गूगल पर सर्च कीजिए- “सांसद और केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर का नशा मुक्ति आंदोलन”। गूगल दर्जनों खबरें दिखाएगा, जो खबरें बताती हैं कि सांसद जी ने शिद्दत से चलाए नशा मुक्ति आंदोलन या अभियान से करोड़ों लोगों को नशे से मुक्ति दिला दी। शायद अगले कुछ दिनों में गूगल जानकारी का विस्तार करते हुए बताए कि सांसद कौशल किशोर ने घर के बाहर नशा मुक्ति अभियान चलाया और उनके घर में नशे ने जिन्दगी से मुक्ति दिलाने का अभियान छेड़ा है। फिलहाल गूगल कौशल किशोर के नशा मुक्ति आंदोलन की जानकारी सर्च करने पर बता रहा है-
“कौशल किशोर के एक बेटे की मृत्य नशे के कारण अक्टूबर 2020 में हुई थी। इसके बाद ही उन्होंने यह आंदोलन शुरू किया था। अब तक उनके नेतृत्व में अनेक बैठकों, आयोजनों और जागरूकता कार्यक्रमों द्वारा पूरे देश में 5 करोड़ 6 लाख 50 हज़ार से अधिक लोग जीवन में कभी भी नशा न करने का संकल्प धारण कर चुके हैं।”
ये सब पुरानी खबरें सच ही होंगी। ऐसा आंदोलन या अभियान प्रेरणादायक भी है और जनहित, समाजहित, राष्ट्रहित मे है। लेकिन बीते शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर के घर में एक हत्या की घटना कई सवाल भी उठाती है और नसीहत भी देती है। मसलन- कोई भी अभियान तब तक मुकम्मल तौर से सफल नहीं होगा जब तक आप इसकी शुरुआत अपने घर से नहीं करते। कुछ समय पहले सांसद पुत्र के घर का चिराग उनका बेटा नशे के कारण अपना जीवन गवा बैठा था। घर सूना हो गया था, घर में मातम छा गया था। उनके घर में जो अंधेरा छाया था वैसा अंधेरा किसी और के घर में ना छा जाए इसलिए नशे के अंधेरे से लड़ने के लिए कौशल किशोर ने शराब मुक्ति अभियान की अलख जलाई।
लेकिन ये क्या ! उन्हें बाहर से पहले अपने घर के अंदर नशे के अंधेरों को नशा मुक्ति अभियान की अलख से रौशन करना चाहिए था। पर ऐसा नहीं हुआ। घर के बाहर तो पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को नशे से मुक्ति दिला दी पर उनके घर में पुनः नशे ने किसी एक नौजवान के जीवन को ही मुक्त कर दिया। ये नौजवान सांसद के बेटे का करीबी दोस्त था। बेटे का दोस्त भी बेटे समान ही था। पुलिसिया बयानों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री के लखनऊ आवास मे उनके बेटे के दोस्तों ने जम कर शराब पी, फिर जुआ खेला और नशे ने अपना भयावह रूप दिखा दिया। जुए में हार-जीत के विवाद में नशे की हालत में चली गोली में एक युवक जिन्दगी गंवा बैठा।
यानी वो घर जिस घर का चिराग नशे ने छीन लिया था। उस घर के मुखिया ने पुत्र की मृत्यु की वजह बने नशे के खिलाफ देशभर में अभियान छेड़ दिया। नतीजतन कई घरों को नशे की बर्बादी से बचा लिया। पर घर का मुखिया और पुत्र की मौत के दुख का दुखियारा पिता अपने ही घर में नशे पर पाबंदी नहीं लगा सका। ये पिता भी कोई मामूली नहीं। खाटी नेता, जनसेवक, समाजसेवी और समाज सुधारक रहा है। जिनकी सियासत एक कम्युनिस्ट नेता के तौर पर शुरू हुई थी। जमीनी नेता के तौर पर कौशल किशोर जनता के दुख-दर्द से जुड़े संघर्षशील नेता रहे। कई बार विधायक रहे। भाजपा में शामिल होने के बाद सांसदी का चुनाव जीते और फिर केंद्रीय मंत्री बने। मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर केंद्र की मोदी सरकार में आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री हैं। पर अफसोस कि उनके ही आवास में शराबखोरी हो रही है, और इस बात से वो बेखबर थे। शायद इसीलिए कि देश के आवास एवं शहरी मामलों की जिम्मेदारियों में ज्यादा व्यस्त होंगे। ख़ैर अब तो उन्हें एक कहावत पर अमल कर ही लेना चाहिए है- पहले घर में चिराग़, फिर मस्जिद में चिराग। घर के अंधेरों को मिटाने के बाद ही सारे जहां में रौशनी फैलाई जा सकती है।