बच्चन के जीवन के कुछ दर्द उनके लिए कभी भूलने वाले नहीं हो सकते…राजनीति, लांछन और कर्ज़ का बोझ।
सत्तर और अस्सी के दशक में जब बॉलीवुड के इस ‘एंग्री यंग मैन’ के रुतबे के चलते इंडस्ट्री के दूसरे स्टार्स पिछड़ गए थे, अमिताभ कुछ दर्द से भी रु-ब रु हुए। ये सिर्फ कुली की चोट का नहीं था। किस्मत ने उनके पिटारे में कुछ और ही लिख कर छोड़ा हुआ था। साल 1984 में अमिताभ ने फिल्मों से छोटा सा ब्रेक ले लिया। अपने मित्र राजीव गांधी के कहने पर अमिताभ ने राजनीति में हाथ आजमाने का फैसला किया। बच्चन ने अपने शहर इलाहबाद से चुनाव लड़ा। सामने थे राजनीति के कद्दावर हेमवतीनंदन बहुगुणा । बच्चन चुनाव जीत गए लेकिन ‘राजनीती’ से हार गए। अमिताभ के दामन पर बोफोर्स के छींटे पड़े और उन्होंने हमेशा के लिए पॉलिटिक्स को अलविदा कह दिया। उन्होंने माना – ” ये मेरे बस की बात नहीं है।” लेकिन बच्चन के नसीब में उससे भी बड़ा एक दर्द और लिखा था।
राजनीति से तौबा करने के बाद फिल्मों में फ्लॉप हो रहे बच्चन को ‘शहंशाह’ और ‘गंगा जमुना सरस्वती’ ने सहारा दिया लेकिन ‘तूफ़ान’ ने उम्मीद फिर धूमिल कर दी। एक तरफ ‘अग्निपथ’ के लिए मिले राष्ट्रीय पुरस्कार की ख़ुशी थी तो दूसरी तरफ आर्थिक संकट बेहद गहराता जा रहा था। और फिर वो दौर आया जिसने बिग बी की माली हालत को पूरी तरह खराब कर दी।
साल 1996 में बच्चन ने “अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड” की स्थापना की थी। सपना ढेर सारी फ़िल्में बनाने का और साथ ही एंटरटेनमेंट से जुड़े बड़े इवेंट की जिम्मेदारी भी। लक्ष्य 1000 करोड़ रूपये की कंपनी बनाने का था। इस बैनर से पहली फिल्म बनी ” तेरे मेरे सपने” और फिर ‘ मृत्युदाता ‘ लेकिन सिनेमा के इस सिकंदर के सपने फिल्म के फ्लॉप होते ही धूल में मिल गए। पर ये तो कुछ भी नहीं था। इसी दौरान बच्चन की कंपनी ने बेंगलोर में हुए मिस इंडिया ब्यूटी कंटेस्ट के इवेंट मैनेजमेंट का जिम्मा लिया.. बच्चन के लिए ये नई दुनिया थी लेकिन जस्बा मजबूत.. हाइली पेड़ लोग रखे गए और करोडो रूपये खर्च हुए लेकिन कमाई तो छोडिये बच्चन को इसी इवेंट ने दिवालिया बना दिया…साथ में कंपनी पर कई लीगल केस भी दर्ज हो गए.. बच्चन क़र्ज़ के बोझ से दब गए।
1999 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बच्चन पर प्रतीक्षा सहित उनके दो बंगलो को बेचने पर रोक लगा दी। बिग बी का आशियाना कनारा बैंक के पास गिरवी चला गया। इसके बाद करीब 14 मिलियन डालर के कर्ज में डूबी ए बी सी एल को ” बीमार” घोषित कर दिया गया। बच्चन के करीबी अक्सर उनसे कहते रहे कि लोग उन्हें आर्थिक रूप से खोखला कर रहे हैं। धोखा दे रहे हैं। गलत सलाह दी जा रही है, लेकिन बच्चन ने इसे एक चुनौती समझ कर इसका सामना करने की ठानी थी।
संकट से घिरे बच्चन को तब साउथ ने भी सहारा भी दिया था लेकिन ‘सूर्यवंशम’ और ‘लाल बादशाह’ जैसी फिल्में काम नहीं आईं। हालत ये थी कि बच्चन को अपने घर में लगे बल्ब भी खुद ही बदलने पड़ते थे और वो भी हर समय घर के बाहर खड़ी मीडिया के कैमरों से बच कर। पर कहते है बच्चन वो नाम है जो टूटता नहीं , कभी बिखरता नहीं।
कई रातों से नहीं सोये बच्चन एक दिन अचानक सुबह जल्दी उठे और पास ही यश चोपड़ा के घर पहुंचे। बुझे मन से यश चोपड़ा से हाथ जोड़ कर कहा कि वो पूरी तरह से दिवालिया हो चुके हैं। फिल्में नहीं है और घर भी गिरवी पड़ा है, इसलिए कुछ काम दीजिये। यश चोपड़ा कुछ देर तक खामोश रहे और बच्चन के साथ अगले ही पल “मोहब्बतें” बनाने की घोषणा कर दी। शहंशाह को सिर्फ संजीवनी चाहिए थी।