पिछड़े समाज के साथ हो रहे अत्‍याचार के खिलाफ धानुर-कुर्मी एकता मंच 2 नवंबर को एक रैली करने जा रहा

 लोकसभा चुनावों की सुगबुगाहट के साथ जातिगत संगठनों ने अपने समाज की सहभागिता को बढ़ाने के लिए रणनीति तैयार करना शुरू कर दी है. इसी कड़ी में बिहार के कुर्मी और धानुर समाज ने मुख्‍यमंत्री नितीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. कुर्मी और धानुर समाज के प्रतिनिधियों ने मुख्‍यमंत्री नितीश कुमार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर समाज के सभी क्षेत्र में उनको आपेक्षित सहभागिता नहीं मिलती है, तो आगामी लोकसभा चुनाव में मुख्‍यमंत्री नितीश कुमार को कुर्मी और धानुर समाज के विरोध का सामना करना पड़ सकता है. कुर्मी-धानुर समाज ने मजबूती से अपनी बात मुख्‍यमंत्री नितीश कुमार तक पहुंचाने के लिए न केवल धानुर-कुर्मी एकता मंच का गठन किया है, बल्कि आगामी 2 नवंबर को वे पटना में सम्‍मान और स्‍वाभिमान रैली का आयोजन भी करने जा रहे हैं. धानुर-कुर्मी एकता मंच के प्रदेश अध्‍यक्ष जितेंद्र नाथ ने जी-‍डिजिटल से बातचीत में बताया कि 1952 में उनके समाज से बिहार में 53 विधायक हुआ करते थे. उपेक्षा का शिकार हुए इस समाज की सहभागिता समय के साथ घटती चली गई. मौजूदा समय में इस समाज से बिहार में महज एक दर्जन विधायक हैं. वहीं बिहार सरकार की केबिनेट में इस समाज के दो विधायकों को जगह मिली है. इतना ही नहीं, संवैधानिक पदों की बात करें तो करीब 12 से 13 संवैधानिक पदों पर सवर्णों की नियुक्‍ति की गई है. प्रशासनिक पदों की बात करें तो योग्‍यता और वरीयता होने के बावजूद इस समाज से आने वाले अधिकारियों को  वरिष्‍ठ प्रशासनिक पदों पर तैनात नहीं किया जाता है. उन्‍होंने बताया कि सरकार की अपेक्षा के चलते इस समय धानुर-कुर्मी समाज में न केवल गहारा असंतोष है, बल्कि वे मुख्‍यमंत्री नितीश कुमार से खासे नाराज भी हैं. 

 

जी-डिजिटल से बातचीत करते हुए प्रदेश अध्‍यक्ष जितेंद्र नाथ ने आरोप लगाया कि इस समाज के लोगों को न्‍याय देने में मौजूदा सरकार पूरी तरह से विफल रही है. उन्‍होंने उदाहरण देते हुए बताया कि हाल में अरवल इलाके में एक बैंक मैनेजर की हत्‍या हुई थी. सवर्ण वर्ग से होने के चलते बैंक मैनेजर के हत्‍यारों को न केवल पुलिस ने तत्‍काल गिरफ्तार किया, बल्कि प्रशासन की तरफ से तुरंत मुआवजा भी जारी कर दिया गया. प्रशासन की यह तेजी एक अन्‍य बैंक मैनेजर की हत्‍या के मामले में भी देखने को मिला. वहीं, सासाराम में कुर्मी समाज के एक इंजीनियर की हत्‍या पर पुलिस-प्रशासन की फुर्ती गायब हो गई. एक महीना गुजर जाने के बावजूद अभी तक न ही पुलिस अपराधियों को पकड़ने में सफल हुई है, और न ही प्रशासन ने मुआवजा दिया है. इस तरह देखा जा सकता है कि बिहार में धानुर-कुर्मी समाज को किस तरह उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है. 

बिहार पुलिस ने फेंका 16 दिन का नवजात शिशु

धानुर-कुर्मी एकता मंच के प्रदेश अध्‍यक्ष जितेंद्र नाथ ने बिहार पुलिस पर बड़ा आरोप लगाते हुए बताया कि बीते दिनों बिलौनी गांव में एक महिला को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने उसके 16 दिन के नवजात को अलग फेंक दिया. इस महिला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. जिसके चलते उसके नवजात शिशु को करीब डेढ़ महीने तक अपनी मां से अलग रहना पड़ा. इस घटना के बाबत उनका कहना था कि बलौनी गांव के चार युवकों पर पथराव का आरोप था. पुलिस ने इन चार युवकों को गिरफ्तार करने की बजाय गांव के 84 लोगों पर एफआईआर दर्ज की. पुलिस की इस कार्रवाई में धानुर और कर्मी समाज की 12 महिलाओं को जेल भेज दिया गया. उन्‍होंने कहा कि जैसे ही समाज के विछड़े वर्ग की बात आती है, पुलिस अपनी सारी संवेदनाएं भूल जाती है. उन्‍होंने बताया कि पिछड़े समाज के साथ हो रहे इस अत्‍याचार के खिलाफ उनका मंच 2 नवंबर को एक रैली करने जा रहा है. जिसमें भविष्‍य की रणनीति को तय किया जाएगा. 

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