सीबीआई में नंबर 1 और नंबर 2 के बीच मचे घमासान के कारण एजेंसी की छवि प्रभावित हो रही थी.

 सीबीआई में नंबर 1 और नंबर 2 के बीच मचे घमासान के कारण एजेंसी की छवि प्रभावित हो रही थी. केंद्र की बढ़ती चिंता के बीच सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय सतर्कता आयुक्‍त (सीवीसी) को सुझाव दिया कि दोनों ही शीर्ष अधिकारियों से उनके अधिकारों को छीनते हुए जबरन छुट्टी पर भेज दिया जाना चाहिए. इस अनुशंसा पर निर्णय लेते हुए सरकार ने वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी एम नागेश्‍वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्‍त कर दिया.

एम नागेश्‍वर राव
1986 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. इससे पहले सीबीआई में ज्‍वाइंट डायरेक्‍टर के पद पर कार्यरत थे. देर रात उनको तत्‍काल प्रभाव से सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्‍त किया गया. उल्‍लेखनीय है कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और नंबर 2 की हैसियत रखने वाले विशेष निदेशक राकेश अस्‍थाना का एक दूसरे से विवाद चल रहा है और दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाए हैं.

इससे पहले एजेंसी ने एक अभूतपूर्व कदम के तहत अपने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वत का मामला दर्ज किया है. उन पर आरोप है कि तीन करोड़ रुपये की रिश्वत के बदले उन्‍होंने एक कारोबारी सतीश सना को राहत प्रदान की थी. रिश्वत की राशि बिचौलिए मनोज प्रसाद ने प्राप्त की थी. प्रसाद को 16 अक्टूबर, 2018 को भारत आने पर गिरफ्तार किया गया था. इस मामले में कार्रवाई करते हुए सीबीआई ने सोमवार को राकेश अस्थाना की टीम से जुड़े पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) देवेंद्र कुमार को गिरफ्तार किया है. देवेंद्र कुमार को सात दिन की कस्‍टडी में भेज दिया गया है. इस बीच राकेश अस्‍थाना ने अपने खिलाफ एफआईआर को रद कराने के लिए मंगलवार को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया. अब इस मामले की सुनवाई 29 अक्‍टूबर को होगी.

इस पृष्‍ठभूमि में इस पूरे मामले को समझने के लिए इससे जुड़ी प्रमुख शख्सियतों पर आइए डालते हैं एक नजर:

देवेंद्र कुमार
देवेंद्र कुमार सीबीआई में डीएसपी हैं. मांस निर्यातक मोइन कुरैशी से जुड़े मामले में जांच अधिकारी थे. उन्हें सतीश सना का बयान दर्ज करने में फर्जीवाड़े के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. अधिकारियों के अनुसार सना ने मामले में राहत पाने के लिए कथित तौर पर रिश्वत दी थी. ऐसा आरोप है कि सना का बयान कथित तौर पर 26 सितंबर, 2018 को राकेश अस्थाना के नेतृत्व वाली जांच टीम द्वारा दर्ज किया गया, लेकिन सीबीआई जांच में यह बात सामने आई कि वह उस दिन हैदराबाद में था. एजेंसी ने कहा कि होटल बिल आदि के रूप में साक्ष्य है कि सना उस दिन हैदराबाद में था.

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सना ने अपने बयान में कथित तौर पर कहा है कि उसने इस साल जून में तेदेपा के राज्यसभा सदस्य सीएम रमेश के साथ अपने मामले पर चर्चा की थी और उन्होंने सीबीआई निदेशक से बातचीत कर सना को आश्वासन दिया था कि उसे फिर से समन नहीं किया जाएगा. सना ने संभवतया कहा है, ‘‘जून के बाद से, सीबीआई ने मुझे नहीं बुलाया. मैं यह मान रहा था कि मेरे खिलाफ जांच पूरी हो गई है.’’

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सीबीआई ने अब आरोप लगाया है कि देवेंद्र कुमार ने उसके बयान में हेरफेर किया था ताकि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ अस्थाना द्वारा सीवीसी में लगाए गए निराधार आरोपों की पुष्टि हो सके. अधिकारियों ने बताया कि एजेंसी अस्थाना नीत विशेष जांच दल के अन्य सदस्यों की कथित भूमिका की भी जांच कर रही है. राकेश अस्थाना ने 24 अगस्त, 2018 को सीबीआई निदेशक वर्मा के खिलाफ शिकायत की थी कि उन्होंने सना से दो करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी ताकि उसे मामले में राहत दी जा सके. सोमवार को गिरफ्तार होने के बाद उनको मंगलवार को सीबीआई ने कोर्ट में पेश किया. वहां से उनको सात दिन की कस्‍टडी में भेज दिया गया. इस बीच देवेंद्र कुमार ने भी मंगलवार को दिल्‍ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनके मामले की भी राकेश अस्‍थाना के साथ 29 अक्‍टूबर को सुनवाई होगी.

राकेश अस्‍थाना
गुजरात कैडर के 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना उस विशेष जांच दल (एसआईटी) की अगुआई कर रहे हैं जो अगस्तावेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाले और उद्योगपति विजय माल्या द्वारा की गई ऋण धोखाधड़ी जैसे अहम मामलों को देख रहा है. यह दल मोईन कुरैशी मामले की भी जांच कर रहा है. जेएनयू से डिग्री लेने वाले राकेश अस्‍थाना चारा घोटाले और गोधरा केस की जांच जैसे अहम मामलों से जुड़े रहे हैं. स्‍टर्लिंग बायोटेक में उनकी भूमिका को लेकर भी एक याचिका लंबित है. इस मामले में उन पर 3.8 करोड़ रुपये लेने का आरोप है.   

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ इस आरोप को लेकर मामला दर्ज किया है कि मांस कारोबारी मोईन कुरैशी से जुड़े एक मामले में जिस एक आरोपी के विरुद्ध वह जांच कर रहे थे, उससे उन्होंने रिश्वत ली. दो महीने पहले अस्थाना ने कैबिनेट सचिव से सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ यही शिकायत की थी.

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सीबीआई ने सतीश सना की शिकायत के आधार पर विशेष निदेशक अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. मांस कारोबारी मोईन कुरेशी की कथित संलिप्तता से जुड़े 2017 के एक मामले में जांच का सामना कर रहे सना ने आरोप लगाया कि अस्थाना ने उसे क्लीन चिट दिलाने में कथित रूप से मदद की.

सरकारी सूत्रों के अनुसार राकेश अस्थाना ने 24 अगस्त को कैबिनेट सचिव को एक विस्तृत पत्र लिखकर वर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार के 10 मामले गिनाए थे. इसी पत्र में यह भी आरोप लगाया गया था कि सना ने इस मामले में क्लीन चिट पाने के लिए सीबीआई प्रमुख को दो करोड़ रुपये दिये.  

सूत्रों के अनुसार यह शिकायत केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास भेजी गई जो इस मामले की जांच कर रहा है. अस्थाना ने प्राथमिकी दर्ज होने के चार दिन बाद केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को फिर लिखा कि वह सना को गिरफ्तार और पूछताछ करना चाहते हैं और इस संबंध में 20 सितंबर 2018 को निदेशक को एक प्रस्ताव भेजा गया था.

अपने पत्र में उन्होंने 24 अगस्त को कैबिनेट सचिव को लिखी अपनी चिट्ठी का भी हवाला दिया जिसमें निदेशक के खिलाफ कथित अनियमितताओं का ब्योरा दिया गया है. सूत्रों के मुताबिक उन्होंने कहा कि निदेशक ने करीब चार दिनों तक फाइल कथित रूप से रखी और 24 सितंबर, 2018 को उसे अभियोजन निदेशक (डीओपी) के पास भेजने का निर्देश दिया. अभियोजन निदेशक ने रिकॉर्ड में मौजूद सभी सबूत मांगे.

सूत्रों के अनुसार अस्थाना की अगुआई वाली टीम ने ही सना के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर खोला जिसने देश से भागने की कोशिश की लेकिन सक्रिय कार्रवाई की वजह से वह नहीं भाग सका. सूत्रों के मुताबिक अस्थाना ने कहा है यह फाइल डीओपी द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर के साथ फिर तीन अक्टूबर को सीबीआई निदेशक के समक्ष फिर रखी गयी लेकिन अब तक यह नहीं लौटी है.

सूत्रों ने अस्थाना की बातों का हवाला देते हुए कहा कि सना से एक अक्टूबर, 2018 को पूछताछ की गई थी. पूछताछ के दौरान सना ने बताया कि वह एक नेता से मिला जिसने वर्मा से मुलाकात करने के बाद उसे आश्वासन दिया कि इस मामले में उसे क्लीन चिट दे दी जाएगी.

CBI
राकेश अस्थाना के अलावा एजेंसी ने पुलिस उपाधीक्षक देवेंद्र कुमार और मनोज प्रसाद, कथित बिचौलिये सोमेश प्रसाद और अन्य अज्ञात अधिकारियों पर भी मामला दर्ज किया है. उन पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा सात, 13(2) और 13 (1) (डी) के तहत मामला दर्ज किया गया है. इसके अलावा उन पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा सात-ए भी लगाई गई है. सीबीआई ने कहा है कि इन धाराओं में किसी अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले सरकार से अनुमति लेने के जरूरत नहीं होती.

सीबीआई ने दावा किया है कि उसके विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ कथित रिश्वत मामले में बिचौलिए मनोज प्रसाद के पकड़े जाने के बाद उसने नौ फोन कॉल का विश्लेषण किया है. उन्होंने बताया कि जांच एजेंसी ने व्यापारी सतीश सना के दावे पर अस्थाना के खिलाफ मामला दर्ज किया है. उसका दावा है कि उसे लगातार आने वाले समन से राहत तथा मामले से क्लीन चिट मिलने के लिए दुबई के इंवेस्टमेंट बैंकर मनोज प्रसाद ने पांच करोड़ रुपये की मांग की थी.

एक अधिकारी ने दावा किया कि सीबीआई ने जो कॉल डेटा का विश्लेषण किया है उसके अनुसार अस्थाना और अन्य एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी के बीच कथित तौर पर फोन पर बातचीत हुई थी जो जानकारियों की पुष्टि करना चाहते थे, बिचौलिए और वरिष्ठ अधिकारी, बिचौलिए की पत्नी, वरिष्ठ अधिकारी तथा अन्य के संबंध में जानना चाहते थे.

सूत्रों का दावा है कि कॉल डेटा रिकॉर्ड से पता चलता है कि अस्थाना तथा वरिष्ठ अधकारी के बीच 17 अक्टूबर, 2018 को चार बार फोन कॉल हुई थीं.

आलोक वर्मा
आलोक वर्मा 1979 बैच के यूटी कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. एक फरवरी, 2017 से सीबीआई के चीफ हैं. दिल्‍ली के सेंट स्‍टीफेंस कॉलेज से डिग्री ली है. अपनी मौजूदा पोस्‍टिंग से पहले दिल्‍ली पुलिस कमिश्‍नर थे.

सीबीआई ने अपने निदेशक आलोक वर्मा का विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के आरोपों से बचाव करते हुए कहा है कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप ‘मिथ्या और दुर्भावनापूर्ण’ हैं. अस्थाना ने कैबिनेट सचिव और केंद्रीय सतर्कता आयोग को पत्र लिख कर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार और अनियमितता के कम से कम 10 मामलों का जिक्र किया था.

सीबीआई के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि सतीश सना के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (एलओसी) जारी होने की जानकारी सीबीआई के निदेशक को नहीं थी. इस तरह के लगाए गए कई अन्‍य आरोप सही नहीं हैं. उन्होंने कहा, ‘‘डीसीबीआई ने 21 मई, 2018 को एलओसी जारी करने के प्रस्ताव को देखा और उसे ठीक भी किया था.’’ उन्होंने कहा कि यह आरोप कि सीबीआई के निदेशक ने सना की गिरफ्तारी को रोकने का प्रयास किया था, पूरी तरह से झूठ और दुर्भावनापूर्ण है.

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