पाप से मुक्ति दिलाती है ‘षटतिला एकादशी’ , छह बार किया जाता है तिल का प्रयोग

नई दिल्ली। षटतिला एकादशी व्रत में तिल का विशेष महत्व होता है। छह प्रकार से इसका प्रयोग पाप कर्मों से मुक्ति दिलाता है और मंत्रोच्चारण मात्र से श्री हरि भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। माघ मास (गुजरात, महाराष्ट्र के अनुसार पौष) के कृष्णपक्ष में पड़ने वाली एकादशी से जुड़ी कहानी में मानव जाति का कल्याण छिपा है।

तिल का आस्थावान स्नान, भोजन, दान, तर्पण, हवन और उबटन के रूप में उपयोग करते हैं। कहते हैं कि इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार पाप कर्मों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे जुड़ी एक कथा महाभारत काल से जुड़ी है।

कथा कुछ यूं है- युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, भगवन! माघ मास के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसके लिए कैसी विधि है तथा उसका फल क्या है? कृपा करके ये सब बातें हमें बताइये? इस पर श्रीभगवान बोले, माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ के नाम से विख्यात है, जो सब पापों का नाश करनेवाली है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने पापहारिणी कथा दाल्भ्य से कही थी।

दाल्भ्य ने उनसे प्रश्न किया कि ब्रह्मन्! मृत्युलोक में आए हुए प्राणी प्राय: पापकर्म करते रहते हैं। उन्हें नरक में न जाना पड़े इसके लिए कौन सा उपाय है? बताने की कृपा करें। इस पर पुलस्त्यजी बोले, माघ मास आने पर मनुष्य को चाहिए कि वह नहा धोकर पवित्र हो, इन्द्रियसंयम रखते हुए काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली आदि बुराइयों को त्याग दे। फिर देवाधिदेव भगवान का स्मरण कर जल से पैर धोकर भूमि पर पड़े गोबर का संग्रह करे। उसमें तिल और कपास मिलाकर एक सौ आठ पिंडिकाएं बनाये, फिर माघ में जब आर्द्रा या मूल नक्षत्र आए, तब कृष्णपक्ष की एकादशी करने के लिए नियम ग्रहण करें।

स्नान करके पवित्र हो शुद्ध भाव से देवाधिदेव श्रीविष्णु की पूजा करें। कोई भूल हो जाने पर श्रीकृष्ण का नामोच्चारण करें। रात को जागरण और होम करें। चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेघ आदि सामग्री से शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करें और भगवान का स्मरण करके बारंबार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियल अथवा बिजौरे के फल से भगवान को विधिपूर्वक पूजकर अर्घ्य दें।

अन्य सब सामग्रियों का अभाव हो तो सौ सुपारियों से भी पूजन और अर्घ्यदान किया जा सकता है।

इसके साथ ही मंत्रोच्चारण से भी विशेष लाभ प्राप्त होता है। मंत्र इस प्रकार है:

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव।

संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम॥

नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन।

सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु महापुरुष पूर्वज॥

गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।

जिसका मतलब है ये विष्णु भगवान आप दयालु हैं, आश्रयदाता हैं, हम संसार समुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइये। कमलनयन! विश्वभावन! सुब्रह्मण्य! महापुरुष! सबके पूर्वज! आपको नमस्कार है! जगत्पते! मेरा दिया हुआ अर्ध्य आप लक्ष्मीजी के साथ स्वीकार करें।

इसके साथ ही दान पुण्य करें। तिल से स्नान होम करें, तिल का उबटन लगाएं, तिल मिलाया हुआ जल पीएं, तिल का दान करें और तिल को भोजन के काम में लें। इस प्रकार छह कामों में तिल का उपयोग करने के कारण यह एकादशी ‘षटतिला’ कहलाती है, जो सब पापों का नाश करनेवाली है।

यह दिन दान और सेवा का प्रतीक है। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार होता है।

(ये ज्योतिषीय गणना और मान्यताओं पर आधारित लेख है।)

 

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