कहावत है, लोहा लोहे को काटता है, लेकिन कानपुर आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) का लोहे के साथ प्रयोग कीमो के खतरे को काटेगा। यहां के मैटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग ने मैग्नेटिक नैनो कैप्सूल तैयार किया है, जो कीमोथेरेपी में मदद कर रेडिएशन का दुष्प्रभाव करीब 80 फीसद तक कम करेगा।
कीमोथेरेपी की दवाओं से भरा यह पॉलीमर कोटेड कैप्सूल इंजेक्शन के जरिये संक्रमित हिस्से तक पहुंचाया जाएगा, वहीं पॉलीमर कोटिंग हटेगी। इससे कीमो मेडिसिन से होने वाले रेडिएशन की जद में केवल संक्रमित हिस्सा ही आएगा। लैब परीक्षण सफल होने के बाद अब क्लीनिकल ट्रायल के लिए एक प्रतिष्ठित कैंसर अस्पताल से समझौता होने जा रहा है। इस शोध को इंग्लैंड स्थित रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री सॉफ्ट मैटर (विश्व की प्रमुख केमिकल सोसाइटी में से एक) ने अपने जर्नल में प्रकाशित किया है।
ऐसे बना नैनो कैप्सूल
फेरिक ऑक्साइड में लोहे के दो खनिज तत्व होते हैं। एक हेमाटाइट (इसे लोहे का अल्फा तत्व भी कहते हैं) और दूसरा मेग्नेटाइट (गामा)। हेमाटाइट गैर चुंबकीय और मैग्नेटाइट चुंबकीय गुण का होता है। प्रयोग के दौरान अल्फा से लौह भस्म व गामा से कीमोथेराप्यूटिक ड्रग कैरियर कैप्सूल बनाया गया। प्रो. विवेक वर्मा के निर्देशन में डॉ. नितेश कुमार दो साल से यह शोध कर रहे थे।
इस तरह करेगा काम
संस्थान के बॉयोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग (बीएसबीई) विभाग के लैब में सिम्यूलेटेड बॉडी मॉडल पर इस नैनो कैप्सूल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। करीब दो टेस्ला (चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक) का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया गया। इससे उत्पन्न ऊष्मा से कैप्सूल की पॉलीमर कोटिंग हट गई और कीमो की दवा संक्रमित हिस्से पर पहुंच गई। चूंकि एमआरआइ से भी दो टेस्ला चुंबकीय क्षेत्र के बराबर ऊष्मा मिलती है, इसलिए एमआरआइ से पॉलीमर कोटिंग हट जाएगी। कैप्सूल अधिकतम 41 डिग्री सेल्सियस तापमान सह सकता है और एमआरआइ के दौरान लोहे का तापमान इससे थोड़ा अधिक हो जाता है और कोटिंग हट जाती है।
महज 10 दिन में लौह भस्म तैयार
यूं तो लौह भस्म 100 दिन में तैयार होती है, लेकिन इस प्रयोग के दौरान महज 10 दिन में ही भस्म तैयार कर लिया गया। डॉ. नितेश कुमार के मुताबिक फेस डाइग्राम, स्थैतिक अध्ययन और ऑक्सीडेशन प्रक्रिया पर कार्य कर यह काम किया गया।
नैनो मैग्नेटिक कैप्सूल की मदद से कीमोथेरेपी की दवाओं का साइड इफेक्ट कम होगा। लैब टेस्टिंग सफल होने के बाद तकनीक का पेटेंट कराया जाएगा। एक कैंसर अस्पताल में क्लीनिकल ट्रायल के लिए समझौता हो रहा है।