मीडिया को ग्लैमर और कॉरपोरेट कल्चर देने वाले सहारा श्री सुब्रत राय कुछ खट्टे मीठे अनुभव देकर चले गए। उनके जीवन का दर्शन जमीन से आसमान और आसमान से जमीन के बीच कामयाबियों- नाकामियों की सीढियों से उतरने-चढ़ने का प्रयोगात्मक फलसफा बयां करता है। खुशियां ग़म को दावत देती हैं, चमक-दमक के दूसरे छोर में अंधेरा होता है। शोहरत कभी बदनामी का सबब बन जाती है। अपने अक्सर ग़ैर बन जाते हैं। पीआर और प्रबंधन हमेशा साथ नहीं देता।
वैभव उम्र के पड़ाव की तरह होता है। यौवन का सौंदर्य झुर्रियों का दंश दिखाता है। भाग्य के सितारे कभी आसमान का सितारा बना देते हैं तो कभी गुमनामी के अंधेरों में सलाखों के पीछे ले जाते हैं। सहारा समूह के संस्थापक सहारा श्री जीवन दर्शन का आईने थे। नीचे से ऊपर और फिर ऊपर से नीचे आने का सफर तय करते हुए हमेशा-हमेशा के लिए ऊपर चले गए। नब्बे से लेकर सन दो हजार का दशक उनको ज़िन्दगी मे जन्नत की सैर कराता रहा। स्वर्ग की कल्पना, रजवाड़े, राजा-महाराजाओं की ठाठ का तसव्वुर सुब्रत राय और उनके सहारा समूह में साक्षात दिखाई देता था।
मीडिया,रीयल इस्टेट, एयरलाइंस,इंश्योरेंस, फाइनेंस, हाउसिंग, मेडिकल, टूरिज्म, फिल्म, फैशन, खेल, सोशल वर्क, मॉल, राजनीति, नौकरशाही….हर क्षेत्र मे सहारा इंडिया की तूती बोलती थी। क्रिकेट की दीवानगी जब रेडियो कमेंट्री से निकलकर टीवी स्क्रीन पर आम हुई, तब क्रिकेट का रोमांच हमारी सांसे अटका देता था। क्रिकेट के खुदाओं के तन पर लिबास पर बड़ा-बड़ा लिखा होता था-सहारा। सहारा के आंगन में सदी के नायक अमिताभ बच्चन, मिस यूनिवर्स ऐश्वर्या राय, शाहरुख ,सलमान,सचिन तेंदुलकर, कपिल देव, जगजीत सिंह, सानिया मिर्जा, दुनिया भर की फैशन और संगीत की नामचीन हस्तियां, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, नौकरशाह, जज.. जैसी खासमखास हस्तियां ऐसे नजर आती थीं जैसे किसी कामन मैन रामलाल की बारात में उसके मोहल्ले के लोग इकट्ठा होते हैं।
सहारा इंडिया एक समय मीडिया के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा। मीडिया को कॉरपोरेट कल्चर की भव्यता देने वाले भी सुब्रत राय ही थे। लखनऊ में हेराल्ड ग्रुप, अमृत प्रभात और नवभारत टाइम्स की बंदी से बेसहारा हुए मीडियाकर्मियों को सहारा इंडिया ने सहारा दिया। राष्ट्रीय सहारा में हिन्दी पत्रकारों को और उर्दू के सहारा रोज़नामा ने क़ौमी आवाज बंदी की मार खाए सहाफियो को रोजगार दिया। ये अखबार वर्षो तक टॉप थ्री की रेस में रहे। सहारा समय का यूपी रीजनल टीवी चैनल एक जमाने में नंबर वन टीआरपी पर रहा। आजतक नंबर वन पर था पर यूपी में सहारा यूपी ने आजतक को भी पछाड़ दिया था।
इसी तरह सहारा का इंटरटेनमेंट चैनल का फिक्शन भी अद्भुत और लाजवाब था।
सहारा और सहाराश्री ग्रुप समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष और तत्कालीन मुख्यमंत्री/रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के बेहद करीब थे। आरोप ये भी लगते थे कि सहारा इंडिया सरकार परस्ती में अव्वल है। किंतु एक दौर था जब केंद्र की नरसिंहराव सरकार के खिलाफ राष्ट्रीय सहारा ने मोर्चा खोल रखा था। अखबार का चर्चित परिशिष्ट “हस्तक्षेप” में कांग्रेस सरकार के खिलाफ लम्बे समय तक “भारत गुलामी की ओर” सिरीज़ छपती रहा। अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ लखनऊ संसदीय क्षेत्र में जब राज बब्बर समाजवादी पार्टी के टिकट पर पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़े तो सहारा ने राज बब्बर को चुनाव लड़वाने में पूरी ताकत झोंक दी। लेकिन जीते अटल। कुछ समय बाद जब अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री बनने के आए तो उस समय सहारा इंडिया ने अटल जी के ऊपर हेलीकाप्टर से फूलों की वर्षा कर उनका एतिहासिक स्वागत किया। (उस समय हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा नायाब थी)।
सुब्रत राय द्वारा तय किया गया सहारा समूह का प्रोटोकाल और डिसिप्लिन भी कुछ खास था। इस परिवार के कॉरपोरेट संस्कार भी मुख्तलिफ थे। सलाम, नमस्ते, हैलो-हाय, गुड मार्निंग, गुड आफ्टरनून के बजाय सहारा परिवार एक दूसरे से गुड सहारा कहकर मुखातिब होता था। बाद मे गुड सहारा के बजाय ,”सहारा प्रणाम” का रिवाज शुरू हुआ। जिस जमाने में शासन-प्रशासन ने हेल्मेट अनिवार्य नहीं किया था तब स्कूटर, बाइक, स्कूटी, मोपेड जैसे दो पहिया वाहन चलाने वाले सहारा परिवार के हर सदस्य के लिए हेल्मेट अनिवार्य था। धर्म के प्रति समर्पित सहारा श्री के व्यक्तित्व में धर्मनिरपेक्षता का भी जज्बा था। सहारा परिवार में दुर्गापूजा उत्सव देखने वाला होता था तो रोजा इफ्तार भी यादगार बनता था।
गणतंत्र दिवस पर “भारत पर्व” के जश्न को तो कभी भुलाया नहीं जा सकता। शहारा शहर में इस कार्यक्रम का ग्लैमर किसी हसीन ख्वाब की हकीकत से कम नहीं था। सन् 97 से 99 के भारत पर्व के आयोजन में शरीक होने का मौका मिलता था तो यहां का वैभव देखकर आंखे फटी की फटी रह जाती थीं। मुझे इस कार्यक्रम की कवरेज का जब पहली बार एसाइनमेंट मिला तो मुझे नहीं पता था कि ये कार्यक्रम कितनी शानो-शौकत का होगा। मैले कपड़ों और अजीब हालत में वहां पंहुच गया। जूता भी मगरमच्छ के मुंह की तरह आगे से फटा हुआ था। इत्तेफाक से उस दिन नहाया भी नहीं था। लेकिन सहारा शहर की मेहमाननवाजी की दाद देनी पड़ेगी।जिस महफिल के मेहमान अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय, सलमान खान, शाहरुख खान, जूही चावला, सचिन तेंदुलकर.. जैसे हों वहां मेरे जैसे फटेहाल आम पत्रकार की खातिरदारी में कोई कमी नहीं दिखी।
पहले ही गेट में एंट्री के साथ तीन फिल्मी हिरोइन जैसी लड़कियों ने स्वागत किया, एक लड़की थाल लिए खड़ी थी और एक ने माथे पर चंदन का तिलक लगाया। फिर कुछ लड़कियां पूरे प्रोटोकाल के साथ दूसरे गेट पर ले गईं। आगे एक शाही खुली गाड़ी पर मुझे बैठाया। मेरे दाएं और बाएं एयर होस्टेस टाइप की दो लड़कियां थी। जो मुझे सहारा शहर घुमा रही थी और बता रही थी कि कहां क्या है। कार्यक्रम शुरु हुआ तो लगा कि देश दुनिया के सारे तारे जमीं पे उतर आए हों। खाने का टाइम हुआ तो स्नेक्स मे जूही चावला करीब खड़ी थी तो खाने में देखा बगल मे माधुरी दीक्षित हैं। मुझे इकबाल का एक शेर याद आया-
एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज़,
न कोई बंदा रहा और न कोई बंदा-नवाज़।
फिर एक बात मन मे आई-
“यूंही नहीं कोई सुब्रत राय बन जाता”।
सहारा श्री के दुनिया छोड़ने की खबर सुनकर ये सब याद आ गया।
गुड सहारा, सहारा प्रणाम, अलविदा सहारा श्री।