32 साल पहले स्वामी महाराज ने गांधीनगर में भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रकाश को फैलाने वाले दिव्य और भव्य अक्षरधाम का निर्माण किया था। वर्तमान समय में, स्वामी महाराज के मार्गदर्शन में बीएपीएस संस्था के संतों और हरि भक्तों के समर्पण से नव अक्षरधाम मंदिर निर्माण के नए सोपान पार किए जा रहे हैं। 11 नवंबर, कार्तिक शुद्ध दशमी के शुभ अवसर पर, गांधीनगर के स्वामिनारायण अक्षरधाम परिसर में नीलकंठ वर्णी की तपस्वी मूर्ति का प्रतिष्ठा उत्सव मनाया गया।
बीएपीएस संस्था के वरिष्ठ संत ईश्वर चरण स्वामी, कोठारी स्वामी, त्याग वल्लभ स्वामी, विवेक सागर स्वामी और गांधीनगर अक्षरधाम के मुख्य संत आनंद स्वरूप स्वामी की उपस्थिति में मूर्ति प्रतिष्ठा विधि के अंतर्गत पूर्व न्यास विधि का शुभारंभ हुआ। बीएपीएस के विद्वान संत श्रुति प्रकाश स्वामी ने वैदिक मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ संपूर्ण पूजा विधि संपन्न कराई। पूर्व न्यास विधि के बाद नीलकंठ वर्णी महाराज के 108 मंगलकारी शुभ नामों और सहजानंद नामावली का जाप किया गया।
इसके बाद, बीएपीएस संस्था के विद्वान संत अक्षरवत्सलदास स्वामी ने भारत में नीलकंठ वर्णी की इस सबसे ऊंची तपस्वी मूर्ति की विशेषताओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि नेपाल के मुक्तिनाथ में भगवान स्वामिनारायण ने जिस तप मुद्रा में 2 महीने और 20 दिनों तक कठोर तप किया था, उसी मुद्रा में इस नीलकंठ वर्णी की मूर्ति का निर्माण किया गया है।
उल्लेखनीय है कि, पृथ्वी के पश्चिमी गोलार्ध के सबसे बड़े हिंदू मंदिर, न्यू जर्सी के रॉबिंसविले स्थित स्वामिनारायण अक्षरधाम में सबसे पहले इस प्रकार की 49 फुट ऊंची नीलकंठ वर्णी महाराज की मूर्ति प्रतिष्ठा की गई थी।
सुबह 8:30 बजे परम पूज्य महंत स्वामी महाराज द्वारा 555 तीर्थों के पवित्र जल से मूर्ति प्रतिष्ठा विधि का शुभारंभ किया गया। चार धाम, पंच केदार, पंच सरोवर, सप्तपुरी, सप्त बद्री, सप्त क्षेत्र, आठ विनायक तीर्थ, नौ अरण्य, बारह महा संगम, इक्यावन शक्तिपीठ, भगवान स्वामिनारायण द्वारा स्थापित छह मंदिर, बीएपीएस के संस्थापक ब्रह्म स्वरूप शास्त्रीजी महाराज द्वारा निर्मित पांच मंदिरों तथा बीएपीएस की गुरु परंपरा द्वारा स्थापित मंदिरों सहित विभिन्न तीर्थों के पवित्र जल इसमें शामिल किए गए।
इसके बाद महंत स्वामी महाराज ने नीलकंठ वर्णी महाराज के हृदय स्थल से विधि का आरंभ किया और फिर स्वामिनारायण महामंत्र के मंगल ध्वनि के साथ नीलकंठ वर्णी महाराज के मुख दर्शन, मंगलदर्शन और मूर्ति पूजन किया गया। संपूर्ण विश्व में शांति की भावना के साथ स्वामिनारायण महामंत्र के जाप के साथ आरती का अर्घ्य अर्पित किया गया। इसके अतिरिक्त मंत्र पुष्पांजलि और ड्रोन द्वारा नीलकंठ वर्णी महाराज पर पुष्प वर्षा की गई। इसके बाद संस्था के वरिष्ठ संतों द्वारा महंत स्वामी महाराज को विभिन्न कलात्मक हार और चादर अर्पण किए गए।
इस मूर्ति के निर्माण में विशेष मार्गदर्शन देने वाले वरिष्ठ संत ईश्वर चरण स्वामी ने अपने संबोधन में कहा, गुजरात की राजधानी में अक्षरधाम, प्रमुख स्वामी महाराज का उपहार है। आज तपस्वी नीलकंठ वर्णी महाराज की मूर्ति के दर्शन हो रहे हैं, यह पूज्य महंत स्वामी महाराज का संकल्प है। नीलकंठ वर्णी महाराज ने 11 वर्ष की आयु में घर को त्यागकर संपूर्ण भारतवर्ष में विचरण करते हुए हमारे गुजरात में प्रवेश किया और रामानंद स्वामी द्वारा इस संप्रदाय की जिम्मेदारी स्वीकार की।
उन्होंने आगे कहा, उन्होंने संपूर्ण गुजरात में भ्रमण कर धर्म का प्रचार किया और गुणातीत पुरुषों द्वारा अपनी परंपरा को आगे बढ़ाया। आज वे महंत स्वामी महाराज के माध्यम से प्रकट हैं। भगवान स्वामिनारायण ने भक्तों के कल्याण के लिए सात वर्षों तक कठिन तप और भ्रमण किया है, उन्होंने अपने शरीर का अत्यधिक संयम किया है। कई बार तो उन्होंने केवल वायु का सेवन कर जंगली जानवरों के बीच भी विचरण किया है। तप से भगवान प्रसन्न होते हैं और भगवान स्वामिनारायण ने मुक्तिनाथ में ढाई महीने जो तप किया था, उसकी याद को बनाए रखने के लिए इस मूर्ति की स्थापना की गई है।