डार्क सफायर के बाद वन विभाग ने एक और ऐसी तितली प्रजाति का खोज निकाला है जो इससे पहले उत्तराखंड में कभी नहीं दिखी। नंधौर के जंगल में मिली बंगाल स्विफ्ट अन्य तितली प्रजातियों के मुकाबले छोटी लेकिन चार गुना तेजी से उड़ती है। इसके अलावा अस्सी साल पहले पहाड़ में मिली एंगल्ड पिरड ने अब अपना ठिकाना बदलते हुए मैदान का रूख किया है।वन विभाग व वॉक इन द वुड्स संस्था द्वारा इन दिनों कुमाऊं में दुर्लभ तितलियों को तलाशने का काम किया जा रहा है। जैव विविधता से भरपूर प्रदेश में अभी तक छह सौ से अधिक प्रजातियां रिपोर्ट हो चुकी है। हाल में ज्योलीकोट के जंगल में सिक्किम में पाई जाने वाली डार्क सफायर को टीम ने ढंूढ निकाला था। उसके बाद मैदानी जंगल में सर्च ऑपरेशन चलाया गया। फॉरेस्ट के मुताबिक बंगाल स्विफ्ट इससे पहले अंडमान निकोबार, जम्मू कश्मीर, केरल व वेस्ट बंगाल में रिकॉर्ड की गई है।
न्य जीव सप्ताह के तहत विभाग व संस्था द्वारा हल्द्वानी के आसपास स्थित जंगल में जाकर तितलियों का सर्वे करने का प्रयास शुरू किया गया। उस दौरान टीम ने दोनों दुर्लभ प्रजातियां कैमरे में कैद की। एक्सपर्ट द्वारा फोटो का मिलान करने पर इनकी पहचान हुई। एंग्लड पिरड साल 1937 में पहाड़ के तीन सौ मीटर ऊंचाई वाले इलाके में देखी गई थी। अब नंधौर के जंगल में इसके मिलने से पता चलता है कि दुर्लभ प्रजातियां लगातार ठिकाना बदल रही है। वहीं मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं डॉ. कपिल जोशी ने बताया कि सर्वे के दौरान अति दुर्लभ प्रजातियों के मिलने से साफ है कि उत्तराखंड विस्तृत जैव विविधता वाला प्रदेश है। लिहाजा आगे भी संस्था व तितली विशेषज्ञों के साथ मिलकर अभियान जारी रहेगा। सर्वे में रिटायर पीसीसीएफ परमजीज सिंह, वॉक इन द वुड्स संस्था के राजशेखर सिंह, डॉ. शंकर कुमार व पर्यावरण विशेषज्ञ सागर बाल्मिकी शामिल रहे।
पत्ते नहीं मिट्टी पसंद
बंगाल स्विफ्ट का वैज्ञानिक नाम पैलोपिडास आगना व एंग्लड पिरड का लेडा डिसिडिया है। पिरड मड पडलिंग करने वाली तितली है। यानी इसे पौधों की बजाय मिट्टी पंसद है। यह मिट्टी से कैलिश्यम व सोडियम जैसे पोषक तत्व ग्रहण कर लेती है। सर्च ऑपरेशन के दौरान टीम को 70 से अधिक प्रजाति मिली चुकी है।
आगे भी रिकार्ड बनाएंगे
डॉ. शंकर कुमार, तितली विशेषज्ञ, नैनीताल ने बताया कि सर्वे के दौरान लगातार दुर्लभ प्रजातियों का मिलना बड़ी उपलब्धि है। तितलियों को चिन्हित करना काफी कठिन है। उम्मीद है कि आगे भी नए रिकॉर्ड बनेंगे।
सेंचुरी में बनाया बटरफ्लाई जोन
नंधौर सेंचुरी का जंगल वन्यजीव व वनसंपदा के लिहाज से समृद्ध है। यहां बाघ-गुलदार, भालू, सांभर समेत वनस्पतियों की कई दुर्लभ प्रजाति मौजूद है। बकायदा पर्यटकों के लिए बटरफ्लाई जोन बनाया गया है।
कुछ दिनों पहले नैनीताल की पहाडिय़ों पर मिली सिक्किम की डार्क सफायर
देश में सिर्फ सिक्किम व असम में पाई जाने वाली डार्क सफायर नामक प्रजाति की तितली पहली बार उत्तराखंड के नैनीताल की पहाडिय़ों पर भी मिली है। तितलियों के बारे में रिसर्च करने वाली वॉक इन द वुड्स संस्था ने वन विभाग के विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस प्रजाति को खोजा है। इसके अलावा 80 साल बाद गिरोसिस फिसरा नामक प्रजाति की तितली भी कैमरे में कैद हुई है।
संस्था की ओर से नैनीताल के आसपास की पहाडिय़ों पर दो दिन तक ‘बटरफ्लाई वॉक एवं फोटोग्राफीÓ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नैनीताल के किलबरी, पंगूट, विनायक व ज्योलीकोट के आसपास तितलियों की नई प्रजाति ढूंढने को 15 लोगों की टीम ने अभियान चलाया। तितली विशेषज्ञ डॉ. शंकर सिंह, सेवानिवृत्त प्रमुख वन संरक्षक परमजीत सिंह के अलावा व्यक्तिगत तौर पर गौलापार स्थित अंतरराष्ट्रीय चिडिय़ाघर के डिप्टी डायरेक्टर गोपाल सिंह कार्की ने टीम को गाइड किया। इस दौरान ज्योलीकोट के नलेना गांव में टीम ने दो दुर्लभ प्रजतियों की तितलियों को कैमरे में कैद किया। रिकॉर्ड से मिलान करने पर पता चला कि एक डार्क सफायर और दूसरी गिरोसिस फिसरा है। गिरोसिस 80 साल पूर्व कुमाऊं में देखी गई थी। वर्तमान में यह प्रजाति उड़ीसा व नॉर्थ ईस्ट के कुछ राज्यों में ही देखी गई है।
कुल 65 प्रजातियां ढूंढी
सर्च ऑपरेशन के दौरान टीम ने तितलियों की कुल 65 प्रजातियों को तलाशा। एक तितली शेड्यूल वन की भी मिली है। हालांकि उसका फोटो साफ नहीं होने के कारण इस बारे में अन्य विशेषज्ञों से राय लेने के बाद स्थिति साफ होगी। उत्तराखंड में इससे पूर्व तितलियों की 550 प्रजातियां रिपोर्ट हैं। इनमें चार शेड्यल एक की हैं। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में इस शेड्यूल में बाघ, हाथी व तेंदुआ आता है।
हमेशा फुट हिल में मिली
डार्क सफायर का वैज्ञानिक नाम हैलियोफोरस इंडिक्स है। इसे सामान्य भाषा में इंडियन पर्पल सफायर भी कहा जाता है। वहीं, गिरोसिस को आम भाषा में डस्की यलो फ्लेट नाम से जाना जाता है। जहां से पहाडिय़ों की शुरुआत होती है, उस इलाके में मिलने के कारण इन्हें फुट हिल्स की तितली भी कहते हैं।