जैन साधुओं का निर्वस्त्र रहना केवल बाहरी दिखावा नहीं है, बल्कि यह उनके जीवन के प्रति गहरे आध्यात्मिक दृष्टिकोण को दर्शाता है. उनका निर्वस्त्र रहना उनके तप, त्याग और सादगी की भावना को प्रकट करता है.
अगर आपने कभी जैन साधुओं को देखा होगा तो आपने गौर किया होगा कि इनमें से कुछ बिना कपड़ों के रहते हैं. यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है कि आखिर क्यों ये साधु कपड़े नहीं पहनते. बता दें कि देश में दो ही तरह के लोग बिना कपड़ों के नजर आते हैं, पहला नागा साधु और दुसरा जैन अनुयायी. हालांकि जैन धर्म के अनुयायी दो मुख्य प्रकार के होते हैं, एक दिगंबर और दूसरा श्वेतांबर. श्वेतांबर साधु सफेद कपड़े पहनते हैं, जबकि दिगंबर साधु बिना कपड़ों के रहते हैं. लेकिन, दिगंबर साधुओं का बिना कपड़े रहना केवल बाहरी रूप नहीं, बल्कि उनके तप, त्याग और साधना की गहरी सोच को दर्शाता है.
जैन मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज ने इस विषय पर महत्वपूर्ण बात कही है. उन्होंने बताया कि दिगंबर साधु नग्न नहीं होते, बल्कि वे चारों दिशाओं को अपने वस्त्र के रूप में मानते हैं. उनका कहना है कि वो नग्न नहीं, बल्कि उन्होंने दिशाओं को ओढ़ लिया है. उनके लिए कपड़े केवल वस्तुएं हैं जो समय के साथ गंदे होते हैं, फटते हैं और धोने की जरूरत होती है. लेकिन दिगंबर साधु अपने शरीर और मन को इस भौतिकता से परे मानते हैं.
वस्त्रों की जरूरत क्यों नहीं?
दिगंबर साधु न केवल कपड़ों का त्याग करते हैं, बल्कि वे अपने जीवन के हर भौतिक सुख-सुविधा से दूर रहते हैं. उनका जीवन पूरी तरह तपस्या और साधना में समर्पित होता है. जब वे इतने वृद्ध हो जाते हैं कि खड़े होकर भोजन नहीं कर सकते, तो वे अन्न और जल का भी त्याग कर देते हैं. उनका लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है और इसके लिए वे हर सांसारिक बंधनों को छोड़ देते हैं.