हिंदू पंचांग में प्रमुख अंगों को समझना बहुत जरुरी है। पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। ये प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। भद्रा भी पंचांग से जुड़ा है। भद्रा का शाब्दिक का अर्थ समझें, तो इसका अर्थ कल्याण करने वाला होता है। हालांकि नाम से विपरीच में भद्रकाल में शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।
आखिर भद्रा कौन है
दरअसल, भद्रा का जन्म एक कन्या के रुप में हुआ था। पौराणिक मान्यता है कि भद्रा सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की पुत्री है। भद्रा शनिदेव की बहन है। भद्रा का स्वभाव भी शनिदेव की तरह ही क्रोधी है। हालांकि, भद्रा का जन्म रक्षसों के संहार के उद्देश्य को पूरा करने के लिए हुआ था लेकिन भद्रा का जन्म लेते ही देवताओं के शुभ कार्यों में बाधा उत्पन्न करने लगीं। इस कारण देवतागण दुखी होकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे, ब्रह्माजी जी को संसार का रचयिता माना जाता है।
भद्रा को रोकने के लिए आखिर ब्रह्मा जी ने क्या किया
जब देवतागण ब्रह्माजी के पास पहुंचे तो उन्होंने भद्रा को रोकने के लिए उससे कहा कि भद्रा तुम हमेशा मनुष्यों को परेशान नहीं कर सकती बल्कि तुम्हें कुछ विशेष स्थितियों में ही मनुष्यों, देवताओं या राक्षसों को पीड़ा पहुंचाने का अधिकार होगा। आगे ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा- तुम बव, बालव, कौलव करणों में निवास करो और वहीं, जो लोग तुम्हारा आदर न करे, तुम उनके कामों में बाधा पहुंचा सकती हो लेकिन तुम हमेशा सभी के कार्य को नहीं रोक सकती।
क्या है भद्रकाल और मनुष्यों को कब नुकसान पहुंचता है
पौराणिक मान्यता है कि भद्राकाल के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इस दौरान विवाह मुहूर्त, नया व्यापार, रक्षाबंधन आदि त्योहारों की मुख्य पूजा नहीं की जाती है लेकिन भद्राकाल में पूजा-पाठ और हवन किए जा सकते हैं।