सबरीमाला के मुद्दे पर मोहन भागवत ने कहा कि इसमें भावनाएं नहीं देखी गईं.

संघ द्वारा आयोजित वार्षिक विजयदशमी पर्व में बोलते हुए मोहन भागवत ने राम मंदिर के संदर्भ में कहा कि राम जन्‍मभूमि के लिए स्‍थान का आवंटन अभी तक नहीं किया गया, जबकि साक्ष्‍यों से यह स्‍पष्‍ट है कि उस जगह पर मंदिर था. यदि राजनीतिक हस्‍तक्षेप नहीं होता तो वहां पर मंदिर काफी पहले ही बन गया होता. हम चाहते हैं कि सरकार कानून बनाकर निर्माण के मार्ग को प्रशस्‍त करे.इसके साथ ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयदशमी समारोह में कहा कि हमारा समाज भारत की अवधारणा से सहज भाव से उपजे जब स्‍व की भावना के सत्‍य को भूल गया और स्‍वार्थ प्रबल हो गए तो हम अत्‍याचार के शिकार हो गए. समाज में अपनी कमियां थी. शासकों ने तो किसी को भी नहीं छोड़ा. बाबर ने ना हिंदू को बख्शा, ना मुस्लिम को बख्‍शा.

देश में हालिया दौर में हुए आंदोलनों का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ कहने वालों का संविधान में यकीन नहीं है. देश में छोटी-छोटी बातों पर आंदोलन होने लगे हैं. बंदूक की नली के आधार पर सत्ता प्राप्त करेंगे, भारत तेरे टुकड़े होंगे जो नारे लगाते हैं, ऐसे भी चेहरे आंदोलन में रहते हैं. हमारे देश में जो हो रहा है, असंतोष का राजनीतिक लाभ लिया जा रहा है. गलत बातों का सोशल मीडिया पर प्रचार हो रहा है.

सबरीमाला
सबरीमाला का निर्णय देखिए, क्या हुआ, बात करनी थी मन बनाना था. भावनाएं नहीं देखी गईं, पंथ समुदाय अपना-अपना होता है अमुक बात धर्म के लिए है कि नहीं, समझना चाहिए था. ये परंपराएं हैं भइय्या, कुछ कारण होते हैं. वहां तो आंदोलन खड़ा हो गया, वहां तो असंतोष पैदा हो गया. प्रबोधन करना पड़ेगा, मन परिवर्तन करना पड़ेगा. हम समानता लाना चाहते हैं, लेकिन समाज में अस्थिरता पैदा हो जाती है.

शहरी नक्‍सल
शहरी नक्‍सलवाद पर टिप्‍पणी करते हुए कहा कि नक्‍सलवाद हमेशा शहरी ही रहा है. इसका कंटेंट पाक, अमेरिका और क्या इटली से आता है? अर्बन नक्सल की कार्यपद्धित है, अर्बन नक्सल हमेशा अर्बन ही रहा है. छात्रावासों में जाओ, असत्य प्रचार करके भड़काओ, छोटे-छोटे आंदोलन करो. नेतृत्‍व को पहचान कर श्रंखला चलाओ. प्रचलित नेतृत्‍व को ढहा दो. मालिकों के बंदों को स्थापित करो. सभी जगह का इतिहास हमारे सामने है. बंदूक की नली से सत्ता तो आ गई, अर्बन माओवादी बड़े-बड़े शहरों में बुद्धिजीवी बन कर बैठे रहते हैं, ऐसे हजारों विद्वान खड़े हैं. द्वेष पैदा करना ही उनका उद्देश्‍य है, जहां जाएंगे भारत की निंदा करेंगे. आपस में सांठगांठ करके युद्ध चलाया जा रहा है, हम सभी के बीच, मानवशास्त्रीय युद्ध है.

इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि ऐसी घटनाएं ही ना घट पाएं ऐसी चौकसी समाज को भी रखनी पड़ेगी, शासन प्रशासन के साथ इन कारणों को मिटाने का तरीका यही है कि जनहित की योजनाएं अंत तक जाएं. फूट को स्थान नहीं मिलना चाहिए. अभी तक ब्रिटिशों का राज था, लेकिन हमें लोकतंत्र का पालन करना पड़ेगा. हमारा व्यवहार ही हमें बचाएगा, नियम कानून नहीं.

मोहन भागवत ने कहा कि उकसाने वाली शक्तियों से भी बचना होगा. संस्कार लाना चाहिए.  परिवार में संस्कार बनना चाहिए. क्या ये भारत वर्ष है, कड़ा कानून चाहिए बात ठीक है…. सरकार धीरे-धीरे चलती है. प्रशासन आराम से चलता है. जैसे लेट गाड़ी होती है ना, फिर करते-करते दो घंटे लेट हो जाती है. साढ़े 4 साल तो हो गए. घर को पक्का करना पड़ेगा, संस्कार लाना पड़ेगा.

इंटरनेट से तो सब आता है, लेकिन लेने वाले की मानसिकता क्या है इसकी तो कोई व्यवस्था ही नहीं है. जो आता है, खोलता है, मिल जाता है, कानून बनेगा, उसमें देर लगेगी, हम ऐसा वातावरण बनाएं कि देखने की इच्छा ही ना हो. क्या हमें घर की चिंता भी सरकार पर डाल देना चाहिए? उपाय, सद्भावना औऱ प्रेम के सिवाय कुछ भी नहीं है.

पाकिस्‍तान
परोक्ष रूप से पाकिस्‍तान के संदर्भ में मोहन भागवत ने कहा कि सुरक्षा को लेकर हम सजग हैं. सरकार किसी की भी हो हम किसी से भी शत्रुता नहीं करते. लेकिन बचने के लिए उपाय तो करना पड़ेगा. वहां परिवर्तन के बाद भी कुछ बदलता नजर नहीं आ रहा है. अपनी सेना को संपन्न बनाना होगा ताकि हमारी सेना का मनोबल कम न हो, संतुलन को रखकर काम करना होगा. इसी कारण संपूर्ण विश्व में हाल में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है. लेकिन हम विश्वास पैदा करने के लिए हम गोली का जवाब गोली से देने की हिम्मत रखते हैं.

इसके साथ ही कहा कि सीमा पर सुरक्षा कर रहे परिवारों की रक्षा का दायित्व हमारा है, उनकी चिंता कौन करेगा, शासन ने कदम तो बढ़ाए लेकिन गति बढ़ाने की जरूरत है. ये विश्‍वास पैदा होना चाहिए जवानों में कि हम यहां रक्षा कर रहे हैं लेकिन हमारे परिवार की रक्षा शासन कर लेगा.

मोहन भागवत ने कहा कि शासन के साथ समाज का भी कुछ दायित्व है. हमें सोचना होगा कि क्‍या हमने अपना देश सरकार को सौंप दिया है? ऐसा इसलिए क्‍योंकि पहला दायित्व तो हमारा है, सरकार को तो हम ही चुन कर भेजते हैं. सीमा केवल भू-सीमा नहीं होती, सागरी सीमा भी है, आजकल अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर इसका महत्व भी बढ़ गया है. सभी छोटे-छोटे द्वीपों की रक्षा होनी चाहिए क्‍योंकि भारत के सामर्थ्य को कम करने के लिए लोगों ने गले के चारों ओर फांस बनाने की कोशिश तो कर ही ली है.

कैलाश सत्यार्थी मुख्य अतिथि
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित और सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वार्षिक ‘‘विजयादशमी’’ समारोह में अतिथि हैं. कार्यक्रम का आयोजन नागपुर के रेशमीबाग मैदान में आयोजित किया जा रहा है. उल्‍लेखनीय है कि मोहन भागवत ने पिछले वर्ष रोहिंग्या संकट, गोरक्षा, जम्मू-कश्मीर और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए थे.

आरएसएस द्वारा आयोजित विजयदशमी पर्व में नोबेल पुरस्‍कार विजेता कैलाश सत्‍यार्थी मुख्‍य अतिथि हैं. नागपुर में आरएसएस के वार्षिक विजयदशमी पर्व में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने शिरकत की.

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