सावन शिवरात्रि पर इस विधि से करें महादेव का रुद्राभिषेक, पूरी होगी हर मनोकामना

सावन शिवरात्रि में कुछ लोग घर पर भगवान शिव का रूद्राभिषेक करते हैं। लेकिन रुद्राभिषेक की सही विधि न पता होने के कारण अक्सर पूजा में गलती हो जाती है। हम आपको रुद्राभिषेक की विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।

सावन भगवान शिव का प्रिय महीना होता है। इस महीने देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना करने से शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है। इस महीने सोमवार के व्रत रखने का विधान है। सावन सोमवार का व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है। सावन के महीने में शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करना शुभ होता है। हिंदू धर्म में सावन शिवरात्रि को बेहद शुभ माना जाता है। इस साल 22 जुलाई 2024 से सावन महीने की शुरूआत हुई है। इसी दिन से कांवड़ यात्रा की शुरूआत हुई थी। जोकि 02 अगस्त 2024 को सावन शिवरात्रि के दिन समाप्त होगी।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिवरात्रि पर कांवड़िए शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाते हैं। बता दें कि इस दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करना बेहद शुभ माना जाता है। इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। इससे जातक के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। तो वहीं कुछ लोग घर पर भगवान शिव का रूद्राभिषेक करते हैं। लेकिन रुद्राभिषेक की सही विधि न पता होने के कारण अक्सर पूजा में गलती हो जाती है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको रुद्राभिषेक की पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।

रुद्राभिषेक विधि

सावन शिवरात्रि के मौके पर रुद्राभिषेक करने से पहले पूजा स्थान को अच्छे से साफ कर लें। फिर पूजा की सभी सामग्रियों को एकत्रित कर लें। इसके बाद शिवलिंग स्थापित करें। ध्यान रखें कि पूजा के दौरान बैठते समय आपका मुंह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। रुद्राभिषेक की पूजा शुरू करने पहले गणेश भगवान का ध्यान करें। भोलेनाथ से अपनी मनोकामना व्यक्त कर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें। इसके बाद शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद, शर्करा और गंगाजल से अभिषेक करें।

इस दौरान वेद मंत्रों जैसे रुद्राष्टाध्यायी का जाप करें। अभिषेक के बाद शिवलिंग पर पर फूल-फल, चावल, धतूरा, भांग और बेलपत्र आदि चढ़ाएं। आखिरी में महादेव की आरती करते हुए शंखनाद करें।

रुद्राभिषेक मंत्र

ॐ नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च

मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ॥

ईशानः सर्वविद्यानामीश्व रः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपति

ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोय् ॥

तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररुपेभ्यः ॥

वामदेवाय नमो ज्येष्ठारय नमः श्रेष्ठारय नमो

रुद्राय नमः कालाय नम: कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः

बलाय नमो बलप्रमथनाथाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥

सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः ।

भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥

नम: सायं नम: प्रातर्नमो रात्र्या नमो दिवा ।

भवाय च शर्वाय चाभाभ्यामकरं नम: ॥

यस्य नि:श्र्वसितं वेदा यो वेदेभ्योsखिलं जगत् ।

निर्ममे तमहं वन्दे विद्यातीर्थ महेश्वरम् ॥

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिबर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात् ॥

सर्वो वै रुद्रास्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु । पुरुषो वै रुद्र: सन्महो नमो नम: ॥

विश्वा भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायामानं च यत् । सर्वो ह्येष रुद्रस्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु ॥

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