देश में एक तरफ महिला सशक्तिकरण को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ अलग है. दरअसल, एक विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में कामकाजी 92 प्रतिशत महिलाओं को प्रति महीना 10,000 रुपये से भी कम की तनख्वाह मिलती है.
पुरुषों की हालत भी ऐसी ही है, लेकिन पुरुषों के आंकड़े थोड़े बेहतर स्थिति में हैं. रिपोर्ट के अनुसार 82 पर्सेंट पुरुषों को भी 10,000 रुपये प्रति माह से कम की तनख्वाह मिलती है. बता दें कि अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ओर से यह रिपोर्ट तक की गई है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर 67 प्रतिशत परिवारों की मासिक आमदनी 10,000 रुपये थी, जबकि सातवें केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) द्वारा मिनिमम सैलरी 18,000 रुपये प्रति महीना है. इससे साफ होता है कि भारत में एक बड़े तबके को मजदूरी के रूप में उचित भुगतान नहीं मिल रहा है.
रिपोर्ट स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया के मुख्य लेखक अमित बसोले ने बताया, ‘यह आंकड़े श्रम ब्यूरो के पांचवीं वार्षिक रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण (2015-2016) पर आधारित है. यह आंकड़े पूरे भारत के हैं. मेट्रो शहरों में इसकी स्थिति अलग होगी क्योंकि गांवों और छोटे शहरों की तुलना में इन शहरों में महिलाओं और पुरुषों की आमदनी अधिक है.’
रिपोर्ट में ये सामने आया है कि पिछले तीस सालों में संगठित क्षेत्र की उत्पादक कंपनियों में श्रमिकों की उत्पादकता 6 फीसदी तक बढ़ी है, जबकि उनके वेतन में मात्र 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
श्रम ब्यूरों के सर्वे के अनुसार 2015-16 के दौरान, भारत की बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत थी, जबकि 2013-14 में यह 4.9 फीसदी थी. रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि बेरोजगारी दर शहरी क्षेत्रों (4.9 फीसदी) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (5.1 फीसदी) नें मामूली रूप से अधिक है.
रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर अधिक है. राष्ट्रीय स्तर पर महिला बेरोजगारी दर जहां 8.7 प्रतिशत है वहीं पुरुषों के बीच यह दर चार प्रतिशत है. काम में लगे हुए व्यक्तियों में से अधिकांश व्यक्ति स्वयं रोजगार में लगे हुए हैं.
बता दें कि भारत में केवल 17 प्रतिशत व्यक्ति सैलरी पर काम करते हैं और बाकी 3.7 प्रतिशत संविदा कर्मी हैं.