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हरछठ (हलषष्ठी) व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का आरम्भ 4 सितम्बर, सोमवार सांयकाल 04:41 से होगा और षष्ठी तिथि का समापन 5 सितम्बर, मंगलवार , अपराह्न 03 :46 पर होगा, उदयातिथि के आधार पर हल षष्ठी 5 सितम्बर को मनाई जाएगी ये पर्व भगवान कृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 5 सितम्बर को है बलराम जी का शस्त्र हल और मूसल है। इसी कारण इनको हलधर भी कहते है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, बलराम जी शेषनाग के अवतार थे । इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इस दिन हल पूजन का विशेष महत्व है। इसे हल छठ पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहते हैं पूरब के जिलों में इसे ‘ललई छठ’ भी कहा जाता है।
माताएं हलषष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के रखती हैं. इस दिन व्रत के दौरान वह कोई अनाज नहीं खाती हैं. तथा महुआ की दातुन करती हैं. हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इस व्रत में वही चीजें खाई जाती हैं जो तालाब में पैदा होती हैं. जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर आदि. इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवाल पर छठ माता का चित्र बनाते हैं. उसके बाद गणेश और माता गौरा की पूजा करते हैं. महिलाएं इस दिन जमीन को लीप कर घर में ही एक छोटा सा तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं और हल षष्ठी की कथा सुनती हैं. हल षष्ठी व्रत महिलायें अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान हलधर उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।