शिरोमणि अकाली दल को बगावत की तपिश झेलनी पड़ी, थोड़ी राहत के बावजूद संकट बना हुआ है

 शिरोमणि अकाली दल को बगावत की तपिश झेलनी पड़ रही है। पार्टी की परेशानी बढ़ती जा रही है और टकसाली अकालियों में रोष है। राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा के पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने के बाद से सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां, रतन सिंह अजनाला ने भी खुल कर नाराजगी दिखाई है। इससे साफ है है कि अकाली दल का संकट बरकरार है। इन नेताओं के इस्तीफा न देने से फिलहाल यह संकट टल गया लगता है, लेकिन यह थोड़ी राहत की बात ही लगती है। ढींडसा के त्यागपत्र के बाद माझा के टकसाली अकाली नेता भी एकजुट होना शुरू हो गए हैैं।शिरोमणि अकाली दल को बगावत की तपिश झेलनी पड़ी, थोड़ी राहत के बावजूद संकट बना हुआ है टकसाली नेताओं की नाराजगी पड़ सकती है भारी, कुछ खास नेताओं पर मेहरबानी से बढ़ा असंतोष

टकसाली नेताओं ने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि जिस प्रकार से सुखबीर बादल पार्टी चला रहे हैं, उससे वे संतुष्ट नहीं हैैं। इन नेताओं की नाराजगी आने वाले समय में अकाली दल के लिए भारी संकट पैदा कर सकती है। जानकारी के अनुसार ढींडसा के इस्तीफा देने के बाद ही ब्रह्मपुरा, सेखवां व अजनाला ने भी इस्तीफा का मन बना लिया था। इसकी भनक पार्टी के शीर्ष नेतृत्‍व को लग गई। माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के हस्तक्षेप के बाद इन नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस करके यह स्पष्ट कर दिया कि वे इस्तीफा नहीं दे रहे हैैं।

बता दें कि वरिष्ठ नेताओं और दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच की दरार 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में ही उभरनी शुरू हो गई थी। यही कारण था कि सुखबीर ने वरिष्ठ नेताओं के बेटों को टिकट देकर इस दरार को भरने की कोशिश की थी। अब चुनाव के करीब पौने दो साल बाद जब पार्टी लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में डटने की तैयारी में है, यह विवाद पुन: उठ खड़ा हुआ है।

सूत्र बताते हैं कि वरिष्ठ नेताओं की सबसे बड़ी नाराजगी सुखबीर बादल द्वारा कुछ खास नेताओं पर ही भरोसा करने को लेकर है। इस वजह से टकसाली नेताओं की पार्टी में पूछ कम होती जा रही है। सुखदेव ढींडसा ने भले ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर पार्टी के पदों से इस्तीफा देने की बात कही हो लेकिन उसके पीछे का कारण भी यही माना जा रहा है।

रैली पर पड़ सकता है असर

पार्टी में खींचतान का असर 7 अक्टूबर को अकाली दल द्वारा पटियाला में की जा रही ‘जबर विरोधी रैली’ पर भी पड़ सकता है। खुलकर मीडिया के सामने अपनी बात रखने वाले सुखबीर बादल ने पार्टी के अंदर की खींचतान को लेकर मीडिया से अपनी दूरी बनाई हुई है।

छोटे नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी से शिअद में गिरावट’

वरिष्ठ अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा के त्यागपत्र के बाद माझा के टकसाली अकाली नेता भी एकजुट होना शुरू हो गए हैैं। रविवार को डॉ. रत्न सिंह अजनाला के आवास पर बैठक में शामिल वरिष्ठ नेताओं रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रत्न सिह अजनाला, सेवा सिंह सेखवां, अमरपाल सिंह बोनी, रविंदर सिंह ब्रह्मपुरा और मनमोहन सिंह सठियाला ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए।

अमृतसर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान बिना किसी का नाम लिए इन नेताओं ने कहा कि छोटे नेताओं के हाथ बड़ी जिम्मेदारी देने से न केवल पार्टी में गिरावट आई बल्कि पार्टी को नुकसान भी हुआ है। अकाली दल में प्रकाश ङ्क्षसह बादल के बाद रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा सबसे कद्दावर नेता हैं। सेवा सिंह सेखवां व रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने कहा कि पार्टी को बड़े स्तर पर बदलाव कर बचाया जा सकता है। बैठक में हुई विचार चर्चा को पार्टी नेतृत्व तक ले जाया जाएगा।

सुखदेव सिंह ढींडसा द्वारा पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र देने को दुखद बताते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी को  त्यागपत्र नहीं बल्कि कमियां दूर कर बचाया जा सकता है। इसलिए वह खुद त्यागपत्र देकर पार्टी को कमजोर नहीं करेंगे और अंतिम सांस तक पार्टी के प्रति वफादार रहेंगे। पार्टी को नुकसान से बचाने के लिए भविष्य में भी वर्करों के साथ बैठकें की जाएंगी। उन्होंने कहा कि पार्टी को कमजोर करने वालों को खुद पार्टी से बाहर हो जाना चाहिए।

डेरा प्रमुख को माफी और निर्दोष लोगों पर गोली चलाना गलत था

सेवा सिंह सेखवां व रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने कहा कि पंथक संस्थाओं अकाली दल, एसजीपीसी और श्री अकाल तख्त साहिब पर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इनमें भी  बड़े बदलाव की जरूरत है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी देना और बेअदबी कांड में निर्दोषों पर गोली चलाना बड़ी गलतियां थीं। आरोपितों को कानून के अनुसार सजा मिलनी चाहिए।

भाजपा का साथ छोडऩा पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए

सेखवां और ब्रह्मपुरा ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार पंजाब के साथ धक्का कर रही है। केंद्र ने नोटिफिकेशन जारी कर चंडीगढ़ में पंजाब व हरियाणा के लिए 60:40 के फार्मूले को रद्द कर दिया है। अगर अकाली दल को भाजपा से राजनीतिक नाता तोडऩा पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।

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सुखबीर के बजाय ढींडसा ने दी कुर्बानी : जाखड़

दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ ने पूरे प्रकरण में सुखबीर बादल पर हमला किया है। जाखड़ ने कहा कि पंथ के साथ गद्दारी करने के लिए सुखबीर को इस्तीफा देना चाहिए था लेकिन कुर्बानी सुखदेव सिंह ढींडसा ने दी है। बादल अपने सियासी करियर के दौरान अनेकों बार कुर्बानी देने की बात करते आए हैं लेकिन हर बार वह पहले अपने लिए और अब अपने पुत्र के लिए कुर्बानियां ले रहे हैैं, नेताओं को मजबूर कर रहे हैैं। ढींडसा का त्यागपत्र भी ऐसी ही कुर्बानियों की अगली कड़ी है।

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