दरअसल, दुमका वन विभाग के सहयोग से बेशकीमती लकड़ियों से निर्मित 16 कॉटेज मे से 11 लकड़ी के कॉटेज बनाए गए हैं। इसके अलावा पांच कॉटेट कंक्रीट से बनाए जा रहे हैं।
इको कॉटेज का निर्माण करते हुए वन विभाग ने न केवल प्रदूषण का ख्याल रखा है बल्कि पेड़ों और जंगलों से सटे पहाड़ की सुंदरता को बनाए रखने की पूरी कोशिश की गई है। करीब सात करोड़ रुपये की लागत से निर्मित लकड़ियों से इन इको कॉटेज को बनाया गया है।
इको कॉटेज को बनाने मे करीब दो साल का समय लगा है। हालांकि, पहाड़ों के बीच इको कॉटेज को बनाने में वन विभाग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। विभाग को सबसे अधिक परेशानी बारिश के समय हुई।
विभाग के अधिकारियों के अनुसार, 11 कॉटेज को विदेशी इंडोनेशियन पाइन लकड़ियों से बनाया गया है, जिसे बनाने वक्त प्रदूषण का ख्याल रखा गया है। इस इको कॉटेज में एसी कमरा और अटैच्ड बाथरूम है। यहां आने वाले पर्यटक डैम का आनंद ले पाएंगे।
अधिकारी ने कहा कि इसके अलावे तीन कमरों वाला पांच कॉटेज सीमेंट कंक्रीट से बनाया जा रहा है। यहां सैलानियों के खाने-पीने के लिए एक रेस्टोरेंट भी उपलब्ध है।
गौरतलब है कि 1951 में बना झारखंड का मसानजोर डैम आज भी पश्चिम बंगाल के अधीन है। बंगाल सरकार इस डैम की देखरेख करती है और यहां बंगाल के अधिकारियों और सैलानियों के लिए अपने गेस्ट हाउस भी बनाए गए हैं।