भारत ने भूस्खलन से जूझ रहे पापुआ न्यू गिनी को भेजी 19 टन राहत सामग्री

( शाश्वत तिवारी) नई दिल्ली। भारत ने विनाशकारी भूस्खलन से जूझ रहे पापुआ न्यू गिनी को 19 टन आपदा राहत सामग्री भेजी है। पोर्ट मोरेस्बी हवाई अड्डे पर पहुंची राहत सामग्री भारतीय उच्चायुक्त इन्बासेकर सुंदरमूर्ति ने पापुआ न्यू गिनी के विदेश मंत्री जस्टिन तकाचेंको को सौंपी। पोर्ट मोरेस्बी स्थित भारतीय उच्चायोग ने शुक्रवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर यह जानकारी साझा की। इस मौके पर विदेश मंत्री के साथ ही रक्षा मंत्री डॉ. बिली जोसेफ और अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे, जिन्होंने इस तत्काल सहायता के लिए भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का आभार व्यक्त किया।

यह मदद भारत की ओर से 10 लाख अमेरिकी डॉलर की तत्काल राहत सहायता के एक हिस्से के तौर पर भेजी गई है। 24 मई को द्वीपीय देश पापुआ न्यू गिनी के एंगा प्रांत में एक बड़ा भूस्खलन हुआ था, जिसके बाद मलबे में सैकड़ों लोग दब गए थे। कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस भूस्खलन में करीब 2 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी। हालांकि आपदा के तुरंत बाद भारत अपने फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स को-ऑपरेशन (एफआईपीआईसी) साझेदार पापुआ न्यू गिनी की तत्काल सहायता के लिए आगे आया था। तत्काल राहत सहायता प्रदान करने की घोषणा के साथ विदेश मंत्री जयशंकर ने भरोसा दिलाते हुए कहा था कि भारत इस कठिन समय में संकटग्रस्त देश के साथ एकजुटता से खड़ा है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा मुश्किल समय में साथ खड़े रहना। पापुआ न्यू गिनी के एंगा प्रांत में विनाशकारी भूस्खलन के मद्देनजर, भारत ने अपने करीबी एफआईपीआईसी साझेदार को 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की तत्काल सहायता देने की घोषणा की थी। घोषणा के अनुसार लगभग 19 टन एचएडीआर (मानवीय सहायता और आपदा राहत) आपूर्ति लेकर एक उड़ान आज पापुआ न्यू गिनी के लिए रवाना हुई, जिसमे सहायता में 13 टन आपदा राहत सामग्री शामिल है, जिसमें अस्थायी आश्रय, पानी के टैंक, स्वच्छता किट, खाने के लिए तैयार भोजन तथा 6 टन आपातकालीन उपयोग की दवाइयां, डेंगू और मलेरिया निदान किट सहित चिकित्सा उपकरण, शिशु आहार आदि शामिल हैं।

भारत इससे पहले भी प्राकृतिक आपदाओं के कारण मुसीबत में घिरे पापुआ न्यू गिनी के साथ डटकर खड़ा रहा है। भारत ने 2018 में आए भूकंप और 2019 तथा 2023 में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के बाद द्वीपीय देश की काफी मदद की थी।

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