इलाहाबाद हाईकोर्ट पर एक तरफ मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है और जजों की संख्या लगातार घट रही है। हाईकोर्ट में अभी 88 जज कार्यरत हैं। नवंबर में स्थिति और भी चिंताजनक हो सकती है, क्योंकि तब तक पांच और जज सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुल 83 जज ही रह जाएंगे जो कि कुल स्वीकृत जजों की संख्या 160 से आधी ही रह जाएगी, जबकि जनवरी से अगस्त 2018 तक 12 हजार 850 विचाराधीन मुकदमों की वृद्धि हो गई है। ऐसे में मुकदमों का बोझ कम करने के लिए देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की ओर से जजों को कार्यदिवस में अवकाश न लेने का बेहतरीन सुझाव भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए नाकाफी होगा।
जनवरी 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या नौ लाख आठ हजार 821 थी जो अगस्त तक बढ़कर नौ लाख 21 हजार 671 हो गई। प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों में भी स्थिति अच्छी नहीं है। जजों के कुल 3225 पद स्वीकृत हैं लेकिन 2036 जज ही कार्यरत हैं। विडंबना है कि इन्हीं कार्यरत 2036 जजों में 33 जजों को हाईकोर्ट में विशेष कार्याधिकारी बनाया गया है। ये वेतन अपनी जिला अदालतों से लेते हैं लेकिन कार्य हाईकोर्ट में करते हैं।
विडंबना यह भी है कि वादकारियों के मुकदमे रोज दाखिल हो रहे हैं और इन चुनौतियों से निपटने की बजाए न्यायिक अधिकारी हाईकोर्ट में कर्मचारी, अधिकारियों के काम संभालने में रुचि ले रहे हैं। 755 कोर्ट का गठन ही नहीं हो सका है। प्रदेश की निचली अदालतों में 2470 अदालतें कार्यरत हैं। जून 2019 तक उप्र लोकसेवा आयोग की ओर से 610 सिविल जजों की नियुक्ति हो जाएगी। उधर, विशेष अदालतें गठित करने के कानून बने लेकिन, इनका गठन अधर में है।
एससी एसटी एक्ट व ग्राम न्यायालय सहित भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत अधिकरण का गठन ही नहीं हुआ। 104 ग्राम अदालतों में से चार का ही गठन हो सका, जबकि इसका कानून 2008 में पास हुआ। ऐसे में देश के मुख्य न्यायाधीश की ओर से मुकदमों का बोझ कम करने के लिए दिया गया सुझाव इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए नाकाफी होगा।
सोमवार को खुलेगा हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दशहरा अवकाश 21 अक्टूबर तक रहेगा। अदालतों में कामकाज अब अगले सोमवार से होगा। लेकिन, फोटो पहचान पत्र बनने का कार्य रविवार को भी होगा।