अभी तक दिल्ली के चुनाव में जिस तरह से पार्टियों का प्रचार अभियान चल रहा था। उससे लग रहा था कि टक्कर यहां भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच ही होगी और कांग्रेस 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह ही निष्क्रिय नजर आ रही थी। हालांकि चुनावी तारीख की घोषणा के बाद कांग्रेस के नेता अजय माकन खुलकर केजरीवाल के खिलाफ खेलने के लिए मैदान में आ तो गए थे। लेकिन, पिच पर आने से पहले ही उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए थे। तब दिल्ली के लोगों को समझ में आ रहा था कि कांग्रेस भाजपा को यहां की सत्ता में आने से रोकने के लिए शायद ऐसा कर रही है।
फिर जिस तरह से इंडी गठबंधन के तमाम दलों ने केजरीवाल की पार्टी को दिल्ली चुनाव में समर्थन का दावा किया उसके बाद कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई। ऐसे में कांग्रेस को लगने लगा था कि अगर वह अपनी जमीन दिल्ली में फिर से हासिल करने में कामयाब नहीं रही तो उनके लिए आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में भी उसके लिए मुश्किल खड़ी कर देगी। इसके कई उदाहरण भी कांग्रेस के सामने हैं, जैसे छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात सहित कई राज्यों के चुनाव परिणामों से साफ पता चलता है कि जहां-जहां आप चुनावी जंग में शामिल हुई वहां-वहां उसे भले सफलता हासिल नहीं हुई हो लेकिन, उसने कांग्रेस को भी सफल होने नहीं दिया। दूसरी तरफ कांग्रेस से पंजाब आम आदमी पार्टी ने छीन ली।
ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस अपनी खोई जमीन फिर से पाने की कोशिश में जुट गई। अभी तक जो आम आदमी पार्टी गठबंधन को लेकर तमाम चुनावों में कांग्रेस के फैसले का इंतजार करती थी, उसने चुनाव की घोषणा से पहले ही स्पष्ट कर दिया कि आप इस बार बिना किसी इंतजार के अकेले अपने दम पर दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरेगी।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि अब ऐसे में कांग्रेस ने जिस तरह का तेवर बीच चुनाव प्रचार के क्रम में आम आदमी पार्टी के खिलाफ अपनाया है। इसके बाद से आप के नेताओं के माथे पर पसीना आ गया है। राजनीतिक विश्लेषक ऐसा दावा क्यों कर रहे हैं इसके पीछे एक इतिहास है जो आप के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है। ये वो वोटिंग पैटर्न है या वो वोट बैंक है जिसने आम आदमी पार्टी की सांसें फुला दी है।
चुनावी तारीख का ऐलान होते ही अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के खिलाफ एक बड़े खुलासे का दावा किया था। जिस पीसी में मीडिया को आमंत्रित किया गया उससे वह खुद नदारद रहे थे। इस बीच इंडिया ब्लॉक के बड़े-छोटे दल भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी से छिटकते चले गए। कांग्रेस के लिए ये अटपटी स्थिति थी। सूत्रों की मानें तो नए समीकरणों के बीच पार्टी ने डिफेंसिव होने की बजाय फ्रंटफुट पर खेलना बेहतर समझा और उसका यही अंदाज आप को खल रहा है।
22 जनवरी को कांग्रेस नेता अजय माकन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ताबड़तोड़ हमले केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की सरकार पर किए। कैग रिपोर्ट के हवाले से पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को खूब लताड़ा। इसके अगले दिन यानी 23 जनवरी को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव और राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आप को एक और झटका दिया। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक ऑडियो क्लिप सुनाई। जिसके जरिए दावा किया कि इसमें सुनाई दे रही आवाज नरेला से आम आदमी पार्टी के विधायक शरद चौहान की है जो दिल्ली में शराब के ठेकों में हुए भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहे हैं। आरोप लगाया कि इस ऑडियो में विधायक शरद चौहान कथित रूप से स्वीकार रहे हैं कि शराब नीति के जरिए पार्टी के लिए धन इकट्ठा किया गया।
पवन खेड़ा ने तब कहा कि मनीष सिसोदिया ने शरद चौहान को बताया कि नई शराब नीति इसलिए लाई गई ताकि आम आदमी पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए फंड मिल सके।
अचानक कांग्रेस ने दो ऐसे हमले किए जिसके बाद आम आदमी पार्टी की मुसीबत बढ़ गई। दरअसल, अजय माकन ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में घोटाला और पवन खेड़ा ने शराब घोटाले का कथित ऑडियो क्लिप जारी कर दिल्ली के चुनावी राजनीति में एक सनसनी फैला दी। ऐसे में अब आप के डर की वजह वो पुराना इतिहास है जिसको आंकड़ों के जरिए समझा जाए तो ज्यादा स्पष्टता आएगी।
आप चौथी बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने जा रही है। अब तक हुए तीनों चुनाव में उसका इकबाल बुलंद रहा, लेकिन ध्यान से जब वोट प्रतिशत पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि कांग्रेस की हार ही उसकी (आप) जीत का बड़ा कारण बनी।
2013 में कांग्रेस को 24.55 प्रतिशत, आप को 29.49 प्रतिशत, तो वहीं भाजपा के हिस्से में 33.07 प्रतिशत वोट आए। कांग्रेस की बैसाखी के सहारे तब आप सत्ता में आई और अरविंद केजरीवाल दिल्ली के दूसरे सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद कांग्रेस के साथ आप ने गठबंधन तोड़ा और 2015 में यहां फिर से विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें आप ने 54.34 प्रतिशत, भाजपा ने 32.19 प्रतिशत और कांग्रेस ने 9.65 प्रतिशत वोट हासिल किया। इसमें कांग्रेस के हाथ कुछ भी नहीं लगा। वह शून्य पर आउट हो गई और दिल्ली में कांग्रेस की जमीन ऐसी खिसकी जिसने आम आदमी पार्टी के लिए बेहतर आधार तैयार कर दिया।
इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का सूपड़ा फिर से साफ हो गया। इस चुनाव में आप ने जहां 53.57 प्रतिशत, भाजपा ने 38.51 प्रतिशत वोट हासिल किया, वहीं, कांग्रेस के खाते में 4.26 प्रतिशत वोट गए।
आंकड़े बताते हैं कि आप ने कांग्रेस के वोट बैंक में ही सेंधमारी की। भाजपा का जनाधार इन तीनों चुनाव में ज्यादा नहीं खिसका और 2020 के चुनाव में तो उसके वोट प्रतिशत में इजाफा ही हुआ।
सूत्रों की मानें तो आप को डर है कि अगर कांग्रेस फ्रंटफुट पर आकर खेलती रही और उसे घेरती रही, तो उसका वोट बैंक खिसक सकता है। कांग्रेस की थोड़ी सी बढ़त आप को हानि और भाजपा को लाभ पहुंचा सकती है।