एक फिल्म आई थी “सिर्फ तुम” । आजकल उत्तर प्रदेश की राजनीति में हकीकत की एक फिल्म चल रही है। जिसका शीर्षक होना चाहिए है- “सिर्फ वो”।
मेहनतकश, हुनरमंद, प्रतिभावान और प्रदेश के विकास में अपना बड़ा योगदान देने वाले कुर्मी समाज के लिए कौन घातक है ? ये समझना होगा और इस सवाल का जवाब खोजना होगा।
अपने निजी स्वार्थ,सत्ता,पद और धन लालसा के आगे इस विशाल जाति के समाज को कमजोर करने वाला कोई एक व्यक्ति है। ये कौन है जो इस समाज की राजनीति चेतना और एकजुटता की धार को कुंद करने की साजिशें कर रहा है। पिछड़ी जातियों में यादव समाज के बाद दूसरी सबसे बड़ी कुर्मी जाति को एक राजनीतिक मंच से बिखराने की निरंतर कोशिश करने वाला घर का भेदी खलनायक कौन है ? भ्रष्टाचार और विवादों की जड़ बने इस शख्स को कुर्मियों को पहचाना होगा। एकजुट होकर अपनी राजनीतिक ताकत को मजबूत कर सत्ता के शीर्ष पर पंहुचने का संघर्ष करना होगा।
उत्तर प्रदेश सामाजिक न्याय की लड़ाई में सबसे आगे रहा है। पिछड़ों-दलितों को हाशिए से बाहर निकालने का संघर्ष कर देश के कई क्षेत्रीय दलों ने सत्ता हासिल की। उत्तर प्रदेश में दलित नेत्री मायावती चार बार मुख्यमंत्री बनीं। समाजवादी पार्टी की राजनीति ने यादव समाज को गौरवांवित किया। तीन बार मुलायम सिंह यादव और एक बार अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे। पिछड़ी जातियों में यादव समाज के बाद सबसे बड़ी संख्या कुर्मी समाज की है। ये राजनीतिक रूप से एकजुट भी रहे। अपना दल के संस्थापक स्वर्गीय सोने लाल कुर्मी समाज के मसीहा थे। उन्होंने अपने समाज में राजनीतिक चेतना पैदा की। स्वर्गीय पटेल की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल और बेटियों (पल्लवी पटेल-अनुप्रिया पटेल) ने अपना दल के वृक्ष को वटवृक्ष बनाने के लिए अपनी मेहनत,समर्पण,जमीनी संघर्ष के पसीने से सींचा। स्वर्गीय पटेल के संकल्पों और सपनों को साकार करने के लिए खूब संघर्ष किया। राजनीतिक सफलताओं ने पटेल समाज को किसी हद तक सत्ता में भागीदारी भी दिलाई। लेकिन उतनी सफलता नहीं मिली जितनी मिल सकती थी। जिसका कारण था अपना दल की फूट, विभाजन, बंटवारा। बकौल स्वर्गीय सोनी लाल जी की पत्नी कृष्णा पटेल के उनकी पार्टी और परिवार में उनके दामाद आशीष पटेल ने फूट डलवा दी। विभाजन हो गया। पार्टी टूट गई और कुर्मी समाज को सत्ता के शीर्ष पर ले जाने का सपना भी कमज़ोर पड़ गया। नहीं तो कोई ताज्जुब नहीं कि उत्तर प्रदेश में अपना दल की सरकार बनती। जिस तरह सपा ने नौ फीसद यादव समाज को आधार बनाकर यूपी में चार बार यादव समाज का मुख्यमंत्री दिया, ऐसे ही अपना दल भी कुर्मी समाज का मुख्यमंत्री देने में सफल हो सकता था।
अपना दल के टुकड़े अलग-अलग दलों के साथ आ जाने के बाद भी दोनों टुकड़ों का जनाधार क्रमशः भाजपा और सपा को लाभ दिलाता रहा है। अंदाजा लगाइए कि यदि ये दल नहीं बंटता तो कुर्मी समाज की एकजुट ताकत क्या असर दिखाती। 2022 विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) ने सत्तरह में बारह सीटें जीत कर एनडीए की ताकत बढ़ाई। और यूपी में अपना दल तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। दूसरी तरफ अपना दल (क) की नेत्री पल्लवी पटेल ने उप मुख्यमंत्री और भाजपा के ताकतवर नेता केशव प्रसाद मौर्य को हराया कर सबको चौका दिया। जैसे अनुप्रिया की राजनीतिक सफलता का लाभ भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को मिला वैसे ही पल्लवी पटेल की जबरदस्त जीत का लाभ सपा ने उठाया। इन दोनों महिला नेत्रियों की राजनीतिक ताकत मिलकर अविभाजित अपना दल के लिए काम करती तो बारह सीटें एक सौ बीस सीटों में परिवर्तित हो जातीं तो कोई आश्चर्य नहीं होता। सामाजिक न्याय के लिए किसी परिवार के सदस्यों का मिलकर राजनीतिक संघर्ष करना अच्छी बात है। यदि कोई व्यक्ति परिवार के मजबूत वृक्ष की जड़ में मट्ठा नहीं डालता तो मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की तरह सोने लाल पटेल का अपना दल भी सत्ता में मुख्य भागीदारी निभाने में सफल हो सकता था।
परिवार वाद की तोहमतें लगें या कोई कुछ भी कहे लेकिन तस्वीर का ये भी एक,पहलू है कि स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के यादव परिवार ने मिलजुलकर समाजवादी पार्टी को सींचा। एक मुकाम दिया। यादव समाज को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाकर एक बड़ी ताकत दी। यादव सहित तमाम पिछड़ी जातियों को पिछड़ेपन से दूर करने का प्रयास किया खासकर यादव समाज में एक विश्वास, आत्मविश्वास पैदा हुआ जब अब कुल के व्यक्ति को कई बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान देखा। यदि यादव परिवार में कोई जयचंद या मीर जाफर होता तो शायद सपा भी विभाजित हो जाती। स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव का सपना कभी भी पूरा नहीं होता और यादव समाज को सत्ता सुख कभी नहीं मिल पाता। लेकिन मुलायम खुशनसीब थे, उनके परिवार ने मिलजुलकर सपा को आगे बढ़ाया।
पटेल समाज को सत्ता के शीर्ष पर पंहुचाने का सपना देखने वाले सोने लाल पटेल की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी कृष्णा पटेल अपनी साहसी पुत्रियों ओर पटेल व समस्त पिछड़े समाज के साथ स्वर्गीय पटेल के सपने को साकार करने के सफलतम कदम बढ़ाने लगीं। यदि कृष्णा पटेल के आरोपों को सही माने तो उनके दामाद आशीष पटेल ने परिवार में कलह क्या पैदा की ना सिर्फ अपना दल टूटा बल्कि उनके समाज की एकजुट ताकत और राजनीतिक ताकत टुकड़ों में बंटकर, बिखरकर कमजोर हो गई। आरोप के मुताबिक यदि आशीष स्वर्गीय सोनी लाल की राजनीतिक विरासत का बंटवारा नहीं करते तो ताज्जुब नहीं कि अपना दल की सरकार होती। जिस तरह बसपा एक दलित मुख्यमंत्री बनाने में सफल हुई, सपा ने कई बार यादव समाज का मुख्यमंत्री बनाकर इस समाज को गोरवान्वित किया ऐसे ही अपना दल किसी कुर्मी को मुख्यमंत्री बनाने में सफल हो सकता था। सोनी लाल पटेल परिवार ने हमेशा अपने समाज के अधिकारों के लिए लड़ाईयां लड़ी, संघर्ष किए। पत्नी और साहसी पुत्रियों ने सोने लाल जी के सपनों और संकल्पों को पूरा करना ही अपने जीवन का लक्ष्य माना। लेकिन दुर्भाग्यवश सारे विवाद, बंटवारे,अलगाव, आरोप-प्रत्यारोप, अमर्यादित बयान और भ्रष्टाचार के आरोप एक व्यक्ति पर केंद्रित रहे हैं। कई वर्ष पहले विवाद और विभाजन के शुरुआती दौर में अपने दल के संस्थापक की पत्नी और अपना दल (क)की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने साफ तौर से कहा था कि आशीष पटेल फसाद की जड़ हैं, उनकी स्वार्थ के कुचक्र ने विभाजन किया। उसके बाद श्रीमती पटेल ने आरोप लगाए कि स्वर्गीय सोने लाल की पुण्यतिथि पर प्रार्थना सभा करने में आशीष पटेल ने बाधा डाली। आरोपों का ये सिलसिला अब अशीष पटेल को भ्रष्टाचारी बता रहा है। पल्लवी पटेल के मुताबिक तकनीकी शिक्षा मंत्री आशीष द्वारा सरकार और सरकारी सहायता प्राप्त पॉलीटेक्निक संस्थानों में विभागाध्यक्ष पद पर अयोग्य उम्मीदवारों को प्रमोशन दिया। और इसके बदले 25-25 लाख रुपए रिश्व्त ली। पदोन्नति का कदम ही घूसखोरी के लिए उठाया गया। जबकि नए दिशानिर्देशों के मुताबिक प्रोन्नति का कोई प्रावधान ही नहीं है।
इधर तकनीकी शिक्षा मंत्री आशीष ने इन आरोपों को गलत बताया है और सीबीआई की जांच की मांग की है।
कुल मिलाकर अपना दल के विभाजन से लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में एक ही व्यक्ति बार-बार आता रहा है।
स्वर्गीय सोने लाल पटेल के पुराने प्रशंसक परमेश वर्मा कहते हैं कि एक व्यक्ति कि वजह से अपना दल का विभाजन और इतना विवाद नहीं होता तो समाजवादी पार्टी की तरह अपना दल भी आज सत्ता हासिल करने की मुख्य भूमिका में होती। सोनी लाल जी के किस्से सुनाते हुए परमेश की आंखे भर जाती हैं और वो रुंधे स्वर में एक मशहूर गीत की आखिरी पंक्ति गुनगुनाते हुए बात खत्म करते हैं-
अगर तूफा नहीं आता किनारा मिल गया होता….।