महिलाएं अब घर की चहारदीवारी में कैद नहीं हैं। वह हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर भागीदारी कर रही हैं। कई मामलों में तो वह पुरुषों के वर्चस्व को भी चुनौती दे रही हैं। ऐसी ही एक महिला हैं, टिहरी जिले के जौनपुर प्रखंड के हटवाल गांव की 30-वर्षीय उषा देवी। उन्होंने ढोल वादन कर जहां पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा को तोड़ा है, वहीं क्षेत्र की इकलौती महिला ढोलवादक बनने का गौरव भी हासिल किया है। उषा को जागर गायन में भी महारथ हासिल है।
एक दशक पूर्व की बात है। उषा देवी तब गांव की महिला मंडली के साथ भजन-कीर्तन के कार्यक्रमों में भाग लिया करती थीं। इस दौरान वह भजन गाने के साथ ढोलक भी बजाया करती थीं। बाद में उन्होंने तबले पर भी हाथ आजमाना शुरू दिया और कुछ ही दिनों में तबला वादन में भी पारंगत हो गईं। एक दिन उषा के मन में विचार आया कि जब वह ढोलक व तबला बजा सकती हैं तो ढोल क्यों नहीं।
बस! फिर क्या था, वह घर पर ही ढोल बजाने का अभ्यास करने लगीं। कोशिश रंग लाई और आज वह ढोल के विभिन्न ताल बड़ी सहजता से बजा लेती हैं। इसके अलावा धौंसी और डमरू वादन पर भी उनका पूरा अधिकार है।
वर्तमान में उन्हें शादी-समारोह के साथ ही नवरात्र, हरियाली व विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों में भी ढोल वादन के लिए बुलाया जाता है। उषा के तीन बच्चे हैं, जिन्हें वह पढ़ाई के साथ ढोल वादन की बारीकियां भी सिखा रही हैं। खास बात यह कि उषा चूल्हा-चौके का काम करने के साथ ही खेती-बाड़ी भी करती हैं। कहती हैं, ढोलवादन उनके परिवार का पारंपरिक व्यवसाय है, लेकिन अब तक महिलाएं इससे दूर ही रहती थीं। उन्होंने इस मिथक को तोड़कर अन्य महिलाओं के लिए भी संभावनाओं के द्वार खोले हैं।
पति नगाड़े के साथ करते हैं संगत
शादी समारोह समेत विभिन्न आयोजनों में उषा के पति सुमन दास नगाड़ा बजाते हैं, जबकि वह स्वयं ढोल। शादी समारोह में पति-पत्नी दोनों ही जाते हैं, जिसमें मुख्य भूमिका उषा की होती है। उषा के जागर, मांगल व देवी गीत गायन के भी लोग कद्रदान हैं।
ढोलवादन से मिली नई पहचान
आठवीं कक्षा तक पढ़ी उषा आज सांस्कृतिक आयोजनों में महिलाओं की पहली पसंद बन गई हैं। पिछले माह देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें प्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व जागर गायक प्रीतम भरतवाण के साथ मंच साझा करने का मौका मिला। इस दौरान दोनों हस्तियों के साथ उन्हें भी सम्मानित किया गया।
आत्मविश्वास के आगे हर चुनौती बौनी
उषा बताती हैं कि उनके ढोल वादन से परिवार की आर्थिकी मजबूती हुई है। साथ ही उनका सामाजिक दायरा भी बढ़ा है। अब ढोल वादन उनके लिए सिर्फ पारंपरिक व्यवसाय नहीं, बल्कि आय का मुख्य जरिया भी बन गया है। कहती हैं, कोई भी काम कठिन नहीं है, बस उसके प्रति लगन एवं आत्मविश्वास होना चाहिए।