सुप्रीम कोर्ट की नई पीठ अयोध्या मामले की सोमवार को सुनवाई कर सकती है। शीर्ष कोर्ट के समक्ष 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं लंबित हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन बराबर हिस्सों में तीनों पक्षकारों-भगवान रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को बांटने का सुझाव दिया था।
27 सितंबर को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पीठ ने दो-एक के बहुमत से आदेश दिया था कि विवादित भूमि के मालिकाना हक वाले दीवानी मुकदमे की सुनवाई तीन जजों की नई पीठ 29 अक्टूबर को करेगी।
पीठ ने नमाज के लिए मस्जिद को इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं मानने वाले इस्माइल फारूकी मामले में 1994 के फैसले के अंश को पुनर्विचार के लिए सात जजों की पीठ को भेजने से मना कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि विवादित जमीन पर मालिकाना हक का निर्धारण साक्ष्यों के आधार पर किया जाएगा। इसलिए पिछले फैसले का मौजूदा मामले से कोई संबंध नहीं है।
अपना और मुख्य न्यायाधीश की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि हमें वह संदर्भ देखना है, जिसमें पांच जजों की पीठ ने वह फैसला सुनाया था। हालांकि, पीठ में शामिल जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने अलग फैसला देकर कहा था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं, इस पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विस्तृत विचार की जरूरत है।
नई पीठ में कौन-कौन
– प्रधान न्यायाधीश : रंजन गोगोई
– जस्टिस : संजय किशन कौल और केएम जोसेफ
पिछली पीठ में कौन थे
– रिटायर्ड सीजेआइ : दीपक मिश्रा
– जस्टिस : अशोक भूषण और अब्दुल नजीर
ये हैं पक्षकार : रामलला विराजमान, हिंदू महासभा, वक्फ बोर्ड और अन्य।
अयोध्या मामले में राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
राम जन्मभूमि को लेकर संघ के विचारक इंद्रेश कुमार का कहना है कि जैसे काबा को बदला नहीं जा सकता, हरमंदिर साहब को बदला नहीं जा सकता, वेटिकन और स्वर्णमंदिर नहीं बदला जा सकता वैसे ही अयोध्या में रामजन्मभूमि का स्थान नहीं बदल सकता है। यह एक सत्य है।