जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर,यानि पीके सर की क्लास पटना में चल रही है जिसमें युवाओं को वो राजनीति के गुर सिखा रहे हैं। इस तरह प्रशांत किशोर युवाओं के बीच बिहार की राजनीति को नयी दिशा देने की तैयारी में लगे हुए हैं और इस तरह वे एक हजार युवाओं की ऐसी फौज तैयार कर रहे हैं, जो घर-घर में जदयू के झंडा को लहराने में अहम भूमिका निभायेंगे। प्रशांत किशोर ने अाज की बैठक में छात्र संगठनों को बुलाया है और इसमें जदयू के कई नेता भी शामिल होंगे।
सियासत की पिच पर गेमचेंजर वाली इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए प्रशांत किशोर ने रविवार को प्रदेश भर के करीब 250 युवाओं से सीधी बात की और सोमवार को भी पीके सर की क्लास चलेगी जिसमें मुख्यमंत्री भी आज हिस्सा लेंगे।
कल की इस बैठक में युवाओं को जदयू से जुड़कर राज्य को टॉप टेन राज्यों में शामिल कराने की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया गया। इसमें नीतीश सरकार के बारे में बिहार के युवा क्या सोचते हैं? अपने राज्य को लेकर उनकी क्या परिकल्पना है?
यह जानकारी लेने के लिए प्रशांत किशोर ने विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले युवा और छात्र-छात्राओं के साथ बैठक का आयोजन किया था। सात सर्कुलर रोड पर रविवार दोपहर एक बजे शुरू हुई यह बैठक चार बजे तक चली।
बैठक में शामिल सभी युवाओं को एक एप के जरिये बैठक में आने के लिए संदेश दिया गया था और सबको सवाल करने का भी मौका दिया गया।
प्रशांत किशोर ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि नीतीश सरकार के काम की तुलना लालू और राबड़ी के शासनकाल से करनी चाहिए। अभी महाराष्ट्र-गुजरात से बिहार की तुलना करना जल्दबाजी होगी। नीतीश सरकार के काम को लेकर सामान्य रूप से सोचने की जरूरत है कि बिहार 2005 से पहले कैसा था? अब कितना काम हुआ और अभी कितना काम और करने की जरूरत है? इस पर बात होनी चाहिए।
सीएम नीतीश की तुलना पीएम नरेंद्र मोदी से की
युवाओं से सीधे संवाद के दौरान जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार की तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की। एक युवा के सवाल के जवाब में उनका कहना था कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री सभी की सुनते हैं।
नयी जानकारी के आधार पर वह चीजों को दुरुस्त करते हैं। राहुल गांधी में यह गुण नहीं है। नीतीश कुमार वंशवाद की राजनीति नहीं करते हैं। जातिगत राजनीति के सवाल पर कहना था कि बिहार बदनाम है, लेकिन यह सभी राज्यों में हो रहा है। जाति के आधार पर ही चुनाव जीते जाते तो लालू प्रसाद ही बिहार के स्थायी मुख्यमंत्री होते।