लखनऊ । 2009 तक उप्र का विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव सपा और बसपा ही एक दशक से प्रमुख पार्टियां हुआ करती थी। कांग्रेस और भाजपा के मत एक समान हुआ थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने के बाद कांग्रेस पूरे प्रदेश से साफ हो गयी। बसपा भी घटती ही गयी, अब उसके उठने के इस चुनाव में भी कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस और बसपा के वोट भाजपा में सिफ्ट होते चले गये। अब इस बार सपा के परंपरागत वोट में सेंध लगाने की तैयारी भाजपा कर रही है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव को बनाकर और उनकी गतिविधियों को उप्र में बढ़ाते हुए भाजपा ने इसका संकेत दे दिया है।
उप्र में 2009 तक जहां कांग्रेस का मत भाजपा के आस-पास हुआ करता था। सपा और बसपा लोकसभा चुनाव में भी प्रमुख पार्टियां थीं। वहीं आज कांग्रेस और बसपा निचले पायदान पर हैं। 2009 में 18.25 प्रतिशत मत पाकर 21 सीटों पर कब्जा जमाने वाली कांग्रेस 2019 में मात्र 6.36 प्रतिशत मत पाकर एक सीट पर सिमट गयी। वहीं 2009 में 20.27 प्रतिशत वोट पाकर मात्र 10 सीट जीतने वाली भाजपा 2019 में 49.56 प्रतिशत मत पाकर 62 सीटों पर अपने दम पर कब्जा जमाया। उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल ने भी दो सीटें जीतीं
बसपा का 2009 में 27.42 प्रतिशत मत था। वहीं 2019 में उसको 19.43 प्रतिशत मत मिले थे। 2019 में उसका समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था, लेकिन 2014 में भी अपने दम पर लड़ने पर भी मायावती ने 19.60 प्रतिशत मत थे। 2014 में एक भी सीट बसपा ने नहीं जीता था, जबकि 2019 में गठबंधन की स्थिति में बसपा ने 10 सीट जीते थे। इस तरह से 2009 में 23.26 प्रतिशत मत पाने वाली सपा को 2019 में 18.11 मत पायी। 2014 में अकेले चुनाव लड़ने पर भी उसको 22.20 प्रतिशत मत ही मिले थे, जबकि उसको पांच सीटों पर जीत मिली थी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने के बाद पूरा विपक्ष जैसे-जैसे भाजपा के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश की। वैसे-वैसे मतदाताओं का रुझान भाजपा की तरफ बढ़ता गया। इसमें सबसे ज्यादा बसपा को नुकसान हुआ और कांग्रेस का वोट लगतार भाजपा की तरफ खिसकता गया। अभी तक सपा का वोट सिफ्टिंग भाजपा की तरफ होता नहीं दिख रहा था, लेकिन इस बार मोहन यादव के बहाने सपा के परंपरागत वोट काटने की जुगत में लग गयी है।