पुणे सेशन कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी अरुण फेरेरा, वर्नोन गॉनसैल्विस और सुधा भारद्वाज की जमानत याचिका खारिज कर दी है। इन तीनों के हाउस अरेस्ट की अवधि आज समाप्त हो रही है। अब तीनों आरोपियों की हिरासत बढ़ा दी गई है।
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में बांबे हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने के लिए गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर उसने हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसमें उच्च न्यायालय ने हिंसा की जांच अवधि बढ़ाने के निचली अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया था। इस मामले में कई जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ताओं को आरोपित बनाया गया है।
महाराष्ट्र सरकार ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल व न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष उक्त याचिका दाखिल की। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील निशांत कटनेश्वर ने पीठ के समक्ष दलील दी कि याचिका पर फौरन सुनवाई की जाए। वकील का कहना था कि अगर हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दाखिल नहीं होने के कारण हिंसा मामले के आरोपितों को वैधानिक जमानत मिल जाएगी।
दरअसल बांबे हाई कोर्ट ने बुधवार को निचली अदालत के उस आदेश को रद कर दिया, जिसमें महाराष्ट्र पुलिस को हिंसा के इस मामले की जांच और आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने के लिए ज्यादा समय दिया गया था।
इस साल जनवरी में भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। पुणे पुलिस ने इस मामले में सामाजिक सुरेंद्र गडलिंग, प्रोफेसर शोमा सेन, सुधीर धावले, महेश राऊत और रोना विल्सन को जून में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया था। माओवादियों से रिश्ता व हिंसा भड़काने के आरोप में इनकी गिरफ्तारी हुई थी। यूएपीए के तहत 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करना अनिवार्य है, लेकिन यदि कोर्ट सहमत है तो वह और नब्बे दिन का समय दे सकता है।
कोरेगांव हिंसा मामले में भी निचली अदालत ने पुणे पुलिस को 90 अतिरिक्त दिन का समय दिया था। वकील सुरेंद्र गडलिंग ने इसी को चुनौती दी थी। इस पर हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी। उल्लेखनीय है कि इसी भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के तहत ही पांच अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं वरवर राव, अरुण फेरेरा, वर्नोन गोनसाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को भी महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले दिनों गिरफ्तार किया। शीर्ष न्यायालय ने इनकी गिरफ्तारी मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था।