कहने को कहा जाता है कि जिसने दर्द नहीं सहा, वह क्या जानें पीर पराई, ममता बनर्जी को लेकर जब उनके प्रशंसक उनका गुणगान करते हैं तो यही बताते हैं कि बहुत संघर्ष भरा है ‘ममता दीदी’ का राजनीतिक जीवन । वह 1992 का दिसम्बर महीना विशेष तौर पर याद दिलाना नहीं भूलते, जब एक शारीरिक रूप से अक्षम लड़की फेलानी बसाक (जिसका कथित तौर पर सीपीआई(एम) कार्यकर्ताओं द्वारा बलात्कार किया गया था) को वह तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के पास ले गई थीं, लेकिन पुलिस ने उन्हे उलटा गिरफ्तार कर लिया था। यानी ‘दीदी’ के प्रशंसक यह जरूर बताते हैं कि उनका राजनीतिक सफर स्त्री अस्मिता के लिए संघर्ष करनेवाली बुलंद आवाज के रूप में शुरू हुआ है। लेकिन आज इस प्रशंसा के इतर हकीकत क्या है पश्चिम बंगाल की? कहीं कोई सुरक्षित नहीं, पूरे बंगाल में दंगे कभी भी भड़क सकते हैं।
वस्तुत: ममता राज में कोई एक वर्ष भी ऐसा नहीं गुजरा है जब रामनवमी, दुर्गा उत्सव या अन्य हिन्दू त्यौहारों पर शांति बनी रही हो और इस्लामिक भीड़ ने पत्थर न बरसाए हों। अक्सर आतंकवादी पश्चिम बंगाल के अलग-अलग स्थानों से पकड़े जाते हैं। बेंगलुरु ब्लास्ट के आतंकी भी यहीं आकर छिपे थे। हां, बेंगलुरु के रामेश्वरम कैफे में ब्लास्ट करने वाले मुख्य आरोपित को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया है। दोनों ही कोलकाता से हिरासत में लिए गए। शाजिब हुसैन ने कैफे में आईईडी रखा था जबकि अब्दुल मतीन ताहा ने धमाके की साजिश रची थी। जिन ‘ममता दीदी’ के राजनीतिक जीवन को स्त्री अस्मिता से जोड़ा जाता है, उसी ममता के राज में आज संदेशखाली जैसी घटनाएं वर्षों से घट रही हैं। अभी यदि चप्पे-चप्पे की जांच हो जाए तो पता नहीं बंगाल में न जाने कितने ही संदेशखाली निकलकर सामने आ जाएंगे। दूसरी ओर ‘ममता दीदी’ की ममता है कि सत्ता के लिए अपराधियों को लगातार संरक्षण देती है। एक स्त्री होकर स्त्री अत्याचार पर ‘ममता’ की चुप्पी, पुलिस को अत्याचारियों के स्थान पर पीडि़तों पर ही अत्याचार करने की छूट दे देना, आखिर क्या बता रहा है? यही कि ‘ममता बनर्जी’ वक्त के साथ इतनी बदल गईं कि उनके लिए राजनीति ही सब कुछ हो गई है। वह अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। पश्चिम बंगाल में एक नहीं कई संदेशखाली भी सामने आ जाएं तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ! उनकी सत्ता हर हाल में बनी रहना चाहिए।
वह तो अच्छा है कि देश में न्यायालय है, केंद्र सरकार है, कई राष्ट्रीय एजेंसियां हैं, आयोग हैं, जोकि पीड़ित का पक्ष सुनने के लिए मौजूद हैं और उसके आधार पर राज्य सरकारों को निर्देश देने तथा पीड़ित को संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था मुहैया कराने में सक्षम हैं। यदि यह नहीं होते तो सोचिए; ‘ममता बनर्जी’ अपनी सत्ता का और कितना अधिक दुरउपयोग करतीं, जब अभी राज्य में पुलिस प्रशासन एवं तुष्टिकरण का यह हाल है! वस्तुत: संदेशखाली मामले में सुनवाई जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, न्यायालय के सामने कई चौंकाने वाले साक्ष्य सामने आ रहे हैं। कई आयोग अपने स्तर पर सही तथ्यों को जानने का प्रयास कर रहे हैं और वे अब तक जितना जान पाए उसके आधार पर वह बहुत असहज हैं कि आखिर एक स्त्री होकर भी ‘ममता’ को पश्चिम बंगाल की स्त्रियों का दर्द क्यों नहीं अनुभूत हुआ। वह इतना सब होने के बाद अब भी क्यों नहीं समझना चाहतीं अपने राज्य की स्त्रियों की समस्याएं और उनका भोगा हुआ दर्द से भरा यथार्थ । यहां स्थिति कितनी भयाभह होगी, इसका तो सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है, क्योंकि कलकत्ता हाई कोर्ट तक को संदेशखाली मामले की जांच अपनी निगरानी में सीबीआई से करवाने के निर्देश देने तक की आवश्यकता महसूस हुई है । टीएमसी के पूर्व नेता शाहजहां शेख पर संदेशखाली की महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने, जमीन कब्जाने और जबरन वसूली जैसे न जाने कितने ही आरोप हैं। हद तो यह है कि जब न्यायालय हस्तक्षेप करता है और निर्देश देता है, तब कहीं जाकर ‘ममता’ की बंगाल पुलिस शाहजहाँ शेख, शिबू हाजरा और उत्तम सरदार को गिरफ्तार कर जेल भेजती है, अन्यथा तो अपने संरक्षण में इन्हें और इन जैसे न जाने कितने ही मानवता के शत्रु गुण्डों को यह संरक्षण दे ही रही है?
कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि संदेशखाली यौन उत्पीड़न, बलात्कार और अन्य मामलों में हाई कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच होगी । पश्चिम बंगाल सरकार सीबीआई अधिकारियों और संदेशखाली के पीड़ितों को पर्याप्त सुविधाएँ और सुरक्षा प्रदान करेगी। हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को मछली पालन के लिए कृषि भूमि के अवैध रूपांतरण पर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। वहीं, राज्य सरकार को आदेश दिया कि 15 दिनों के अंदर संदेशखाली के इलाके में सीसीटीवी कैमरे लग जाने चाहिए। जरूरत के हिसाब से एलईडी लगाए जाएं। इन सबका खर्च बंगाल सरकार उठाएगी । कहना होगा कि न्यायालय के आदेश के बाद अब पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार सीबीआई जांच पर रोक नहीं लगा पाएगी। साथ ही जमीन हड़पने और ईडी पर हमले के मामले में पहले से ही सीबीआई जांच चल रही है।
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से नेतागण क्या करते रहे थे, इसका एक चिट्ठा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अपनी रिपोर्ट के माध्यम से भी रखा है। आयोग ने घटनास्थल पर की गई जांच में पाया कि पीड़ितों पर कई तरह से अत्याचार हुए हैं। यहां के लोगों को हमले, धमकी, यौन शोषण, भूमि पर कब्जा और जबरन अवैतनिक श्रम का सामना करना पड़ा है। शासकीय अधिकारियों की मिली भगत से यहां के आमजन को वोट देने के अधिकार से भी वंचित किया गया। सरकारी योजनाओं में भेदभाव किया जा रहा था । एनएचआरसी ने बहुत विस्तार से अपने ये आंकड़े रखे हैं।
कहना होगा कि जिस ‘ममता बनर्जी’ को क्रूर सत्ता के विकल्प के रूप में पश्चिम बंगाल की जनता ने चुना था, वह ‘ममता’ पिछले कई वर्षों से सत्ता में आने के बाद अपनी राजनीतिक इच्छापूर्ति हर हाल में पूरा करने में लगी हुई हैं। पश्चिम बंगाल कल भी सुलग रहा था और आज भी सुलग रहा है। कहीं संदेशखाली हो रहा है तो कहीं आतंकी आराम से मौज मना रहे हैं। कहीं ममता सरकार के मंत्री और विधायक आम जनता को खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि तुम्हें तो यहीं रहना है, चुनाव में टीएमसी को ही वोट देना, नहीं तो आगे अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो! दूसरी ओर ‘ममता बनर्जी’ हैं जो स्वयं तुष्टिकरण की राजनीति करने में लगी हुई हैं । वह बोल रही हैं कि उनके रहते हुए पश्चिम बंगाल में सीएए, एनआरसी और यूसीसी लागू नहीं होगा, जबकि सीएए नागिरकता देने वाला कानून है, यूसीसी देश में सभी नागरिकों को समान कानून का कवच देता है जबकि एनआरसी अवैध नागरिकों की पहचान कराता है। कुल मिलाकर पूर्णतया मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से उन्हें लगता है कि संसद में अपने अधिकतम लोगों को वह पहुंचाने में सफल होंगी और इसी तुष्टिकरण के जरिए वे आगे भी बंगाल की सत्ता पर काबिज बनी रहेंगी, उनका कोई भी ‘बाल बांका’ नहीं कर सकता है!
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)