हमास के उस हमले को लगभग एक साल पूरे हो चुके हैं। इस बीच दुनिया काफी बदल चुकी है। स्पष्ट रूप से पूरा विश्व दो खेमों में बंट चुका है, हमास इजरायल युद्ध में कुछ नए देशों की एंट्री हो चुकी है, व्यापार करने के तरीके बदल चुके हैं।
हमास से बदला लेने के लिए इजरायल ने त्वरित कार्रवाई की बजाय पूरी योजना बनाकर मैदान में उतरने की ठानी। शुरुआत में हवाई हमले किये गये। पूर्ण आक्रमण करने की बजाय दबाव बनाकर पहले बंधकों को छुड़ाने की कोशिश की गई, हालांकि हमास को भी पता था कि जब तक बंधक उसके पास हैं, इजरायल बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकता – खासकर बंधकों का लोकेशन जाने बिना।
बातचीत के प्रयासों के फलस्वरूप 100 से अधिक बंधकों को रिहा किया गया है, लेकिन 101 बंधक अब भी हमास के कब्जे में हैं।
इजरायल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) ने करीब एक महीने बाद अपनी आर्मी को गाजा पट्टी में उतार दिया। सेना धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही और एक-एक कर इलाकों से हमास के नेटवर्क को खत्म करती रही। इस ऑपरेशन में बड़ी संख्या में आम नागरिक भी मारे गये। यूक्रेन पर रूसी कार्रवाई की निंदा करने वाले पश्चिमी दुनिया के देश अब इजरायल के साथ खड़े थे। हालांकि उन्होंने न रूस के खिलाफ, न यूक्रेन से साथ अपनी सेना उतारी है, लेकिन उन्होंने यूक्रेन और इजरायल दोनों को बचाव के लिए हथियार और इंटेलिजेंस जरूर मुहैया कराये हैं।
इस बीच चीन, रूस, उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देश खुलकर फिलिस्तीन का समर्थन तथा इजरायली कार्रवाई की निंदा करते नजर आ रहे हैं। वहीं, भारत और सऊदी अरब जैसे देश भी हैं जो युद्ध विराम के लिए प्रयास करते दिख रहे हैं। लेकिन जिस तरह लड़ाई में अब ईरान भी इजरायल के खिलाफ मोर्चा खोल चुका है, यदि कुछ और देशों तक यह आग फैली तो किसी भी देश का तटस्थ रहना काफी मुश्किल होगा।
हिजबुल्लाह पर पिछले कुछ दिनों में हुए इजरायली हमले और हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह के मारे जाने के बाद ईरान की सरकार खुलकर इजरायल के विरोध में उतर चुकी है। ईरान समर्थित समूह हिजबुल्लाह के लगभग पूरे शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो चुका है।
भारत के लिए स्थिति काफी पेचीदगी भरी है। अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों से हमारे व्यापारिक के साथ-साथ सामरिक रिश्ते भी हैं। वहीं रूस के साथ भी हमारे सांस्कृतिक, सामरिक और रणनीतिक रिश्ते काफी मजबूत हैं। इजरायल से भारत के संबंधों में लगातार सुधार हो रहा था, तो वहीं भारत दो राष्ट्र सिद्धांत यानी फिलिस्तीन के अस्तित्व का समर्थन करता रहा है। ऐसे में भारत के लिए दोनों छोरों को एक साथ पकड़कर चलना सबसे बड़ी चुनौती है।
इस संकट ने बड़े स्तर पर मानवीय त्रासदी भी पैदा कर दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पिछले एक साल में इजरायल 1,500 से ज्यादा, गाजा पट्टी में करीब 42 हजार और वेस्ट बैंक में 700 से अधिक लोग मारे गये हैं। इसके अलावा गाजा में 10 हजार से अधिक लोग लापता हैं और 19 लाख लोग अपने घरों से विस्थापित हो चुके हैं।
वहीं, लेबनान में इजरायली और पश्चिमी देशों के हमलों में 1.600 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि 10 लाख से अधिक विस्थापित हो चुके हैं। विस्थापितों में 1,60,000 सीमा पार कर सीरिया में प्रवेश कर चुके हैं और 3,50,000 शिविरों में रहने को विवश हैं।
ईरान-इजरायल युद्ध का असर पहले ही दुनिया के शेयर बाजारों पर दिखने लगा है। बीएसई का सेंसेक्स पिछले चार कारोबारी सत्र में चार हजार अंक के अधिक लुढ़क चुका है। एक सप्ताह में लंदन के ब्रेंट क्रूड वायदा की कीमत 10 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 78 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक महीने में सोना पांच प्रतिशत से अधिक महंगा हो चुका है। युद्ध के कारण समुद्री व्यापारिक मार्गों में व्यवधान से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी प्रभावित हो रहा है।