दिल्ली के आर्चबिशप अनिल कूटो ने ईसाई धर्म को मानने वालों के लिए आठ मई को एक चिट्ठी लिखी थी. इस ख़त में उन्होंने देश के लिए दुआ करने का आग्रह किया था. इस चिट्ठी को जल्द ही राजनीतिक रंग मिल गया. बिशप के ख़त को ‘भारत के आंतरिक मामलों में वेटिकन के हस्तक्षेप’ और ‘मोदी-सरकार को हटाने की अपील’ के रूप में पेश किया गया. केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह ने ईसाइयों की दुआ के जवाब में भजन-कीर्तन की बात कह डाली.
अनिल कूटो ने कहा चिट्ठी में लिखा था, “देश उथल-पुथल वाले राजनीतक माहौल से गुज़र रहा है. ये हमारे संविधान में स्थापित लोकतांत्रिक मूल्यों और देश की धर्मनिरपेक्षिता के लिए ख़तरा बनकर उभर रहा है.” दिल्ली के सभी ईसाई पादरियों और धार्मिक संस्थाओं को लिखे ख़त में आर्च बिशप ने देश के साथ नेताओं के लिए प्रार्थना करने और उपवास रखने की अपील की थी. आर्च बिशप ने लिखा था, ”यूं तो हम मुल्क और उसके नेताओं के लिए हमेशा दुआ करते हैं, लेकिन अब जबकि आम चुनाव पास है तो हमें और अधिक प्रार्थना करने की ज़रूरत है.”
क्रिया की प्रतिक्रिया
लेकिन कुछ लोगों को देश के राजनीतिक माहौल, लोकतांत्रिक मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता पर ख़तरे जैसे वाक्य रास नहीं आए. केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता गिरिराज सिंह इसे नरेंद्र मोदी सरकार को हटाने की अपील के तौर देखते हैं. गिरिराज सिंह ने कहा, ‘हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. मैं वैसा कोई काम नहीं करना चाहता जिससे देश में सामाजिक समरसता बिगड़े. लेकिन अगर चर्च इस ढंग से अपील करेगा कि नरेंद्र मोदी की सरकार न आए तो देश को सोचना पड़ेगा कि दूसरे धर्म के लोग भी कीर्तन-पूजा करें.’
वहीं मीडिया के सवाल के पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने देश में किसी के साथ भेदभाव होने की बात से इनकार किया. उन्होंने कहा कि किसी को भी मज़हब के आधार पर भेदभाव करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है. चर्च ने अब सफ़ाई दी है कि उसका मक़सद किसी दल या नेता को निशाना बनाने का नहीं था. आर्च बिशप के सेक्रेटरी फ़ादर रॉबिन्सन रॉड्रिग्स ने बीबीसी से राजनीतिक उथल-पथल वाली बात को सही ठहराया.
इसके तर्क में उन्होंने कहा, ”राजकोट में दो-तीन दिन पहले दलित की हत्या, कर्नाटक में जोड़-तोड़, चर्चों पर हमले और चार जजों का पहली बार भारत के इतिहास में आकर खुलेआम प्रेस कॉन्फ़्रेंस करना, क्या ये राजनीतिक उथल-पुथल नहीं है? फ़ादर रॉबिन्सन रॉड्रीग्स का कहना है, राजनीतिक उथल-पुथल के लिए किसी दल, या किसी अमुक नेता या सरकार को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया है.
विवाद से नाता
लेकिन चर्च के राजनीतिक क़िस्म के बयानों पर ये पहला विवाद नहीं है. इसी तरह का विवाद गुजरात चुनाव के समय भी हुआ था जब गांधीनगर के आर्च बिशप ने राष्ट्रवादी ताक़तों के ज़रिए मुल्क को अपने क़ब्ज़े में लेने की बात कही थी.
इसे भी सूबे में बीजेपी हुकूमत के ख़िलाफ़ बताया गया था. कई टेलीविज़न चैनल ये सवाल भी उठा रहे हैं कि क्या किसी धार्मिक नेता का रानजीतिक बयान देना उचित है? फ़ादर रॉड्रिग्स जवाब में कहते हैं कि ये एक धार्मिक नेता की धार्मिक क़िस्म की अपील थी और इसे बेवजह राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जा रही है. हालांकि फ़ादर रॉबिन्सन रॉड्रिग्स कहते हैं कि कई धार्मिक नेता राजनीति में भी आए हैं. वो ईसाई धर्म से नहीं हैं, लेकिन उन पर कोई सवाल नहीं उठाता?
हस्तक्षेप
तो क्या चर्च का इशारा योगी आदित्यनाथ, उमा भारती, साक्षी महाराज और उन जैसे हिंदू धार्मिक नेताओं की तरफ़ है जो अब सक्रिय राजनीति में हैं. इधर आरएसएस आर्च बिशप की चिट्ठी को भारत के आंतरिक मामलों में वेटिकन के हस्तक्षेप से जोड़ा जा रहा है. राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ विचारक राकेश सिन्हा का कहना है, वेटिकन एक स्वतंत्र संप्रभु देश है और पोप वहां के शासक हैं. उनके ज़रिए नियुक्त किए गए आर्चबिशप भारतीय राजनीति में किस तरह हस्तक्षेप कर सकते हैं?
#Vatican is an independent sovereign state, Pope is its ruler. How can his appointee Archbishop intervene in Indian politics? will pope allow VHP leader to speak for Vatican? #crosspurposes
— Prof Rakesh Sinha MP (@RakeshSinha01) May 22, 2018
राकेश सिन्हा के इसी ट्वीट में सवाल उठाया गया है, ‘क्या पोप एक वीएचपी नेता को वेटिकन के मामले में बोलने की आज्ञा देंगे?’ आर्चबिशप की चिट्ठी का कोई राजनीतिक आशय था या नहीं पर बीजेपी और दूसरी हिंदुवादी ताक़तों ने इसका इस्तेमाल हिंदुओं को गोलबंद करने के लिए शुरू कर दिया है.