चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है इस वर्ष यह 15 मार्च को है। शीतला माता को आरोग्य की देवी माना जाता है। इस दिन कालाष्टमी व्रत भी है। अष्टमी तिथि 14 मार्च को साँयकाल 4:38 से प्रारम्भ होकर 15 मार्च को दिन 02:47 तक है शीतला अष्टमी व्रत के दिन सुबह से ही सिद्धि योग बना हुआ है. यह जानकारी ज्योतिषाचार्य एस.एस. नागपाल ने दी है
शीतला अष्टमी को प्रात:काल से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक सिद्धि योग है. पूजा पाठ या शुभ कार्यों के लिए सिद्धि योग को अच्छा माना जाता है. यह एक शुभ योग है. इस दिन ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र है. इस दिन बासी खाना शीतला माता को अर्पित किया जाता है और खाया जाता है इसलिए इसे बसौड़ा भी कहते हैं ये होली के आंठवे दिन पड़ता है स्कंद पुराण में माता शीतला का वर्णन है, इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से व्यक्ति को चेचक, खसरा जैसे रोगों का प्रकोप नहीं रहता। माता शीतला अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण किए हुए हैं। वे गर्दभ की सवारी किए हुए हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल है। एक दिन पूर्व पूड़ी, पूआ़, दाल-भात, मिठाई, तरकारी आदि बनाई जाती है। दूसरे दिन प्रातः बनाये गये पकवानों को शीतला माता को भोग लगाया जाता है एवं र्व्रत किया जाता है जिससे दाह, ज्वर, फोड़े- फुंसी, पीत-ज्वर, नेत्रों के समस्त रोग तथा शीतलजनित अन्य सर्व रोग दूर होते है।