लक्ष्य पहुंचना उस सीमा तक  जिसके आगे राह नहीं 

के. विक्रम राव

आपकी खिदमत में एक और रचना। प्रतिष्ठित और मशहूर “प्रभात प्रकाशन” (आसफ अली रोड, नई दिल्ली-2) द्वारा मुद्रित। यह पुस्तक इसलिए लिखी गई ताकि मुंडका उपनिषद से अपनाया गया राज्यसूत्र “सत्यमेव जयते” कहीं मिथ्या न हो जाए। साठ लेखों के इस संग्रह में कुछ स्वाभवतः आक्रोश सर्जाएंगे। उनका उल्लेख खास है। कुछ लेख तो दबाये गए, छिपाए गए, बिसराए गए तथ्यों को उजागर करते हैं। शोध पर आधारित है। नई पीढ़ी को अचरज भी हो।
हर घर तिरंगा के पावन दिन पर एक सियासी दुखांतिका है, राष्ट्रीय त्रासदी भी घटी है। जिन्हें नाज है हिन्द पर वे सभी जान ले। राष्ट्रध्वज के रुपरेखाकार पिंगली वैंकय्या एक तेलुगुभाषी निर्धन स्कूल मास्टर थे। वे कंगाली में जन्में (2 अगस्त 1876 : सागरतटीय मछलीपत्तनम, आंध्र) तथा अभाव में पले।

इस विप्र के शवदाह में पर्याप्त ईधन नहीं मिला। उनका अधूरा ख्वाब था कि तिरंगे में लपेटकर उनकी लाश ले जाया जाये। हर साल (10 अगस्त) मीडिया और नरेन्द्र मोदी से लेकर सभी उनकी स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। वैंकय्या ने जीवन में कई ज्वारभाटा देखे। मेधावी छात्र थे। लाहौर के वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी के अध्यापक रहे। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक डिग्री ली। मगर भारत लौटकर आये तो निजी रेलवे कंपनी में जीविका पायी। लखनऊ में भी एक शासकीय नौकरी की। उनके रोजगार में विविधता रही। भूविज्ञान तथा कृषि क्षेत्र में निष्णात रहे। खदानों के जानकार रहे। फिर आयी उनके जीवन की विलक्षण बेला। ब्रिटिश सेना का दक्षिण अफ्रीका में बोयर युद्ध हुआ। भारतीय लोग भी वहीं गये। सर्वाधिक महत्वपूर्ण सैनिक था मोहनदास कर्मचन्द गांधी। वे चिकित्सक (स्वयं सेवक) की भूमिका में थे। तभी वैंकय्या भी ब्रिटिश सैनिक के रोल में गये। गांधीजी से भेंट हुयी, परिचय हुआ। फिर भारत में राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन में दोनों में प्रगाढ़ता उपजी। तभी का एक किस्सा है। तेलुगू भाषी चालुक्यों की गौरवमीय राजधानी काकीनाडा (गोदावरी तटीय) की घटना है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन (26 दिसंबर 1923) हुआ। यह चालुक्यों के सम्राट पुलकेशिन से जुड़ा था। यहीं वैंकय्या ने कांग्रेस में शरीक होकर राष्ट्रीय ध्वज के प्रारुप पर चर्चा किया था। यह अधिवेशन दो घटनाओं के लिये ऐतिहासिक था। यहीं मौलाना मोहम्मद अली ने कांग्रेस अध्यक्ष के रुप में वन्दे मातरम् गाने पर एतराज किया था। वाक आउट किया। तभी से यह राष्ट्रगान अधूरा हो गया। इसी अधिवेशन में ही राष्ट्रीय कांग्रेस ने तय किया था कि स्वतंत्रता के बाद भारत का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया जायेगा। आंध्र प्रदेश पहला भाषावार प्रदेश बना। काकीनाडा अधिवेशन में ही वैंकय्या ने कांग्रेस के लिए राष्ट्रध्वज की आवश्यकता पर बल दिया था।

उनका यह विचार गांधीजी को बहुत पसन्द आया। गांधीजी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया। पिंगली वैंकय्या ने पाँच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा। अन्य लेखों में एक लेख है ज्योतिष पर। भले ही इंदिरा गांधी की अपने गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी के ज्योतिषीय कथनों पर अगाध और अटूट आस्था रही हो, पर उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू इस प्राचीन वैदिक विज्ञान वाले पूर्वानुमेय तथा भविष्य कथन को प्रवंचना और छल मात्र करार देते रहे। वे आमजन को इससे सरोकार रखने से सदा सावधान करते रहे। कुछ दस्तावेजी प्रमाण पेश है जो यह सिद्ध करते हैं कि नेहरू पूरा विश्वास ज्योतिष पर करते थे। उनकी पुस्तक “Letters to Sister” (बहन को पत्र) में पत्र संख्या 74 (29 अगस्त 1944) में अहमदनगर जिला जेल से लिखा था कि : “किसी योग्य व्यक्ति से इंदिरा के नवजात प्रथम पुत्र की जन्मकुंडली बनवाएं और नाम रखे राजीव लोचन।” इसी तथ्य को डॉ संपूर्णानंद (यूपी के द्वितीय मुख्यमंत्री और बाद में राजस्थान के राज्यपाल) ने भी तस्दीक किया था। जवाहरलाल नेहरू की बहन कृष्णा हथीसिंह ने पुस्तक “हम नेहरू लोग” के पृष्ठ 10 पर जिक्र किया कि नेहरू ने यहां तक लिखा था की कुंडली बनाते वक्त ध्यान रहे कि “युद्ध काल में घड़ी की सुई एक घंटा आगे कर दी गई थी।” स्वयं कमला नेहरू ने भी अपने पति की ज्योतिष में आस्था पर लिखा है। कमला और जवाहरलाल का विवाह उम्र का लंबा फासला होने के बावजूद भी किया गया था।

अपनी पुस्तक “फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर” में संपादक दुर्गा दास ने लिखा था कि उनके काबीना मंत्री और भारत साधु समाज के संस्थापक गुलजारीलाल नंदा ने लिखा था कि प्रधानमंत्री ज्योतिषों की राय मांगते थे। उनके पिता मोतीलाल के सगे भ्राता पंडित बंशीधर नेहरू स्वयं जाने-माने ज्योतिषी तथा संस्कृतज्ञ थे। इटावा में (11 सितंबर 1915) जन्मी पुपुल मेहता जयकर जो प्रधानमंत्री की सांस्कृतिक सलाहकार थी ने “इंदिरा गांधी : एक जीवन चरित्र” (पेंगुइन, रेंडम हाउस 1992) के पृष्ठ 9 पर लिखा कि “मोतीलाल नेहरू ने सादी कश्मीरी ब्राह्मण लड़की कमला को चुना क्योंकि उसके वंशजों का सत्ता सुख लंबी अवधि तक वाला था। कितना सही था। गौर करें : कमला नेहरू 1936 में दिवंगत हुईं थीं। ग्यारह वर्ष बाद उनके पति देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने। कुल 15 वर्ष तक उनकी पुत्री इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं। फिर नाती राजीव गांधी 1980 में पांच वर्ष तक पदासीन रहें। अर्थात नेहरू वंश 37 वर्ष तक चला। उनके नाती की पत्नी सोनिया गांधी भी अप्रत्क्ष्य रूप से दस वर्ष तक मनमोहन सिंह के समय सत्तासीन रहीं। कृष्णा हथीसिंह लिखती हैं कि बहन विजयलक्ष्मी और रंजीत पंडित का विवाह मुहूर्त (10 मई 1921) भी शास्त्रानुसार तय किया गया था। जवाहरलाल ने विवाह की व्यवस्था की थी। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे उपेक्षित ऐतिहासिक तथ्य पढ़िये।

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