बीएस राय: दिल्ली विधानसभा चुनाव में दो महीने से भी कम समय बचा है और आम आदमी पार्टी (आप) ने राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतरने की ओर अग्रसर है, जहां एक ओर पार्टी डोर-टू-डोर कैंपेन के जरिए मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है, वहीं दूसरी ओर जातिगत समीकरणों को साधने में भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
दलित वोटरों पर फोकस: आप की रणनीति इस बार आम आदमी पार्टी की दिल्ली के दलित समुदाय पर खास नजर है। दिल्ली में दलितों की संख्या अच्छी खासी है और इसी को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने हाल ही में दो अहम फैसले लिए हैं। सबसे पहले पार्टी ने महेश खिंची को मेयर पद का उम्मीदवार बनाया, जो दलित नेता हैं और जो पार्टी के लिए अहम समीकरण को साधने का एक तरीका हो सकता है।
खिंची की उम्मीदवारी और पार्टी में उनकी स्थिति ने दिल्ली के दलितों के बीच एक मजबूत संदेश दिया है। इसके अलावा शुक्रवार को पार्टी ने वीर सिंह धींगान को भी अपने पाले में शामिल किया। दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख दलित नेताओं में से एक माने जाने वाले धींगान अब आम आदमी पार्टी का हिस्सा बन गए हैं। कांग्रेस से उनका आम आदमी पार्टी में शामिल होना दलित वोटों को साधने की पार्टी की रणनीति को और मजबूत करता है।
सीमापुरी से पूर्व विधायक वीर सिंह धिंगान का दिल्ली की राजनीति में मजबूत स्थान रहा है। वे पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के करीबी सहयोगी रहे हैं और 1998, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में सीमापुरी से जीते थे। हालांकि, 2013 के विधानसभा चुनावों में वे आम आदमी पार्टी के धर्मवीर से हार गए थे और उसके बाद उनका राजनीतिक प्रभाव कम होता चला गया। फिर भी धिंगान की वापसी से आप को दलित वोटों में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है, खासकर उन इलाकों में जहां दलितों की संख्या काफी अधिक है।
दिल्ली में दलित समुदाय की आबादी करीब 17 फीसदी है, जो विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। खास तौर पर दक्षिण और पूर्वी दिल्ली जैसे इलाकों में दलितों की आबादी 25-30 फीसदी है। 2011 के आंकड़ों के मुताबिक सरस्वती विहार, सीलमपुर और सीमापुरी जैसे इलाकों में दलितों की आबादी अच्छी खासी है। इन इलाकों में दलित वोट बैंक को अहम माना जाता है, इसलिए आम आदमी पार्टी इसे अपनी रणनीति का हिस्सा बना रही है।
दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 12 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इन सभी 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार परिस्थितियां थोड़ी बदली हुई हैं। भाजपा अब पहले से ज्यादा मजबूत नजर आ रही है, वहीं कांग्रेस भी दलित वोटों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है।
सीएसडीएस के मुताबिक, 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 49 फीसदी दलित वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी को 28 फीसदी और कांग्रेस को 20 फीसदी वोट मिले। इस बार आप के लिए लोकसभा चुनाव में की गई गलती से सीख लेकर विधानसभा चुनाव में दलित वोटों को अपने पक्ष में लाना चुनौती है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव फरवरी 2025 में हो सकते हैं, और इस बार मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच देखने को मिलेगा। कांग्रेस इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की पूरी कोशिश कर रही है और अगर उसने दलित वोट बैंक पर ध्यान केंद्रित किया तो चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। दिल्ली में सरकार बनाने के लिए 36 विधायकों की जरूरत होती है और इस बार आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतर रही है, जबकि भाजपा अपने सामूहिक नेतृत्व में चुनावी जंग लड़ने की तैयारी कर रही है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2024 आम आदमी पार्टी के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है। एक तरफ पार्टी की रणनीति दिल्ली के दलित मतदाताओं को लुभाने की है तो दूसरी तरफ वह भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी अपने दलित नेताओं को चुनावी मैदान में सही तरीके से उतारकर इस महत्वपूर्ण समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होती है या नहीं।