उन्होंने दावा किया है कि यह पूरा इलाका पुरातात्विक महत्व का बड़ा केंद्र है। पुरातात्विक खुदाई होने से प्राचीन सभ्यता के संबंध में कई रहस्यों का खुलासा हो सकता है। इसके पहले ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के रांची और पटना अंचल की अलग-अलग टीमों ने प्रखंड के दैहर, सोहरा, मानगढ़ और हथिंदर गांव का दौरा किया था। इन टीमों ने यहां नार्दर्न ब्लैक पॉलिश वेयर (काले चमकीले मृदभांड) के कई अवशेषों के नमूने जुटाए थे। ऐसे मृदभांड़ ईसा पूर्व 300 से 100 वर्ष की सभ्यताओं के हैं।
इन स्थलों पर पुरातात्विक खुदाई और अनुसंधान के लिए एएसआई के केंद्रीय कार्यालय को प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है। पुरातत्वविद एमजी निकोसे के नेतृत्व वाली एएसआई के पटना अंचल की टीम ने मानगढ़ गांव में एक विशाल टीले को प्राचीन बौद्ध स्तूप के तौर पर चिन्हित किया था। ग्रामीण वर्षों से इस ऊंचे टीले की पूजा करते आ रहे हैं। चौपारण प्रखंड के मानगढ़, दैहर और हथिंदर गांव में तालाब, कुएं की खुदाई और खेतों की जुताई के दौरान पिछले 70 वर्षों के दौरान सैकड़ों प्रतिमाएं और शिलापट्ट बाहर आए हैं।
रखरखाव के अभाव में इन इलाकों में पाई गई कई प्रतिमाओं की चोरी भी हुई है। यहां मौजूद एक बड़ी दैवीय प्रतिमा की पूजा स्थानीय ग्रामीण माता कमला के रूप में करते हैं। गौतम बुद्ध, बौद्ध देवी तारा और मरीचि, अवलोकितेश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश सहित कई अन्य देवी-देवताओं की भी प्राचीन प्रतिमाएं यहां जमा कर रखी गई हैं। प्रखंड के हथिंदर गांव में अति प्राचीन सती स्टोन बरामद हुआ है। इलाके में एक अति प्राचीन टेराकोटा रिंग वेल भी है।
भारतीय पुरातात्विक सर्वे के दिल्ली स्थित कार्यालय से करीब दो साल पहले यहां आईं डॉ. अर्पिता रंजन ने यहां के शिलापट्ट पर अंकित लिपि के नमूने लिए थे। देश-विदेश के कई अन्य शोधार्थी भी इस इलाके में प्राचीन मूर्तियां पाए जाने की सूचना पाकर पहुंचते रहे हैं। अलग-अलग शिलापट्टों पर अंकित लिपि को डिकोड किए जाने पर पुरातात्विक सभ्यता के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल सकती है।