हृदय में द्वेष नहीं है। सनातन धर्म के संरक्षण से ही लोकतंत्र बचेगा। देश व दुनिया में धर्म भक्ति व देशभक्ति बढ़ाने की जरूरत है। भारत जब सुरक्षित रहेगा, तभी विश्व में शांति संभव है। विश्व शांति के लिए भारत की मजबूती जरूरी है। और भारत की मजबूती के लिए सनातन धर्म का संरक्षण जरूरी है।