डोनाल्ड ट्रंप को झटका, जन्मसिद्ध नागरिकता को सीमित करने वाले कार्यकारी आदेश पर अदालत ने लगाई रोक

वाशिंगटन। एक फेडरल जज ने गुरुवार को संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वतः जन्मसिद्ध नागरिकता के अधिकार को सीमित करने वाले कार्यकारी आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन यह एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी किया था। जज ने इस आदेश को स्पष्ट रूप से असंवैधानिक बताया।

इस बीच, ट्रंप ने अदालत के आदेश पर कहा, जाहिर है कि हम अपील करेंगे।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सिएटल स्थित अमेरिकी जिला जज जॉन कफनौर ने चार डेमोक्रेटिक नेतृत्व वाले राज्यों – वाशिंगटन, एरिजोना, इलिनोइस और ओरेगन – की अपील पर एक अस्थायी निरोधक आदेश जारी किया।

रिपब्लिकन पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन द्वारा नियुक्त जज ने इमिग्रेशन पर ट्रंप प्रशासन की कठोर नीतियों को पहला कानूनी झटका दिया। बता दें ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान अवैध प्रवासियों का मुद्दा बार-बार उठाया था।

न्यायाधीश ने ट्रम्प के आदेश का बचाव करने वाले अमेरिकी न्याय विभाग के वकील से कहा, मुझे यह समझने में परेशानी हो रही है कि बार का एक सदस्य स्पष्ट रूप से कैसे कह सकता है कि यह आदेश संवैधानिक है। यह मेरे दिमाग को चकरा देता है।

इससे पहले सोमवार को राष्ट्रपति ने जन्मसिद्ध नागरिकता के खिलाफ एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए इसे बिल्कुल हास्यास्पद अवधारणा करार दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि अमेरिका दुनिया का एकमात्र देश है, जिसके पास ऐसा नियम है।

कार्यकारी आदेश के मुताबिक अमेरिका में जन्मे बच्चे – [जिनके माता-पिता में से कम से कम एक नागरिक या वैध स्थायी निवासी नहीं है] – को अब स्वचालित रूप से अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगी। यह फेडरल एजेंसियों को ऐसे बच्चों के लिए अमेरिकी नागरिकता साबित करने वाले प्रासंगिक दस्तावेज जारी करने या मान्यता देने से भी रोकता है। यह आदेश अनधिकृत अप्रवासियों और अस्थायी वीजा पर अमेरिका में वैध रूप से रहने वालों के बच्चों को लक्षित करता है।

अगर यह आदेश पारित हो जाता है तो अस्थायी वर्क वीजा या टूरिस्ट वीजा पर अमेरिका में रहने वाले लोगों के बच्चों को स्वचालित रूप से नागरिकता नहीं मिलेगी।

ट्रंप ने आदेश पर जब से हस्ताक्षर किए हैं, तब से इसे चुनौती देते हुए कम से कम छह मुकदमे दायर किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश नागरिक अधिकार समूहों और 22 राज्यों के डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल द्वारा दायर किए गए हैं।

 

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