मुहकमा शरीया दारुलकजा ख्वातीन कोर्ट कानपुर में महिलाओं के मामले बढ़े तो विस्तार की तैयारी….

शहर में मुहकमा शरीया दारुलकजा ख्वातीन कोर्ट में महिला उत्पीडऩ से जुड़े काफी मामले आने के बाद अब पूरे प्रदेश में शरई अदालत शुरू करने की तैयारी है, इसमें पहले चरण में दस जिले लिए गए हैं। महिला शहरकाजी और उलमा इन शहरों का दौरा कर हकीकत जान रहे हैं, जहां महिलाओं से जुड़े मामले बढ़े हैं। इस सर्वे के साथ ही शरीयत की जानकार महिलाओं की भी तलाश शुरू हो गई है। 
आल इंडिया सुन्नी उलमा कौंसिल एवं आल इंडिया मुस्लिम ख्वातीन बोर्ड ने कानपुर में छह माह पूर्व ख्वातीन कोर्ट स्थापित की थी। तीन तलाक, खुला (महिला को तलाक लेने का अधिकार), महिलाओं को शरीयत के अनुसार पिता की वरासत में अधिकार समेत अन्य शरई मसलों की सुनवाई करते हुए कोर्ट महिलाओं को इंसाफ दिला रही है। 
मदरसों से भी सहयोग, पहले ये शहर शामिल 
पहले चरण में लखनऊ, बरेली, कन्नौज, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इलाहाबाद, वाराणसी, फतेहपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ में महिला शरई अदालत स्थापित की जाएगी। शरई अदालत के प्रमुख एवं आल इंडिया सुन्नी उलमा कौंसिल के महामंत्री हाजी मोहम्मद सलीस ने कहा कि कई आलिमा का कोर्स पूरा करने वाली युवतियों एवं महिलाओं की मदद शरई अदालत के लिए ली जाएगी। इसकी सूची बन रही है। 
अल्लाह के कानून के तहत इंसाफ 
शहरकाजी एवं मुहकमा शरीया दारुलकजा ख्वातीन कोर्ट प्रमुख हिना जहीर ने बताया कि महिलाओं की बड़ी समस्याएं हैं और ये समस्या ज्यादातर शरई जानकारी नहीं होने से है। शौहर हो या बीवी, उन्हें पता नहीं कि वह जो गलती कर रहा है, उसका शरई हल क्या है। अल्लाह के कानून के तहत किसी को इंसाफ दिलाने के लिए ही शरई अदालत है, इसमें दोनों पक्ष की जीत होती है क्योंकि दोनों ही कुरआन की बातों में मान रहे हैं। शरई अदालत के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। दोनों पक्ष पर निर्भर करता है कि वह शरई अदालत की बात मानें या नहीं। जिनके दिल में अल्लाह का खौफ होता है, फैसले को मानते हैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक शहर में कोर्ट की जिम्मेदारी ऐसी महिला को दी जाएगी जो शरीयत की जानकारी रखती है। 
ऐसे काम करेगी शरई कोर्ट 
यदि कोई महिला समस्या लेकर शरई अदालत आएगी तो अदालत से विपक्षी को नोटिस जारी की जाएगी। इस नोटिस में वह प्रति भी संलग्न रहेगी जो पीडि़ता ने शिकायत की है। विपक्षी को बीस दिन समय देकर जवाब मांगा जाएगा। फिर कार्रवाई का सिलसिला शुरू होगा। किसी भी मामले को छह माह से अधिक लंबित नहीं किया जाएगा और कुरआन की रोशनी में फैसला दिया जाएगा।

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