उत्तर प्रदेश में प्रथम चरण में पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भी मतदान होना है। यूपी की एक बेहद खास लोकसभा सीट है मुज्जफरनगर, जहां का मुकाबला साल 2013 में हुए दंगों के बाद से बेहद रोचक और सुर्खियों में रहा है। यहां कुल 11 प्रत्याशी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इस क्षेत्र को जाटलैंड के नाम से भी जाना जाता हैं। बीजेपी के पास इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने का मौका है. इस सीट से चौधरी चरण सिंह ने अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि उनको जीत नहीं मिल पाई थी. इस लोकसभा क्षेत्र में जाट और मुस्लिम वोटर्स की बहुलता है। हैरत की बात ये है कि 18 लाख की आबादी में से 6 लाख मुस्लिम वोटर होने के बाद यहां किसी राजनीतिक दल ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा. इसके अलावा किसी मुस्लिम प्रत्याशी ने निर्दलीय नामांकन भी नहीं किया है।
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से बीजेपी ने एक बार फिर से संजीव बालियान को मैदान में उतारा है। पिछली बार यानी साल 2019 आम चुनाव में बालियान ने मामूली अंतर से जीत हासिल की थी। उधर, इंडिया गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी ने हरेंद्र मलिक को उम्मीदवार बनाया है। बहुजन समाज पार्टी ने रियल एस्टेट कारोबारी दारासिंह प्रजापति को टिकट दिया है। साल 2019 आम चुनाव में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार संजीव बालियान ने आरएलडी मुखिया चौधरी अजीत सिंह को हराया था। बालियान को 5 लाख 73 हजार 780 वोट मिले थे। जबकि चौधरी अजीत सिंह को 5 लाख 67 हजार 254 वोट हासिल हुए थे। संजीव बालियान मुजफ्फरनगर के साथ-साथ मेरठ, शामली व बागपत सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक लोकप्रिय नेता के तौर पर जाने जाते हैं।,
बात उम्मीदवारों की सियासी रूख की कि जाये तो बीजेपी प्रत्याशी संजीव बालियान ने राज्य मंत्री के रूप में पब्लिक के बीच रहकर हमेशा उनके दुख और सुख को साझा किया है और अब लोकसभा चुनाव 2024 में भी भाजपा ने संजीव बालियान पर ही विश्वास जताते हुए उन्हें प्रत्याशी घोषित किया है। बता दें कि इस बार भाजपा के एनडीए गठबंधन में राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल हो गया है।
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पूर्व राज्यसभा सांसद हरेंद्र मलिक जनपद मुजफ्फरनगर के कद्दावर नेताओं मे गिने जाते हैं। उनके पास विधानसभा और लोकसभा के 9 चुनाव खुद लड़ने और 4 चुनाव अपने बेटे पंकज मलिक को चुनाव लड़ाने का तजुर्बा है। हरेंद्र मलिक खतौली और बागरा विधानसभा से कई बार विधायक बनें जिसके बाद 1996 में किसान कामगार पार्टी जो अब राष्ट्रीय लोकदल के नाम से जानी जाती है, से चुनाव हारे। उसके बाद वर्ष 1998, 1999, 2009 में मुजफ्फरनगर से तो साल 2019 में कैराना लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव हारे और फिर 2002 में हरेंद्र मलिक को हरियाणा की इनेलो पार्टी से राज्यसभा सदस्य बनाया गया। अब 2024 में मुजफ्फरनगर लोकसभा से सपा व कांग्रेस के इंडी गठबंधन से फिर चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हरेंद्र मलिक अपने बेटे पंकज मलिक को विधायक बनाने में कामयाब रहे। पंकज मलिक एक बार बघरा से तो एक बार शामली से और फिर तीसरी बार चरथावल विधानसभा से विधायक बना।
बात बसपा प्रत्याशी की कि जाये तो प्रजापति समाज के नेता और रियल एस्टेट कारोबारी दारा सिंह प्रजापति ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से बसपा प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन कर दिया है। उन्होंने नामांकन पत्र के साथ अपनी संपत्ति और परिवारजनों का ब्योरा प्रस्तुत किया है। दारा सिंह प्रजापति की उम्र 55 साल हैं। पत्नी कमलेश, बेटी नेहा प्रजापति और एक बेटा ऋषभ प्रजापति हैं। इनके खिलाफ कमिश्नरी कार्यालय मेरठ में धरने के दौरान भड़काऊ भाषण देने और विकास प्राधिकरण मेरठ की ध्वस्तीकरण कार्यवाही को रोकने संबंधित मामले दर्ज हैं। पिछले दिनों प्रजापति समाज को सामाजिक हक दिलाने के लिए हरिद्वार से गाजियाबाद तक एक स्वाभिमान यात्रा निकाली गयी थी जिसपर गाजियाबाद में लाठीचार्ज हुआ था। इस दौरान ही दारा सिंह चर्चाओं में आये थे। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर दारा सिंह प्रजापति के नामांकन के बाद मुकाबला त्रिकोणीय बनता नजर आ रहा है।
बात एक भी मुस्लिम प्रत्याशी के मैदान में नहीं होने की ही कि जाये तो आश्चर्य होता है कि यह सब तब हुआ है जबकि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर साल 1967 से अलग-अलग समय में मुस्लिम प्रत्याशी जीतते रहे. इसके पीछे यहां मुस्लिम वोटर की संख्या है. मुजफ्फरनगर की कुल आबादी 18 लाख है। इसमें से 6 लाख मुस्लिम हैं.लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर सपा, बसपा और भाजपा सहित 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें एक भी प्रत्याशी मुस्लिम नहीं है। ये हालात तब हैं। जब 1967 के बाद से मुजफ्फरनगर सीट पर कई मुस्लिम नेता सांसद चुने जा चुके हैं। इनमें लताफत अली खां, मुफ्ती मोहम्मद सईद और कादिर राना सरीखे दिग्गज मुस्लिम नेता शामिल हैं।
यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट मुस्लिम राजनीति के लिए इतनी मुफीद साबित रही कि साल 1999 से 2014 तक लगातार 15 साल तक यहां मुस्लिम सांसद ही रहे। साल 1999 में कांग्रेस के सईदुज्जमां ने भाजपा के सोहनवीर सिंह को हराया। साल 2004 में सपा के मुनव्वर हसन ने भाजपा के ठाकुर अमरपाल सिंह को हराया। साल 2009 में बसपा के कादिर राना ने रालोद की अनुराधा चौधरी को हराया। यहां पहले लोकसभा की दो सीटें मुजफ्फरनगर और कैराना थी। बाद में कैराना लोकसभा सीट शामली जिले में चली गई। इन दोनों सीटों पर तीन बार दो-दो मुस्लिम नेता चुनाव जीते। पहली बार 1967 में मुजफ्फरनगर से लताफत अली खां और कैराना से गय्यूर अली खां चुनाव जीते। दोनों मामा-भांजे थे। साल 1999 में मुजफ्फरनगर से सईदुज्जमा और कैराना से अमीर आलम खां चुनाव जीते। 2009 में मुजफ्फरनगर से कादिर राना और कैराना से तबस्सुम हसन चुनाव जीतीं।