दूसरे ग्रहों के जीवन पर नजर

विजय गर्ग

 

आम इंसान ही नहीं, खुद वैज्ञानिक परग्रही सभ्यता (एलियंस) के बारे में जानने को इच्छुक रहे हैं। मगर इस मामले में शीर्ष वैज्ञानिक संस्थाएं अभी कुछ भी ठोस रूप से कह नहीं पाती हैं। अनजान वस्तुओं (यूएफओ) और उड़न तश्तरियों के देखे जाने के हजारों दावे हैं। मगर कोई शीर्ष वैज्ञानिक इस पर कुछ कहने की कोशिश करता है, तो इस पर सनसनी ज्यादा पैदा होती है, ठोस कम हासिल होता है। इसकी वजह है कि इन वैज्ञानिकों के पास भी अपनी बात साबित करने के लिए ठोस साक्ष्यों का अभाव होता है। मगर अभी ‘इसरो’ प्रमुख ने सोशल मीडिया (यूट्यूब) पर यह धारणा व्यक्त की है कि इसकी बहुत संभावना है कि परग्रही सभ्यताएं हमारे मुकाबले में ज्यादा उन्नत हाँ और वे हमें देख रही हों या हम पर नजर रख रही हों। इसकी भी बहुत संभावना है कि पृथ्वी पर दूसरी दुनिया के प्राणी आते रहते हों। यह इस बात का सबूत है कि पृथ्वी के पा जीवन है। उन्होंने यह यह आशंका भी जताई कि पृथ्वी से अलग रासायनिक संरचना वाले जीवन से पृथ्वीवासियों को खतरा हो सकता है यानी एलियंस हम पर हमला कर सकते हैं।

हालांकि ‘इसरो’ प्रमुख ने भी अपने दावों के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं दिया है। मगर जब वे यह कहते हैं कि परग्रही सभ्यताएं हमसे एक से दस हजार साल आगे हैं, तो उनके दावों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। उनके इस दावे का आधार यह है कि हम पृथ्वीवासी अभी अपने प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा से बाहर अपने कदमों की छाप नहीं छोड़ सके हैं। लेकिन ‘एलियन’ हमसे कई गुना ज्यादा उन्नत होने के कारण ब्रह्मांड में दूर तक आने-जाने की क्षमता रखते हैं। इन एलियंस से अगर हम इंसान कोई संपर्क या संवाद नहीं कर पा रहे हैं, तो यह कमी हमारी समझ, ज्ञान और नवाचार की है। क्योंकि इसकी अत्यधिक संभावना है कि एलियंस अपने तरीके से हमसे लगातार संपर्क और संवाद की कोशिश कर रहे होंगे, लेकिन हम अपनी सीमाओं के कारण उनसे संवाद न कर पा रहे हों।

माना जाता है कि धरती पर रहने वाले मानव समुदाय का जब कभी परग्रही प्राणियों से पहली बार आमना-सामना होगा, तो इसकी संभावना सबसे ज्यादा है कि हमें जीवन के उन रूपों का पता चलेगा, जो पृथ्वी की जैविक संरचनाओं से बिल्कुल अलग होंगे। यह भी हो सकता है कि तब हमें एलियंस कहलाने वाली परग्रही सभ्यताओं का कुल रवैया दोस्ती भरा लगे और जिस अनजान खतरे का अंदाजा सदियों से हम इंसान लगाते रहे हैं, वे सारे अनुमान एक झटके में उलट जाएं। पर ऐसा होने तक मानव सभ्यता एलियंस और अनजान आकाशीय वस्तुओं (यूएफओ) को अपने लिए खतरा मानती रह सकती है। इस कड़ी में एक चिंता कुछ महीने पहले जापान ने व्यक्त की थी। वहां सांसदों के एक बड़े समूह ने जून 2024 में उड़न तश्तरियों (अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग आब्जेक्ट यानी यूएफओ) को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। जापान के राजनीतिक नेतृत्व की चिंता है कि जिस तरह से दुनिया में ड्रोन तकनीक का इजाफा हुआ है, मुमकिन है कि ड्रोन की शक्ल में यूएफओ या यूएफओ की शक्ल में ड्रोन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नया खतरा पैदा कर दें। इसलिए जरूरी है कि यूएफओ कहलाने वाली वस्तुओं की गहन जांच की जाए और इनकी सत्यता का पता लगाया जाए।

कुछ समय पहले अमेरिका में भी यूएफओ और एलियंस को लेकर नए सिरे से काफी कुछ कहा-सुना गया। जैसे, बीते वर्ष 2023 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने कहा था कि वह यूएफओ और एलियंस संबंधी घटनाओं से जुड़ी चर्चाओं को सनसनी से अलग कर- के देखने और उन्हें विज्ञान के तराजू पर तौलने की हिमायती है। अमेरिकी सरकार ने इन्हीं पहलकदमियों के बीच उड़न तश्तरियों की जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन भी किया था। समिति के सामने यूएफओ देखे जाने की 510 घटनाओं का ब्योरा जांच के लिए रखा गया है, जिनमें से ज्यादातर को आकाश में उड़ने वाले बड़े गुब्बारों से जोड़ा जाता है। इन गुब्बारों को पड़ोसी मुल्कों के जासूसी उपकरण माना जाता है। इन गुब्बारों में जासूसी वाला कोण हो सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि यूएफओ से जुड़ने वाली हर घटना के पीछे कोई जासूसी संबंधी मामला हो।

परग्रही सभ्यता के अस्तित्व में भरोसा रखने वालों के नजरिए से देखें तो कहा जा सकता है कि इस ब्रह्मांड में असंख्य आकाशगंगाएं हैं। इसलिए यह सोचना सांख्यिकीय तर्क के हिसाब से सही हो सकता है कि उनमें कहीं न कहीं जीवन हो। हालांकि पिछले कई दशक से दुनिया भर के वैज्ञानिकों इससे जुड़े रहस्यों का जो जवाब खोजा था, वह यही है कि ब्रह्मांड में इंसान अकेला है। मगर इस उत्तर को मुकम्मल न मानने की एक वजह यह है कि दूसरी दुनिया की खोज के काम में ब्रह्मांडीय दूरियों के अलावा तकनीकी सीमाएं रही हैं। दुनिया के पास न तो बेहद ताकतवर टेलीस्कोप थे और न ही वैसे सिग्नल पकड़ने वाले यंत्र, जो अंतरिक्ष से आने वाली हर सूक्ष्म आहट को एक अलग प्रकार के जीवन की तरफ से संवाद की कोशिश के रूप में दर्ज कर सकें। दूसरी बड़ी खामी इस मान्यता में जकड़े रहने की रही है कि दूसरी दुनिया भी हमारी पृथ्वी जैसी होगी और उस पर इंसान जैसे जीव ही बसते होंगे। ‘नासा’ ने कहा है कि अब वह आधुनिक तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से यूएपी यानी ‘अनआइडेंटिफाइड एनोमेलस फेनोमेना’ की जांच करेगी। नासा के मुताबिक इससे यह साफ हो सकेगा कि जो चीजें हमारे सौरमंडल से गुजर कर पृथ्वी तक आई हैं, उनके पीछे असल में कौन है।

ऐसा क्यों है कि परग्रही सभ्यता और यूएफओ के बारे में कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पा रहा है। इसका एक समझदार जवाब वर्ष 2016 6 में | शोध जर्नल ‘एस्ट्रोबायोलाजी’ में प्रकाशित हुआ था। इसमें अंतरिक्ष विज्ञानी आदित्य चोपड़ा और चार्ली लाइनवीवर ने यह निष्कर्ष दिया था कि पृथ्वी से परे अन्य ग्रहों पर जीवन के लायक हालात ही नहीं हैं। लिहाजा, उन पर एलियंस (समझदार परग्रही प्राणी) तो क्या, कैसा भी जीवन संभव नहीं है। यहां तक कि सौरमंडल के ही ग्रह मंगल और शुक्र पर 400 करोड़ वर्ष पहले जीवन लायक स्थितियां बनी थीं, पर वहां भी पर्यावरण इतना अनुकूल नहीं रहा कि एलियंस पैदा हो पाएं। मगर हमारा इंटरनेट सौरमंडल को पार कर पृथ्वी तक आने वाली उड़न तश्तरियों या अजीबोगरीब किस्म के यानों की जिन वीडियो फुटेज से भरा पड़ा है। उसके बारे में दावा किया जाता है कि तकनीकी खामियों के कारण यह समस्या हमारी है कि हम अरबों-खरबों प्रकाशवर्ष दूर से आने वाले इन संकेतों को पकड़ और समझ नहीं पा रहे हैं।

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