क्लीवलैंड क्लिनिक के जीनोम सेंटर के निदेशक फेक्सिओंग चेंग और तकनीकी दिग्गज आईबीएम एडवांस पेन मैनेजमेंट यानि निरंतर हो रहे दर्द को नियंत्रित करने वाली दवाओं का पता लगाने के लिए एआई का प्रयोग कर रहे हैं।
टीम ने नए एआई टूल का उपयोग यह अनुमान लगाने के लिए किया कि 369 गट (आंत) माइक्रोबियल मेटाबोलाइट्स और 2,308 एफडीए-अनुमोदित दवाएं 13 दर्द-संबंधी रिसेप्टर्स के साथ कैसे इंटरैक्ट करेंगी यानि इनका असर क्या होगा।
एआई फ्रेमवर्क ने कई कंपाउंड्स (यौगिकों) की पहचान की है जिन्हें दर्द से राहत दिलाने के लिए फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। सेल रिपोर्ट्स मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, प्रयोगशाला में इसको लेकर परीक्षण जारी है।
ओपिओइड (नशे की लत पैदा करने वाली और ओवरडोज का कारण बनने वाली दवा) का सेवन कर पुराने दर्द से राहत दिलाना अभी भी एक चुनौती है, क्योंकि इससे साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ता है।
डॉ चेंग की लैब में पोस्टडॉक्टरल फेलो युंगुआंग किउ ने बताया कि प्रोटीन उपसमूह जी प्रोटीन-कप्लड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) के विशिष्ट पेन रिसेप्टर्स को ड्रग की डोज दी गई। नतीजे अच्छे रहे। पता चला कि इनसे दर्द से राहत मिलती है। ये नॉन एडिक्टिव और नॉन ओपिओइड था। अब सवाल सिर्फ एक है कि इन रिसेप्टर को टारगेट कैसे किया जाए?
यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई अणु (मॉलिक्यूल) दवा के रूप में काम करेगा, शोधकर्ताओं को यह पता लगाना जरूरी है कि यह हमारे शरीर में प्रोटीन (इस मामले में, हमारे दर्द रिसेप्टर्स) के साथ शारीरिक रूप से कैसे इंटरैक्ट करता है और उन्हें कैसे प्रभावित करता है।
ऐसा करने के लिए, शोधकर्ताओं को उनके भौतिक, संरचनात्मक और रासायनिक गुणों के बारे में व्यापक 2D डेटा के आधार पर दोनों अणुओं की 3D समझ की भी जरूरत है।
शोध दल के उपकरण ने यह अनुमान लगाने के लिए उपकरण का उपयोग किया कि क्या कोई अणु किसी विशिष्ट दर्द रिसेप्टर से बंध सकता है; रिसेप्टर पर कोई अणु शारीरिक रूप से कहां जुड़ेगा; अणु उस रिसेप्टर से कितनी मजबूती से जुड़ेगा; और क्या किसी अणु को रिसेप्टर से बांधने से सिग्नलिंग इफेक्ट चालू या बंद हो जाएगा?
चेंग ने कहा, हमारा मानना है कि ये आधारभूत मॉडल स्वास्थ्य संबंधी कई चुनौतीपूर्ण स्थितियों से निपटने के लिए शक्तिशाली एआई तकनीक प्रदान कर सकता है।